रामायण बैले के 64 साल पूरे, 54 देशों में अब तक किए हैं 637 शो
भोपाल। युवा पीढ़ी और बच्चों में संस्कार भरने वाला धार्मिक ग्रंथ रामायण आज भी प्रासंगिक है। इसे नई पीढ़ी से जोड़े रखने के लिए कठपुतली शैली में रामकथा का मंचन रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप रामायण बैले ने किया। रामायण बैले के 54 देशों में 637 शो इस बात का प्रमाण है। दुनियाभर में यह इकलौता बैले है. जो इतने समय तक रंगयात्रा कर रहा है।
इस बैले में मानव पपेट की तरह एक्ट करते नजर आता है। मंगलवार को शहीद भवन के सभागार में शांतिवर्द्धन के जन्म शताब्दी वर्ष में आयोजित बैले समारोह में जब रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप के कलाकार रामायण के 638वें शो का मंचन करेंगे। तो यह अपने आप में एक इतिहास होगा। इस बैले का पहला शो मुंबई के जयहिंद कॉलेज ऑडिटोरियम में 6 जनवरी 1952 को हुआ था। 64 साल बाद भी इस बैले के कॉस्टयूम और मुखौटे वही उपयोग हो रहे है, जो उस वक्त तैयार हुए थे। सिर्फ 1974 के बाद संगीत को रिकार्ड किया गया।
रंगमंच के इतिहास में कभी-कभी कुछ ऐसी कलात्मक घटनाएं घट जाती हैं जिनके छापे स्मृतियों में हमेशा ताजा बने रहते है। प्रख्यात कोरियोग्राफर शांतिवर्द्धन की बैले रचना रामायण एक ऐसा ही कालजयी अनुभव है। इस बैले में 2010 तक राम बनने का रिकार्ड भी बैले कोरियोग्राफर पद्मश्री गुलवर्द्धन के नाम रहा। शांतिवर्द्धन की मृत्यु के बाद उनकी कृति रामायण बैले को गुलवर्द्धन और प्रभात गांगुली ने इसे देश और दुनिया तक पहुंचाया।