आतंकियों का खात्मा ही उचित

आतंकियों का खात्मा ही उचित
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आतंकवाद या आतंकवादियों का कोई धर्म या मजहब नहीं होता, उनकी पहचान तो इंसानियत के दुश्मन के रूप में ही की जा सकती है। इस स्थिति में उनका खात्मा जैसे भी हो वह सही है। जी हां, हम यह बात भोपाल जेल से भागे आठ सिमी आतंकवादियों की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत केे संदर्भ में कह रहे हैं, हालांकि इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं कि यह आतंकी आखिर जेल से भागने में कामयाब कैसे हो गए। वहीं हैरत की बात तो यह है कि घटना के तीन दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस इनके मददगारों का सुराग तक नहीं लगा सकी है।

क्योंकि मुठभेड़ को लेकर उस पर उठ रहे सवालों में ही वह उलझकर रह गई है। हालांकि प्रदेश ही नहीं देश की जेलों की हालत कैसी है और उनमें किस तरह सेंध लगाई जा सकती है यह किसी से छिपा नहीं है। यह भी सच है कि ऐसी घटना केवल भोपाल जेल में ही नहीं हुई जिसमें कि बंद सजा भुगत रहे कैदी भागे हों। यह बात अलग है कि इस बार यह दुर्दांत आतंकी थे और इन्हें पुलिस ने कुछ समय में ही ढेर कर दिया। लेकिन इस स्थिति में भी सवाल फिर वही है कि आखिर आतंकियों ने जेल में सेंध कैसे और किसकी मदद से लगाई। बताया जाता है कि घटना के बाद जेल में चल रही सर्चिंग ऑपरेशन में आतंकियों के बैरक से कई ऐसे पर्चे और दस्तावेज मिले हैं जिनमें हिन्दी, उर्दू में लिखे पर्चों में स्पष्ट रूप से यह अंकित है कि वे (आंतकी) दीपावली मनाने घर आ रहे हैं।

यह सब इस बात का संकेत हैं कि इन लोगों ने जेल से फरार होने की योजना पहले ही तैयार कर ली थी। लेकिन यहां सीधे-सीधे जेल प्रशासन की लापरवाही दिखाई देती है कि उसे उनकी इस कारगुजारी या योजना की भनक तक नहीं लगी, फिलहाल इन पर्चों की जांच चल रही है,यह देखा जा रहा है कि जो नक्शा उसमें मिला है कहीं वह उस जगह का तो नहीं जहां कि वह छिपे हुए थे और पुलिस ने उन्हें अपना निशाना बना लिया। इस पूरे मामले के जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे यह खुलासा हुआ है कि जेल के कर्मचारियों से लेकर अधिकारी तक इनसे भय खाते थे। यह आतंकी किसी प्रहरी के परिवार को खत्म करने की धमकी देते थे तो किसी के बच्चे को मार देने की। स्थिति यह थी कि कोई भी इन लोगों से कुछ भी कहने से डरता था, यहां तक कि इनकी बैरकों की तलाशी भी ठीक से नहीं ली जाती थी, ना ही इन पर कोई सख्ती की जाती थी।

ऐसी स्थिति में यह भी हो सकता है कि इन्होंने किसी को धमका कर अपनी मदद करने के लिए मजबूर किया हो। लेकिन फिलहाल जो कुछ भी हुआ वह ठीक ही हुआ आतंकियों का मरना ही ठीक था, क्यों कि यदि वह ऐसे नहीं मारे जाते तो ना जाने कितने मासूम और निर्दोषों का खून बहाते। लेकिन यह भी सच है कि हमें अपनी जेलों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता है, क्यों कि आज तो यह आतंकी पुलिस ने मुठभेड़ में ढेर कर लिए लेकिन आगे शायद ऐसा न हो सके और ऐसे आतंकी हमारी चूक का फायदा उठाने में कामयाब हो जाएं यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी इसे गंभीरता से लेते हुए जेल से आतंकियों के फरार होने को लेकर कई सवाल उठाए हैं और जेल की चौकस सुरक्षा पर बल दिया है।


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