दबंग भूमाफियाओं के सामने आला अधिकारी तक साध जाते मौन
लेखपाल से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों की रहती मिलीभगत
उरई। जिला मुख्यालय पर दबंग भूमाफियाओं की मनमर्जी के सामने जहां आला अधिकारी तक मौन साध जाते है तो वहीं सदर तहसील कार्यालय के लेखपालों के ऐसे माफियाओं से याराना संबंध होने की वजह से जब भी पीडि़त व्यक्ति कोई षिकायत करता है तो सबसे पहले लेखपाल ही ऐसी षिकायत पर भ्रमित करने वाली टिप्पणी दर्ज कर अधिकारियों को गुमराह करने से नहीं चूकते हैं। ऐसे कार्य करने वाले लेखपाल को ऐसे भूमाफिया समय-समय पर बतौर नजराना देकर उनका हौंसला बढ़ाते रहते हैं। यही कारण है कि मुख्यालय में गंदे पानी की निकासी के लिये बने नाला के आसपास की जमीनों पर ऐसे माफिया कब्जा करने में जुटे हुये हैं जिनको वह औने पौने दामों में खरीद कर अपने कब्जे में कर लेते हैं।
ऐसा ही एक मामला मौजा बघौरा बाईपास का प्रकाष में आया है जिसमें मु. रहूप मंसूरी के प्रार्थना पत्र पर क्षेत्रीय लेखपाल ने तहसीलदार को प्रेशित करते हुये कहा कि प्रतिपक्ष रामऔतार पुत्र तेजराम राजपूत सत्तारूढ़ राजनैतिक संरक्षण प्राप्त सक्षम व्यक्ति है जिससे इस प्रकरण की जांच सक्षम अधिकारी से कराया जाना संभव है। आपके आदेष के अनुपालन में स्थलीय जांच लेखपाल देषराज से भूचित्र आंषिक एवं नजरी नक्षा लिया गया विरुद्ध पक्ष मोतीबाई आदि की षिकायत की गयी है कि यह अपने मकान की बाउण्ड्री में अनाधिकृत रूप से नाले एवं आम रास्ते की जगह दबा रही हैं। मौके पर प्रतिपक्ष के प्लाट की पक्की बाउण्ड्री बनी है। बाउण्ड्री नाले से लगी हुयी बनी है नाला व बाउण्ड्री के बीच रास्ता नहीं बना है नाले पर बने पुल से नाला व बाउण्ड्री के मध्य पगडंडी एक व्यक्ति के चलने योग्य है।
नाले से लगा हुआ 20 फिट का रास्ता नही छूटा है। प्रथम दृश्टया नाले पर बाउण्ड्री बाल का बना होना नहीं पाया जाता है। परंतु नाले से लगी हुयी बाउण्ड्री है। लेखपाल द्वारा दी गयी उक्त आख्या ही आला अधिकारियों को भ्रमित करने वाली है। जो आख्या में दर्षाया गया है उसमें कुछ बिंदुओं की पूरी तरह से अनदेखी की गयी है। यही कारण है कि अब उक्त मामले के तूल पकडऩे के बाद तहसील प्रषासन इस मामले में अपने आपको पाकसाफ साबित कर इस मसले को उलझाकर रखना चाहता है ताकि प्रतिपक्षी पक्ष को लाभ पहुंचाया जा सके।
ऐसा नहीं कि यह अकेला मामला ऐसा हो जो नगर के बाहरी क्षेत्र से प्रवाहित नाले के आसपास की जमीनों को भूमाफियाओं ने कब्जा न किया हो। लेकिन ज्यादातर मामलों में भूमाफियाओं की दबंगई के आगे जिम्मेदार अधिकारी भी मौन साधना ही बेहतर समझते है। यही कारण है कि जब भी ऐसे मामलों की कोई व्यक्ति षिकायत कर न्याय पाने का प्रयास करता है तो उसकी षिकायतों पर भ्रमित करने वाली आख्यायें लेखपालों द्वारा दर्ज कर उन्हें कानून की जकडऩ में इस तरह उलझा दिया जाता है कि षिकायतकर्ता न्याय पाने के लिये इधर से उधर भटकता रहता है और अंतत: उसे न्याय से ही बंचित होना पड़ता है।