योग्यता मानक पर खरे न उतरने वाले 62 कर्मचारी फिर भृत्य बने
भोपाल। माध्यमिक शिक्षा मंडल में बिना योग्यता के बाबू का काम संभाल रहे 62 कर्मचारियों की पदोन्नति शिक्षा विभाग ने निरस्त कर दी है। इन कर्मचारियों में ज्यादातर चतुर्थ श्रेणी के भृत्य एवं पंप अटेंडर व चपरासी है जिन्हें 2010 में बिना योग्यता के सहायक ग्रेड-3 के पद पर पदोन्नत किया गया था। बिना योग्यता और प्रमाण-पत्र के अधिकारियों ने इन्हें कैसे पदोन्नति दे दी, यह बड़ा सवाल है।
वर्ष 2010-11 में माध्यमिक शिक्षा मंडल में सहायक ग्रेड-3 के 60 से ज्यादा खाली पद भरने के लिए तत्कालीन आईएएस लक्ष्मीकांत द्विवेदी ने माध्यमिक शिक्षा मंडल में काम करने वाले भृत्य, पंपमैन व चपरासियों को बिना योग्यता के सीधे सहायक ग्रेड-3 के पद पर पदोन्नति दे दी। नियम विरूद्ध पदोन्नति की जब शिकायत हुई तो शिक्षा विभाग ने जांच बिठा दी। जांच का मुख्य आधार कर्मचारियों की योग्यता के दस्तावेज तय हुआ। पांच साल चली जांच के बाद उप सचिव ने सभी कर्मचारियों की नियुक्ति को गलत पाये जाने पर आदेश जारी कर सभी पदोन्नति को निरस्त कर दिया है। भृत्य के अलावा मंडल में चतुर्थ श्रेणी में काम करने वाले पंपमैन व रूम अटेंडरों को भी पदोन्नति मिली है। इनमें से कोई भी कर्मचारी सहायक ग्रेड-3 की योग्यता नहीं रखते थे।
ज्यादातर तो 8वीं और 9वीं फेल है। बावजूद इसके मंडल ने इन्हें बाबू बनाया, जबकि नियमानुसार सहायक ग्रेड-3 के लिए उम्मीदवार को 12वीं उत्तीर्ण और टायपिंग का प्रमाण पत्र होना जरूरी है। लेकिन इन कर्मचारियों के पास ये दोनों ही योग्यता नहीं है। नियम विरूद्ध हुई पदोन्नति से चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को सहायक ग्रेड-3 का जो वेतनमान पिछले पांच सालों में मिल चुका है, मंडल उसे कर्मचारियों के वेतन से वसूल करेगा। जानकारों के मुताबिक पदोन्नति गलत है तो पदोन्नति दिनांक से आदेश निरसत होने तक जो वेतनमान दिया गया है, वह वापस कर्मचारियों से वसूल किये जाने का प्रावधान है।