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मुट्ठीभर चने लेकिन वजन पूरा चार किलो

मुट्ठीभर चने लेकिन वजन पूरा चार किलो
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महिला एवं बाल विकास विभाग का जादुई कारनामा

विनोद दुबे/ग्वालियर। मुट्ठीभर चने, लेकिन वजन पूरा चार किलो, ना भई ना थोड़ा कम या ज्यादा भी चलता है। चलो 3 किलो 900 ग्राम मान लेते हैं। लेकिन 30-40 पूडिय़ों का बजन तो पूरा 8 किलो मानना ही पड़ेगा। मानोगे कैसे नहीं, चाहो तो रजिस्टर में दर्ज भोजन का वजन देख लो। शासन के खजाने से तैयार इन भारी वजन और मोटी रकम से तैयार पूडिय़ों, चने, हलुआ और दलिया को उन मासूमों को तंदुरुस्त करने के लिए जो खिलाया जाता है, जिन्होंने कभी आंगनवाड़ी की सीढिय़ां ही नहीं चढ़ीं।

पढऩे और सुनने में भलें यह बात अजीब और अचंभित करने वाली लगे, लेकिन इस तरह का जादुई कारनामा विगत कई वर्षों से ग्वालियर के आंगनवाड़ी केन्द्रों पर किया जा रहा है। स्कूल पूर्व की अवस्था में पिछड़ी बस्तियों, मोहल्लों के बच्चों को अच्छा पोषण आहार, मासूमों को स्वच्छ, स्वस्थ वातावरण, खेल-खेल में सामान्य शिष्टाचार और गतिविधियों से अवगत कराने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार की मंशानुरूप राज्य सरकारों द्वारा आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित किए जा रहे हैं। मासूमों को स्वस्थ और सुपोषित रखने हेतु शासन द्वारा जहां आंगनवाड़ी पर पहुंचने वाले मासूमों के लिए दूध पाउडर और पैकिंग में तैयार पोषण आहार सीधे आंगनवाडिय़ों पर भेजा जाता है। वहीं स्थानीय स्तर पर बच्चों को गुणवत्ता युक्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भी समितियों एवं स्व-सहायता समूहों के माध्यम से भोजन उपलब्ध कराए जाने की जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन इन आंगनवाडिय़ों पर बच्चों को सुपोषित करने की बजाय अधिकारी और ठेकेदार अपना पोषण करने में जुटे हैं। मासूमों को दिया जाने वाला पोषण आहार अधिकारियों और भोजन वितरण का ठेका लेने वाले स्व-सहायता समूहों की जेबों में पहुंच रहा है।
इस तरह बढ़ जाता है वजन
ठेकेदार द्वारा सप्ताह में दो दिन बच्चों को उबले हुए नमकीन चने और दलिया दिया जाता है। इसी प्रकार एक दिन पूड़ी सब्जी, हलुआ, मीठे चावल सहित निर्धारित सूची के हिसाब से सप्ताहभर भोजन दिया जाता है। आंगनवाडिय़ों में सप्ताह में दो दिए दिए जाने वाले 250 ग्राम चने को आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से रजिस्टर में 4 किलो तक लिखवाया जाता है। वहीं एक-डेढ़ किलो वजन के गीले दलिया, मीठे चाबल और हलुआ को भी पांच से सात किलो तक लिखवाया जाता है। इसी प्रकार एक से डेढ़ किलो बजन की पूड़ी आठ से 10 किलो बताई जाती हैं। एक छोटे बर्तन में दी जाने वाली सब्जी की मात्रा भी पर्याप्त दर्शायी जाती है।
इस तरह होती है गड़बड़ी
ग्रामीण क्षेत्र के कई आंगनवाड़ी केन्द्र जहां महीने में कई दिनों तक खुलते ही नहीं वहीं जो आंगनवाडिय़ां खुलती हैं उनमें दिया जाने वाला भोजन रजिस्टर में बच्चों की संख्या से कई अधिक दर्शाया जाता है। इसी प्रकार शहरी क्षेत्र की अधिकांश आंगनवाडिय़ों में जहां 90 से 120 तक बच्चे दर्ज हैं,लेकिन आंगनवाड़ी में प्रतिदिन उपस्थिति अधिकतम 10-15 तक ही रहती है। खास बात यह है कि आंगनवाड़ी संचालिकाएं उन बच्चों के नाम भी अपने रजिस्टर में दर्ज कर उनकी प्रतिदिन उपस्थिति दिखाती हैं, जिन्होंने कभी आंगनवाड़ी में प्रवेश ही नहीं किया। इस तरह प्रतिदिन 8 0-90 तक बच्चों की उपस्थिति दर्शाकर इनके नाम के पोषण आहार की फर्जी ऐंट्री कर इसका भुगतान करा लिया जाता है।

इन्होंने कहा

जांच के बाद करेंगे कार्रवाई
‘भोजन वितरण में अनियमितता की शिकायत मिलने पर जांच कराएंगे। भोजन प्रदाता अथवा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जो भी दोषी होगा। नियमानुसार वसूली एवं दण्डात्मक कार्रवाई करेंगे। ’
बृजेश कुमार त्रिपाठी
जिला कार्यक्रम अधिकारी
महिला एवं बाल विकास विभाग ग्वालियर

Updated : 7 Dec 2016 12:00 AM GMT
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