बिना समर्पण शिष्य की साधना नहीं होती फलीभूत

स्वदेश से बातचीत में उस्ताद ने ग्वालियर से बताया अपना भावनात्मक संबंध
ग्वालियर/मधुकर चतुर्वेदी। भारतीय शास्त्रीय संगीत के स्वरों को अपने आंचल में समाए ग्वालियर शहर में जन्में उस्ताद अमजद अली खां सेनिया घराने की उस परंपरा से आते हैं, जिसकी नींव संगीत सम्राट तानसेन ने अपने रबाब से रखी थी। शनिवार को अपने ही शहरवासियों के बीच तानसेन संगीत समारोह में सरोद वादन करने ग्वालियर आए उस्ताद अमजद अली खान ने स्वदेश से बातचीत में अपने घराने को स्वामी श्री हरिदास जी धु्रपद परंपरा से जोड़ते हुए देशवासियों से ग्वालियर के सरोद घर में आकर धु्रपद की वाद्य परंपरा को करीब से देखने का अनुरोध किया।
इस दौरान किए गए:- इस प्रश्र पर कि उस्ताद जी आप सेनिया घराने का प्रतिनिधत्व करते है, फिर स्वामी हरिदास जी से आपका सम्बंध किस प्रकार है? उन्होंने कहा कि हमारे दादा गुरू व पिता हाफिज अली ने वृंदावन-मथुरा के स्वामी हरिदास परंपरा के चोखेलाल व गणेशीलाल से भी संगीत की बारीकियां प्राप्त कीं। इस कारण सेनिया घराना व स्वामी जी की धु्रपद परंपरा हमारी प्रस्तुति में दिखाई देती है। तानसेन ने राग दरबारी की रचना की। आपके वादन में दरबारी कुछ विशेष रहता है। क्या इसके पीछे आपका व्यक्तिगत प्रयोग है?इस सवाल पर उनका उत्तर था नहीं, यह हमारा व्यक्तिगत प्रयोग नहीं हैं। दरअसल गुरूओं से जो प्राप्त हुआ, उसमें अपने मनोभावों को जोड़ते हुए मैं दरबारी बजाता हूं, बाकी ईश्वर की कृपा है। क्या आपने 20 से अधिक रागों की रचना की है, क्या अभी कुछ और रागों का निर्माण जारी है, इस सवाल पर उनका कहना था कि लगातार रियाज और स्वरों के उतार-चढ़ाव को समझते हुए यह प्रयोग आगे भी जारी है। ईश्वर ने चाहा और आपका प्यार यूं ही मिलता रहा तो संगीत की सेवा जारी रहेगी। आप ग्यारह साल बाद तानसेन संगीत समारोह में प्रस्तुती देने आए हैं, ग्वालियर शहर को कितना याद करते हैं? इस पर उस्ताद जी ने कहा कि ग्वालियर में सरोद बजाना मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात हैं, मेरा जन्म यहां हुआ और मेरी पढ़ाई भी। ग्वालियर कला के साधकों की भूमि है। ग्वालियर वासियों के प्यार के कारण ही आज मेरी पहचान है। सरोद घर के कारण भी शहर से भावनात्मक लगाव है। आप सभी सरोद घर आते रहें। मैं चाहता हूं हर साल मेरे बेटे यहां पर सरोद बजाने आते रहें। संगीतकार के लिए श्रोता का कितना महत्व है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि संगीतकार के लिए श्रोता का महत्व कम नहीं है, बल्कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। श्रोताओं की दाद से ही कलाकार का फन निखरता है और उसकी साधना ऊंचाईयों पर पहुंचती है।