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राष्ट्रवादी नेतृत्व इसलिए पसंद है अमेरिका को

डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत से मीडिया काफी परेशान है जर्मनी के डाइट बेल्ट नाम के अखबार ने ट्रम्प की सीधी तस्वीर लगाई लेकिन खबर उल्टी लिखी। यह अखबार ट्रम्प की जीत से इतना दुखी हुआ कि उसने लिखा कि रियलिटी स्टार की जीत से दुनिया उल्टी पुल्टी हो गई। आतंकी संगठन आईएसआई एवं जेहादी नेटवर्क ने ट्रम्प की जीत पर इस तरह खुशी मनाई कि अब ९/११ के बाद अमेरिकियों ने खुद ११/९ की तैयारी कर ली।

फ्रांस के अखबार लिबरेशन ने एक तस्वीर प्रकाशित की जिसमें ट्रम्प का हाथ दिखाई दिया। मीडिया की अपनी-अपनी प्रतिबद्धता हो सकती है लेकिन सबसे गहरा दर्द अमेरिका एवं अन्य देशों के मीडिया का यह कि उनका आंकलन एवं भविष्यवाणी गलत हुई। वैसे तो भारत की जनता को अनुभव है कि सन २०१४ के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कुछ मीडिया घरानों ने अभियान चलाया था, ओपेनियन पोलों में कोई भी मोदी लहर की सच्चाई जानते हुए भी भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं दे रहा था, इसके बाद भी स्पष्ट बहुमत के साथ भाजपा को जनता ने केन्द्र का शासन करने का अधिकार दे दिया। अमेरिका भी लोकतांत्रिक देश है, वहां राष्ट्रपति के हाथ में शासन के अधिकार रहते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के लिए दुनिया की जिज्ञासा इसलिए अधिक थी कि अमेरिका के पास डालर एवं परमाणु शक्ति सबसे अधिक है, उसकी नीतियों से दुनिया प्रभावित होती है। यह सच्चाई है कि रिपब्लिकन के डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव जीत गये और उन्होंने मीडिया के आंकलन को गलत कर दिया। ट्रम्प ने मीडिया के विरोधी प्रचार की परवाह नहीं की। ट्रम्प ने तीन शादियां की, उनके महिलाओं से अवैध संबंध रहे हैं, उनको शासन प्रशासन का अनुभव नहीं है। जब भारतीयों के बीच ट्रम्प ने कहा कि वे हिन्दुओं एवं नरेन्द्र मोदी के फैन (प्रशंसक) हैं, वे नरेन्द्र मोदी के साथ आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में खड़े रहेंगे।

जब उन्होंने मुस्लिमों पर संदेह व्यक्त किया तो उनके खिलाफ यह प्रचार हुआ कि वे मुस्लिमों के खिलाफ हैं, जब उन्होंने अमेरिका को महानता के शिखर पर पहुंचाने का संकल्प व्यक्त किया तो उन्हें प्रखर राष्ट्रवादी कहकर एक दो मीडिया ने तो उनके रवैये को हिटलरी बता दिया। ट्रम्प की बातों से चाहे मीडिया बौखलाया हो, लेकिन हिन्दू और नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा से अमेरिका में बसे भारतीय जिनमें अधिकांश हिन्दू हैं, अभी तक वहां का हिन्दू डेमोके्रट पार्टी का समर्थक माना जाता था, लेकिन उनके कथन से अधिकांश भारतीयों ने भी ट्रम्प के पक्ष में मतदान किया। पाश्चात्य लोकतंत्र की यह विडंबना है कि बहुमत से विजय प्राप्त होती है। अमेरिका में दो दलीय धु्रवीकरण है, लेकिन भारत में त्रिकोण या अधिक का चुनावी संघर्ष होने से जो कुल मतदान के तीस प्रतिशत भी मत प्राप्त करता है वह जीत जाता है। इस सच्चाई को नकारना लोकतंत्र का अपमान होगा कि अमेरिकी जनता ट्रम्प विरोधी है। ट्रम्प को वहां की जनता का समर्थन और बहुमत मिला है, आवेश में छह सात अमेरिकी प्रदेशों में ट्रम्प विरोधी प्रदर्शन हुए, मोमबत्ती जलाकर रैलियां निकाली हों, लेकिन ट्रम्प की विजय को अमेरिकी जनता को स्वीकार करना लोकतांत्रिक बाध्यता है। ट्रम्प हमारा राष्ट्रपति नहीं, ट्रम्प को मारो के नारे अमेरिकी लोकतंत्र को ही प्रताडि़त करेंगे। हालांकि विरोधी प्रदर्शनों के बाद भी यह स्वीकार करना होगा कि ट्रम्प के साथ अमेरिकी जनता का बहुमत है। अमेरिकी जनता ने मीडिया की ट्रम्प विरोधी गर्जना को नकार दिया। जनमत सर्वे पर भी ध्यान नहीं दिया। यह चिन्तन मीडिया का विषय है कि उनके आंकलन और सर्वे जनमत से अमेरिका के लोग प्रभावित नहीं हुए, ट्रम्प विरोधी धुआंधार प्रचार के बाद भी अमेरिका की जनता ने उनको राष्ट्रपति के योग्य समझा। जिस तरह भारत के मीडिया की कठिनाई यह है कि वे एयर कंडिशन में बैठकर घिसे पिटे फार्मूलों के गणित से जीत हार का आंकलन करते हंै, उन्हें उस पगडंडी की सच्चाई का पता नहीं रहता जहां आम लोग धूल का अभिषेक कराते चलते हैं। इसी प्रकार अमेरिका, ब्रिटेन का मीडिया जो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का मुखौटा लगाकर अपनी बातों का ढिंढोरा पीटता है। हमारा देशी मीडिया इन विकसित देशों के मीडिया की बातों पर भरोसा कर उनके संदर्भ के साथ अपना आंकलन करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह वहां के लोगों ने हिलेेरी क्लिंटन को नकारा, उसी तरह अमेरिकी मीडिया को भी नकार दिया। इससे यह जाहिर हो गया कि अमेरिकी मीडिया भी शिकागो, वाशिंगटन की आसमान छूती इमारतों में बैठकर अपना बौद्धिक विलास करता है। उनके आसपास भी ऐसे कथित बुद्धिजीवियों का घेरा रहता है, जो जनता की जमीनी सच्चाई से दूर रहते हैं या समझ नहीं पाते। मीडिया के विश्वास का क्षरण क्यों हुआ? क्या वह स्थापित मूल्यों के सरोकारों से हट गया है। मीडिया के मूल्यों के सरोकारों की जब चर्चा होती है तो गर्व से यह कहा जाता है, भारत में अंग्रेजों की गुलामी से संघर्ष में राष्ट्र चेतना जागृत करने में प्रमुख भूमिका पत्रकारों की रही। उस समय प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता थी, अब वैसी नहीं है। अब तो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के सामने विश्वसनीयता का संकट है, खबरें उल्टी छापकर वह अपनी खीझ निकाल सकता है, चाहे अपनी पीड़ा को ट्रम्प विरोधी प्रदर्शन को हवा देकर व्यक्त करें, लेकिन सच्चाई यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प अब वाइट हाउस में राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन होंगे। लोकतंत्र की प्रक्रिया चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल, हमें स्वीकार करना होगा। अमेरिका में जो विदेशी अवैध तरीके से रह रहे हैं, उनको कठिनाई हो सकती है अमेरिका की गरीबी, बेरोजगारी की बात करना हर नेतृत्व का दायित्व है।

यह भी बहस और निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प की जीत राष्ट्रवादी विचारों की जीत है, मीडिया ने ट्रम्प की जीत की तुलना नरेन्द्र मोदी से की है। जिस तरह श्री मोदी ने राष्ट्रवादी नीतियों का उद्घोष चुनाव में किया। भारत को महान बनाने, बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार मिटाने की बात कही। आतंकवाद और दुश्मन देश के हमलों के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाने की नीति को प्रस्तुत किया। राष्ट्रवादी विचार को भारत और अमेरिका की जनता ने पसंद किया है। राष्ट्रवादी नेतृत्व ही देश का भला कर सकता है। उसकी एकता अखंडता को सुरक्षित रख सकता है। दुनिया में एक समय साम्यवादी विचारों को मानव कल्याण का अमृत माना जाता था, लेकिन वह मानव के विनाश का कारण बना, उसी से स्टालिन और माओ जैसे तानाशाह पैदा हुए। भारत से सेक्यूलरी पाखंड के कारण सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई। मानववादी नीतियों का सीमा पर खून होता रहा। अब भारत की एक सौ तीस करोड़ की जनता ने राष्ट्रवादी श्री मोदी का नेतृत्व और नीतियों को पसंद किया है। इसी प्रकार अमेरिका की जनता ने ट्रम्प की राष्ट्रवादी नीतियों का समर्थन कर उन्हें राष्ट्रपति पद पर बैठाने का निर्णय लिया। इस समीक्षा में यह आंकलन हो सकता है कि दुनिया में राष्ट्रवादी विचारों को जनता का समर्थन मिल रहा है। इस सच्चाई को समझकर ही मीडिया को अपना आंकलन करना होगा। जनता के विचार प्रवाह पर अपनी बातें बलात् थोपने से मीडिया की उपयोगिता पर ही सवाल उठ सकता है।

लेखक-राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार

Updated : 15 Nov 2016 12:00 AM GMT
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