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जनाधार मोदी के साथ

राहुल, ममता, मुलायम जैसे विपक्षी नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लागू नोटबंदी की कितनी ही आलोचना करें, लेकिन देश की जनता प्रधानमंत्री के इस निर्णय के साथ नजर आती है। इस बात के प्रमाण जनता ने एक बार फिर पंजाब में दिये, मंगलवार को जब चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव के नतीजे सामने आए तो इस चुनाव में जोरदार जीत के साथ भाजपा ने बाजी मारी। इससे पहले महाराष्ट्र और गुजरात नगरीय निकाय के चुनावों में भी भाजपा ने रिकार्ड तोड़ मतों से जीत का परचम लहराया था। हम यहां बताना चाहेंगे कि यह सभी चुनाव प्रधानमंत्री द्वारा 8 नवम्बर को किए नोटबंदी के निर्णय के बाद हुए। चंडीगढ़ चुनाव में भाजपा को मिली जीत दो मायनों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है, प्रथम तो यह कि कुछ ही समय बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव होना है। यहां भाजपा और उसके सहयोगी शिरोमणि अकाली दल चुनाव में मुख्य राजनीतिक दलों में शामिल हैं। दूसरी बात यह है कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के निर्णय का विरोध विपक्षी दल खासकर कांग्रेस हर स्तर पर कर रही है और इस चुनाव में भी नोटबंदी एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा था। ऐसी स्थिति में भाजपा की यह जीत आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी कार्यकर्ताओं नेताओं का मनोबल बढ़ाने वाली साबित होगी, साथ-साथ इसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस का मोदी विरोध देश के मतदाताओं को रास नहीं आ रहा। जहां तक नोटबंदी का विरोध है उसे इतर रख दिया जाए और कांग्रेस के प्रदर्शन का विश्लेषण किया जाए तो यह चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए तो और ज्यादा सिरदर्दी भरे बन गए हैं। एक तरफ भाजपा की कांग्रेस मुक्त भारत की घोषणा और दूसरी तरफ कांग्रेस का घटता जनाधार बेहद दयनीय हालात का संकेत दे रहे हैं। चंडीगढ़ चुनाव में कांग्रेस की खस्ता व दयनीय हालत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वह सिर्फ चार सीटों पर ही सिमटकर रह गई। जबकि पिछले तीन चुनावों में उसे नगर निगम चुनावों में बहुमत मिल रहा था। लगातार मिल रही हार के बावजूद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल नोटबंदी के मामले में विरोध का नजरिया बदलने को तैयार नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानी जाए तो आने वाले समय में उत्तरप्रदेश सहित देश के कई अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों को इस बात पर बारीकी से विचार करने की जरूरत है कि नोटबंदी को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया जाए अथवा कोई नए मुद्दों की तलाश की जाए। जहां तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सत्ताधारी गठबंधन एनडीए का सवाल है लगातार मिल रही जीत से उनका मनोबल बढ़ा है, दूसरी ओर अब नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री द्वारा दी गई दिसंबर की समय सीमा भी समाप्ति की ओर है। अब निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री द्वारा देशहित में जनता को राहत देने वाली घोषणाएं की जाएंगी। ऐसी स्थिति में जनता का झुकाव और अधिक तेजी से भाजपा की ओर हो सकता है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों से जनता यह भी सवाल करेगी कि आखिर दस वर्षों में उसने देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इस तरह के कदम क्यों नहीं उठाए।

Updated : 22 Dec 2016 12:00 AM GMT
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