आत्मीय जुड़ाव ही हमारा एकात्म मानवदर्शन : कृष्ण गोपाल जी

 आत्मीय जुड़ाव ही हमारा एकात्म मानवदर्शन : कृष्ण गोपाल जी
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स्वदेश ने दी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को भावांजलि

एकात्म मानव दर्शन दुनिया का सास्वत जीवन दर्शन है। दीनदयाल जी सहित बुद्ध, शंकराचार्य, महावीर स्वामी, नानकदेव आदि भारत के मनीषियों ने दुनिया के समक्ष उसे अपने-अपने ढंग से प्रतिपादित करने का प्रयास किया। भारतीय परिवार और समाज इस इस जीवन दर्शन को जीता रहा है। मानव या अन्य जीवों से ही नहीं बल्कि निर्जीव वस्तुओं से आत्मीय जुड़ाव और इन निर्जीव वस्तुओं से हमारा आत्मीय जुड़ाव ही एकात्म मानव दर्शन है।
'स्वदेशÓ द्वारा पं. दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशर्ती वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित भावांजलि कार्यक्रम में 'एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकताÓ विषय पर व्याख्यान देते हुए इस तरह का सारगर्भित उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह प्रख्यात विचारक श्री कृष्णगोपाल जी ने दिया।
एकात्म मानव दर्शन की सूक्ष्मतम व्याख्या करते हुए उन्होंने कई ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जो हमारे समाज और परिवारों में एकात्म मानववाद को प्रतिपादित करते हैं। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य में दर्शन जैसी कोई चीज नहीं है वहां तो विचार है। जबकि हमारा दर्शन है। दर्शन को अंतर्रात्मा, अंतर्चच्छुओं से महसूस किया जा सकता है। जबकि विचार बुद्धि से पैदा हुआ है। पाश्चात्य उस वाणी को सुन नहीं पाता, उसे देख और अनुभव नहीं कर सकता। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पाश्चात्य में बच्चे के परिजन और समाज स्वयं मेहनत कर आत्मनिर्भर होने की बात करता है जबकि हमारे परिवारों और समाज में बच्चे के पालन-पोषण, शिक्षा और उसे आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी समाज की होती है। इसी कारण वह बालक बड़ा होकर समाज का हिस्सा बन जाता है और मैं नहीं बल्कि समाज के लिए सोचता है। उन्होंने कहा कि हमारी एकात्म मानव दर्शन की परंपरा करीब 800 वर्ष की गुलामी के दौर में प्रभावित जरूर हुई है।
समय-समय पर महापुरुषों ने इसे पुन: स्थापित करने के लिए कार्य किया है। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने भी अपने तरीके से इसे प्रतिपादित करने के लिए कार्य किया।
उन्होंने कहा कि पाश्चात्य सम्पूर्ण सृष्टि में टकराहट, संघर्ष के विचार को स्वीकार करता है जबकि उन्होंने सतत संघर्ष के मौलिक सिद्धांत को स्वीकार किया है। वह मानते हैं कि इस संघर्ष में वहीं जिएगा जो बलवान है। वहीं आगे बढ़ेगा जो योग्यतम है। जबकि हमने सामन्जस्य, आध्यात्म को आध्यात्म माना। हमने जीव, निर्जीव सभी के अंदर ईश्वर की अनुभूति की। इस ईश्वरांश की अनुभूति धीरे-धीरे बढ़ती है। परिवार के लोग बालक को ज्ञान बोध देकर बताते हैं कि यह अपना है। भारतीय दर्शन में मेरा शब्द आया ही नहीं, हमने विभिन्न पंत, संप्रदायों, भाषा-भाषियों सभी ने एकात्म जीवन दर्शन को अपनाया है। सभी को अपना माना है।
उन्होंने कहा कि आत्मीयता के बोध के कारण ही परिवार बोध पैदा होता है। परमात्मा की अनुभूति से ही एकात्म दर्शन प्रारंभ होता है। पाश्चात्य का विचार यह अनुभूति नहीं कराता। एकात्म दर्शन हमारे जीवन में है, जिसे समझना है तो पहले भारत को समझना होगा। इसे अंतर्चच्छुओं से अनुभव करना होगा।
आत्मबोध अंतर्रात्मा से उत्पन्न होता है। भारतीय समाज में कुंए, नदी, पर्वत, धरती, वाहन, हथियार, आदि के प्रति भी यह दर्शन प्रकट होता है। हर वस्तु के प्रति हमारेपन की धारणा, यह एकात्म है। दीनदयाल जी कहते थे कि यह मन, शरीर के सुख से ऊपर है। आत्मा का आनंद विलक्षण है, यह दूसरों का दुख दूर करने से प्राप्त होने वाला दिव्यानंद है, अंतर्रात्मा का आंनद है। दीनदयाल जी कहते थे कि बच्चे में सामथ्र्य पैदा करने की जिम्मेदारी समाज की है। समर्थ होकर वह बालक समाज को कई गुना देगा।
भारतीय जीवन दर्शन में आश्रम व्यवस्था को श्रेष्ठ बताते हुए उन्होंने कहा कि चारों जीवन अवस्थाओं की व्यवस्था समाज से जुड़ी थी। प्रत्येक अवस्था में आपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना ही एकात्म मानव दर्शन है। मानसिकता मन की सिद्धी है।
विरक्त होने का मतलब परिवार से अलग होना नहीं बल्कि परिवर और समाज में रहकर बच्चों को बढ़ाना, गरीबों की सादियां करने, साफ-सफाई आदि के माध्यम से भी परिवार में रहकर वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम का निर्वहन किया जा सकता है। अंत में उन्होंने उल्लेखित किया कि सारी सृष्टि एकात्म है। उन्होंने बताया कि छीर सागर से वाष्प बनकर उड़ा पानी घास, फल और अनाज उगाता है। उस सागर के पानी से अनाज के अंदर दूध निकलता है। यह एकात्मवाद ही तो है। भारतीय मनीषियों ने इस एकात्म को महसूस ही नहीं किया बल्कि जीवन में उतारा। दीनदयाल जी उसे प्रतिपादित करते हैं यह जीवन की चर्या में है। यह दर्शन है। यही हमारे देश की आत्मा है। देश में कोई विशेष विशेषता नहीं है। देश की विशेेषता हमारा आध्यात्मिक दर्शन है। एकात्म दर्शन को अनुभव करो, इसे आत्मसात करो क्योंकि श्रेष्यकर मार्ग का एक मात्र तरीका एकात्म दर्शन ही है।
केन्द्रीय इस्पात एवं खनन मंत्री नरेन्द्र ङ्क्षसह तोमर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में समाज में स्वदेश के समर्पण भाव से दिए गए योगदान को उल्लेखित किया। साथ ही पं. दीनदयाल उपाध्याय को कुशल संगठक, लेखक, साहित्यकार, अर्थनीति का ज्ञाता, सामाजिक, प्रासंगिक, मौलिक चिंतक और दूर दृष्टा व्यक्तित्व बताते हुए उनके द्वारा दिए गए एकात्म मानववाद के सूत्र को आज के परिप्रक्ष्य में प्रासंगिक बताया। कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत उद्बोधन स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे ने दिया। कार्यक्रम का आरंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन कर किया गया। माँ सरस्वती की वंदना कु. योगिनी ताम्बे ने प्रस्तुत की।

अतिथि परिचय स्वदेश के कार्यकारी संपादक प्रवीण दुबे ने दिया। समर्पण की गीत प्यूस तांबे ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन अतुल अधौलियाने किया। आभार प्रदर्शन स्वदेश के संचालक दीपक सचेती ने किया।
इस अवसर पर स्वदेश प्रकाशन समूह के अध्यक्ष बैजनाथ शर्मा, महापौर विवेक नारायण शेजवलकर, स्वदेश के संचालक यशवर्धन जैन, महेन्द्र अग्रवाल, दीपक सचेती व स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे मंचासीन रहे। , राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल जी ओक, साहित्य परिषद के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्रीधर पराडकर, वरिष्ठ प्रचारक लक्ष्मीनारायण जी भाला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख विनोद जी, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सह प्रांत प्रचार अशोक पोरवाल, क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेंद्र जैन, प्रांत कार्यवाह अशोक अग्रवाल जी, प्रांत सह कार्यवाह यशवंत इंदापुरकर जी, क्षेत्र के शारीरिक प्रमुख प्रवीण गुप्त जी। कार्यक्रम में प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती माया ङ्क्षसह, विधायक जयभान सिंह पवैया, विधायक घनश्याम पिरौनियां, पूर्व मंत्री ध्यानेंद्र सिंह, प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं मुरैना विधायक रुस्तम सिंह, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष वेदप्रकाश शर्मा, भाजपा के संभागीय संगठन मंत्री प्रदीप जोशी, जीडीए अध्यक्ष अभय चौधरी, साडा अध्यक्ष राकेश जादौन, भाजपा अध्यक्ष देवेश शर्मा,पूर्व अध्यक्ष साडा जयसिंह कुशवाह, दतिया से संतोष तिवारी, पाठ्यपुस्तक निगम के उपाध्यक्ष अवधेश नायक, भाजपा जिलाध्यक्ष विक्रम बाबा बुन्देला, जिलाध्यक्ष महिला मोर्चा श्रीमती सुलक्षणा गागोटिया, प्रमोद पुजारी, पूर्व जिलाध्यक्ष राधाकान्त अग्रवाल, किसान मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य इन्द्रपाल सिंह दांगी, रूप सिंह सेंगर, पूर्व अभिभाषक शिवराज सिंह जाट, जिला संघचालक गोविन्द राव जी काले, पूर्व जिला महामंत्री मानवेन्द्र सिंह परिहार, पूर्व विधायक आनूम राम अहिरवार, उपाध्यक्ष जिला अंत्योदय समिति डॉ. रामजी खरे, पार्षद श्रीमती सेवन्ती भगत, पूर्व विधायक रामदयाल प्रभाकर, पूर्व शासकीय अभिभाषक राजेन्द्र तिवारी, अनुसूचित जाति मोर्चा जिलाध्यक्ष मोहन पटवा, युवा मोर्चा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बृजमोहन शर्मा, जिला मंत्री दिनेश शर्मा, जिला मंत्री महिला मोर्चा शशी पस्तोर, पार्षद पिंकी सगर, व्यापार प्रकोष्ठ के संयोजक रमेश नाहर सहित अनेक गणमान्य नागरिक, राजनेता एवं विचारक मौजूद रहे।

स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे की पुस्तक विमर्श का विमोचन

इस अवसर पर स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे की पुस्तक विमर्श का विमोचन भी अतिथियों ने किया। पुस्तक के संबंध में दूरदर्शन के पूर्व निदेशक डॉ. संतोष अवस्थी ने विस्तार से जानकारी दी।



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