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राष्ट्रगान का सम्मान

देश की शीर्ष अदालत द्वारा सिनेमाघरों में फिल्म प्रारंभ होने से पहले राष्ट्रगान बजाए जाने का आदेश प्रशंसनीय है। चूंकि राष्ट्रगान किसी भी देश के सम्मान से जुड़ा विषय है, इसलिए बिना किसी दबाव के प्रत्येक नागरिक को स्वत: ही इसके मान सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। इसी को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसके मान अपमान को लेकर उठाए जा रहे सवालों पर विराम लगा दिया है। इसके अनुसार सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रध्वज की तस्वीर के साथ जहां राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा,वहीं इस दौरान दर्शकों को भी इसके सम्मान में सावधान की मुद्रा में खड़ा होना होगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और अमिताव राय की पीठ ने कहा है कि यह देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान दर्शाए। पीठ ने कहा है कि ‘यह मेरा देश और मेरी मातृभूमि है’ पीठ ने केन्द्र को निर्देश दिया है कि इस आदेश को हफ्ते भर में लागू किया जाए। इसके साथ ही इस सम्बन्ध में प्रमुख सचिवों के माध्यम से सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को सूचित किया जाए। पीठ ने यह भी कहा कि ‘राष्ट्रगान के लिए जो नियम हैं उसके मूल में राष्ट्रीय पहचान, अखण्डता और संवैधानिक राष्ट्रभक्ति है।’ इसके साथ ही न्यायालय ने अन्य दिशा-निर्देश भी दिए हैं जिसके तहत व्यक्ति राष्ट्रगान बजाने के बदले में व्यावसायिक लाभ नहीं ले, इसका नाटकीय तौर पर प्रयोग भी नहीं किया जाए, अवांछित वस्तुओं पर राष्ट्रगान ना तो मुद्रित किया जाए और ना ही किसी भी रूप में इसे उन पर दर्शाया जाए। न्यायालय ने विभिन्न कार्यक्रमों में राष्ट्रगान बजाने और इसके संक्षिप्त प्रारूप को कहीं भी बजाए जाने पर भी रोक लगा दी है। दरअसल जब कुछ समय पहले सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को लेकर मांग उठी तो इस पर विवाद खड़े हो गए कुछ लोगों का कहना था कि इस तरह राष्ट्रगान का अपमान होगा। कुछ लोगों ने इसे मान्यताओं के विपरीत समझा। लेकिन अब देश की शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि अब समय आ गया है देश के लोगों को समझना होगा कि यह उनका देश है। उन्हें राष्ट्रगान का सम्मान करना होगा क्यों कि यह संवैधानिक राष्ट्रभक्ति से जुड़ा मामला है। उल्लेखनीय है कि विभिन्न देशों में राष्ट्रगान बजाने का रिवाज है। भारत में भी आजादी के बाद सिनेमाघरों में फिल्म खत्म होने पर राष्ट्रगान बजाने की परम्परा थी। लेकिन उस समय लोग घर जाने की जल्दी में होते थे और उसके सम्मान में खड़े रहना उन्हें रास नहीं आता था। इस तरह राष्ट्रगान के अपमान को देखते हुए धीरे-धीरे यह परम्परा अपने आप समाप्त हो गई, हालांकि कुछ राज्यों में अब भी इसका निर्वाह करने के आदेश हैं। लेकिन देखा जा रहा है कि राष्ट्रगान बजते समय इसके सम्मान में जिस तरह सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए वह नहीं किया जाता। इस मामले में स्वयं सरकार ने भी यह कहा था कि इस दौरान जो लोग बैठे रहना चाहें वह बैठे रह सकते हैं। ऐसे में राष्ट्रगान को लेकर कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं होने के कारण लोगों में इसके प्रति मनमानी का भाव ही देखा जाता रहा है। इसी संदर्भ में अदालत ने अपने आदेश में कहा भी है कि देश है तभी लोग स्वतंत्रता का लाभ ले पाते हैं। इसलिए राष्ट्रगान के प्रति सम्मान प्रकट करने में उन्हें गुरेज नहीं होना चाहिए। देखा यह जा रहा है कि राष्ट्रगान के प्रति दूसरे देशों के नागरिकों में ऐसा लापरवाह रवैया नहीं देखा जाता जैसा कि हमारे यहां है। अब जहां तक राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होने को कुछ लोगों की मान्यताओं से जोड़े जाने का सवाल है तो, देश का सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए, इसे किसी और चश्मे से देखने का कोई अर्थ नहीं। कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि ताजा आदेश के बाद सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजते वक्त पहले जैसी स्थिति नहीं होगी। इसका दावा कैसे किया जा सकता है। लेकिन जहां तक राष्ट्रगान के सम्मान की बात है तो यह सामान्य नागरिक बोध का मसला है। इसे किसी दण्डात्मक भय के बजाय लोगों को स्वयं स्वीकार करना चाहिए और जब ऐसा होगा तब ही यह देशभक्ति और राष्ट्रगान के प्रति सच्चा सम्मान होगा।

Updated : 2 Dec 2016 12:00 AM GMT
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