आवारा पशुओं से मुक्त हुआ कस्बा

चंद युवाओं की पहल से गाय-बैलों को मिली पनाह
आदित्य त्रिवेदी/बहादुरपुर। कुछ ही दिनों पहले की बात है कस्बे में जहां देखों वहां आवारा पशु घूमते दिखाई देते थे, राजमार्ग के एक बड़े हिस्से पर पशुओं का कब्जा जमा रहता था। नतीजतन एक ओर जहां कस्बेवासी इनसे परेशान थे। वहीं राजमार्ग से दिन भर निकलने वाला यातायात भी खासा प्रभावित होता था। इससे कई पशु तेज गति से आ रहे वाहनों की चपेट में आ जाने से काल-कवलित हो गये, तो दर्जनों पशु घायल होकर अपंग हो गये। वहीं पशुओं को बचाने के चक्कर में कई वाहन दुर्घटना ग्रस्त हुए जिनमें कई लोगों को अपनी जान तकगंवानी पड़ी। हालांकि आवारा पशुओं से परेशानी सबको थी लेकिन इनकी ठोस एवं स्थाई व्यवस्था को लेकर कोई आगे नहीं आया। सड़कों पर घूमने वाले पशुओं में अधिकतर संख्या गाय-बैलों की थी। ऐसे में गांव के कुछ युवाओं ने लगभग हर रोज वाहन दुर्घटनाओं में शिकार हो रहे पशुओं की प्रति संवेदना का परिचय दिया एवं इस समस्या का हल खोज निकाला।
अतिक्रमण के शिकार कांजी हाउस का ताला तोड़
कस्बे के अंकित श्रीवास्तव, ओमप्रकाश पाल, किशनलाल सेन, संग्राम सिंह पाल ने कई युवाओं को साथ लेकर वर्षों से अतिक्रमण के शिकार कांजी हाउस का ताला तोड़ कर पशुओं के रहने का इंतजाम कर दिया। इसके बाद समस्या उन्हे चारा-पानी की थी। इन युवाओं ने पहले तो स्वंय की जमा पूंजी से लगभग सात हजार रुपये से भूसा खरीदा। लेकिन आपूर्ति नहीं होने के कारण फिर आसपास के गांवों से भूसे का इंतजाम किया एवं कांजी हाउस के पड़ौस में रहने वाले रामलाल मिस्त्री के घर से गाय-बैलों को पानी पिलाने की व्यवस्था कर दी। अब इस कांजी हाउस में कुल अठारह गाय-बैल रह रहे हैं। जिन्हे प्रतिदिन सुबह-शाम चारे एवं पानी के लिये यह युवा कांजी हाउस में पहुंचते हैं। इन गाय-बैलों को यदि कोई रोग होता है तो उन्हे तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अतिरिक्त कस्बे में कोई आवारा पशु घूमता दिखाई देता है, उसे तत्काल कांजी हाउस में पहुंचा दिया जाता है। हालांकि अभी तक कोई गौभक्त अथवा समाजसेवी संगठन इन युवाओं की मुहिम के सहायतार्थ आगे नहीं आया है लेकिन अंचल के गांवों के दर्जनों किसान अवश्य पशुओं को भूसा पहुंचा रहे हैं। पशुओं के प्रति जागी संवेदना के कारण इन युवाओं ने उस का समस्या का निदान कर डाला जिससे लगभग हर गांव-नगर दो-चार हो रहा है। इन युवाओं की पहल से कस्बा आवारा पशुओं से बिल्कुल मुक्त हो गया है जिसकी मिसाल आसपास के कई गांव-शहरों में देखने नहीं मिलती।
सुविधाओं और जगह का है अभाव
जिस स्थान पर आवारा पशुओं के रहने की युवाओं द्वारा व्यवस्था की गई है, वह अपेक्षाकृत बहुत कम है। दरअसल यहां पर कांजी हाउस था जिसमें अस्थाई रूप से पशुओं को रखा जाता था। कांजी हाउस प्रथा बंद होने के बाद यह अनुपयोगी होकर अतिक्रमण का शिकार हो गया था। स्थान कम होने से पशुओं की संख्या बडऩे समस्या आयेगी। इसलिये इसके आगे पड़ी खाली भूमि पर इसे विस्तारित करने की योजना युवाओं ने बनाई है। जिसमें ग्राम पंचायत भी इनके साथ है। वहीं कांजी हाउस में नल की व्यवस्था नहीं है साथ ही इसमें हौदी भी नहीं है। जिसके लिये युवा प्रयास कर रहे हैं। सरपंच मनोज कांसल इस मुहिम में युवाओं का साथ देने की बात करते हैं। बकौल श्री कांसल इस गौशाला में जल्द ही पंचायत द्वारा हौदी एवं नलकूप लगवाये जाना है।
समस्या का निजात कर पेश की मिसाल:
आवारा पशुओं की समस्या लगभग हर गांव व नगर में है। जिससे परेशान होकर इन्हे या तो जंगलों में छोड़ दिया जाता है या फिर कसाईयों को पकड़वा दिया जाता है। ऐसा ही कुछ कस्बे के आवारा पशुओं के साथ हुआ जिससे निजात पाने युवाओं ने यह सराहनीय कार्य किया है। पेषे से टेलरिंग का काम करने वाले ओमप्रकाश पाल ने बताया कि कस्बे के कुछ लोगों इन दो महीने पहले लगभग एक दर्जन गाय-बैलों के हाथ-पैर बांधकर एक वाहन में भरवा दिये थे। जिसकी जानकारी अंकित श्रीवास्तव को लगी, अंकित ने तत्काल किषनलाल सेन, संग्राम सिंह पाल एवं ओमप्रकाष पाल सहित कुछ और युवाओं को साथ में लेकर पशुओं को मुक्त कराया एवं कांजी हाउस में उनके रहने की व्यवस्था कर दी। इतना ही नहीं इनके रहने के अलावा खाने-पीने एवं स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की भी स्थाई व्यवस्था कर दी। युवाओं का यह कदम समाज में मिसाल के तौर पर कायम हुआ है। अंकित कहते हैं कि यदि गांव-गांव दो-चार युवा मिलकर पशुओं के लिये ऐसी व्यवस्था कर दें तो यह समस्या जड़े से ही खत्म हो जायेगी। जिससे जहां पशुओं को भी उचित देखभाल मिलेगी वहीं सड़कों पर होने वाली वाहन दुर्घटनाओं में भी कमी आ जायेगी।