देशभक्ति की बातों से कुछ लोग परेशान क्यों: अनुपम खेर
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तीन दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श ‘लोक-मंथन’ का समापन
प्रदेश की राजधानी भोपाल में सोमवार को संस्कृति विभाग और प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय विचारधारा और तेजस विचारों तथा नवाचारों के अभ्युदय के साथ लोकमंथन संपन्न हुआ। स्व की खोज से ही राष्ट्रवाद का आधार और अपनी राष्ट्रीयता की संकल्पना और अवधारणाओं तक हम पहुंच सकेंगे, इन विचारों का मंथन इन तीन दिनों में हुआ। मंथन में समापन के दिन तेजस्वी विचारों और भारतीयता के नव-निर्माण को लेकर जाने-माने वक्ताओं, विद्वानों ने सभागार की गरिमा बढ़ायी। और विचारों के प्रवाह से ऐसा समां बांधा कि हर कोई मंथन से निकले अमृत का रसास्वादन कर ही आयोजन स्थल से बाहर निकला। आज के विद्वानों में जहां सोनल मानसिंह, कपिल तिवारी की जुगलबंदी थी, वहीं अनुपम खेर और तिब्बत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं बौद्ध धार्मिक गुरू सोमदोंग रिनपोछे की अनुभवी और विद्वतापूर्ण वाणी से ओज का प्रवाह सुनते ही बनता था। प्रज्ञा प्रवाह के उपाध्यक्ष डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी के सारगर्भित समापन भाषण ने सदन की गरिमा में चार चांद लगा दिए। वहीं समानांतर सत्र में भारतीय फि ल्मों का बदलता परिवेश विषय पर फि ल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री, सांसद रूपा गांगुली और फि ल्म निर्माता-निर्देशक मधुर भंडारकर ने फि ल्मों के बदलते परिदृश्य को संस्कृति से जोड़ते हुए सामुदायिक लोक-संस्कृति परंपरा का आधार और जीवन व्यवहार के आचारण पर प्रकाश डाला।
भोपाल, ब्यूरो। आज हम देशभक्ति की बात करते है तो कुछ लोगों को परेशानी होने लगती है। वह कहते है कि देशभक्ति हमें सिखाओ। यह सही है कि कोई किसी को देशभक्ति नहीं सिखा सकता, यह तो भीतर से आती है। लेकिन यह बात समझ नहीं आती कि देशभक्ति की बात करने पर आज कुछ लोगों को तकलीफ क्यों होने लगती है? देशभक्ति हमारे खून में है। जब भी अवसर आता है, यह प्रकट होती है। देशभक्ति की बात से यदि किसी को पीड़ा होती है तो होने दीजिए, हम तो अपना काम करेंगे। यह विचार प्रख्यात अभिनेता अनुपम खेर ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन लोकमंथन के समापन अवसर पर व्यक्त किये। समारोह के अध्यक्ष प्रख्यात फिल्म निर्देशक डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी, मुख्य अतिथि तिब्बत की निर्वासित सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री सामदोंग रिनपोछे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख एवं लोकमंथन आयोजित समिति के महासचिव जे नंदकुमार और प्रदेश के संस्कृति मंत्री सुरेन्द्र पटवा उपस्थित थे।
श्री खेर ने कहा कि पिछले दो-तीन वर्षों में असहिष्णुता और देशभक्ति के विषय जानबूझकर उठाए गए हंै। जब असहिष्णुता की बहस शुरू की गई, तब मेरे भीतर का भारतीय जागा और उसने कहा कि यह चुप रहने का समय नहीं है। इस कारण मैने असहिष्णुता का खुलकर विरोध किया। उन्होंने बताया कि कुछ लोग देश प्रेम की बात करने वालों की उपेक्षा करने का प्रयास करते हैं।
सवाल है कि आखिर देशभक्ति की बात करने पर हम रक्षात्मक क्यों हो? खेर ने बताया कि वह कश्मीरी पंडित है, इसलिए उनके रगों में देशभक्ति है। अपने ही देश में निर्वासित होने के बाद भी कश्मीरी पंडितों ने भी देश के खिलाफ कोई बात नहीं कही है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक भारतीय के लिए राष्ट्र सबसे पहले होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के अंगुलियों के निशान दुनिया में किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिलते हैं। अर्थात प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है। हम सबकी अलग-अलग पहचान है, लेकिन सबसे पहली पहचान भारतीय है।
नई दिशा देगा लोकमंथन
बौद्ध धार्मिक गुरु सोमदोंग रिनपोछे ने लोकमंथन के आयोजन को समयानुकूल बताते हुए कहा कि यह कार्यक्रम एक नई दिशा देगा। लोकमंथन इसलिए आवश्यक है, क्योंकि देश, काल, स्थिति को विचार के रूप में स्वीकार करते हुए राष्ट्र सर्वोपरि को महत्व दिया है। आज चारों की स्थितियां सहज नहीं हैं देश में प्रदूषण का बोलवाला है। स्वच्छ पानी नहीं है, गति की शीघ्रता एवं स्थिति की स्थिरता ने विचित्र परिस्थिति पैदा कर दी है। हर व्यक्ति चुनौतियोंं की चर्चा करता है। समाधान किसी के पास नहीं है। हिंसा की अत्याधिक वृद्धि ,युद्ध और आतंकवाद के रूप में दिखाई देती है। मनुष्य कहीं भी स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करता है। क्योंकि, जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे लोभ और व्यापार है। उन्होंने कहा कि महाभारत का युद्ध 18 दिन में समाप्त हो गया, लेकिन वियतनाम का 18 वर्ष चला। अपना शस्त्र बाजार बनाये रखने के लिए तब भी हिंसा हुई, जो आज तक जारी हैं उन्होंने कहा कि प्रदूषण के लिए प्लास्टिक को जिम्मेदार ठहराया जाता है, किन्तु प्लास्टिक उत्पादन रोकने की बात नहीं होती।
विमर्श आगे ले जाना होगा: डॉ. द्विवेदी
लोकमंथन आयोजन समिति के कार्याध्यक्ष डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने इस अवसर पर कहा कि शास्त्र ने कहा कि दूसरा कोई नहीं है। लोक के प्रति कबीर ने कहा कि प्रेम गली अति संकरी, जा में दोई न समाए। अत: यहां सभागार में दूसरा कोई है ही नहीं। अत: प्रिय आत्मन सबसे पहले विचार करते हंै कि दासता क्या होती है, साथ ही विदेशी दासता से मुक्ति की इच्छा भी है। उन्होंने बताया कि सिंकदर के एक सैनिक ने ऋषि सेलेटस से पूछा कि ज्ञान चर्चा करनी है। ऋषि ने कहा कि वस्त्र उतार और मेरे पास शिला पर लेट जा। वस्त्र उतारने के लिए तैयार नहीं तो मन पर पर्दे कैसे उतारेगा। हमने लोकमंथन में मन पर पड़े पर्दे उतारने की कोशिश की है। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि गायों को गिनने से दूध नहीं मिलता। क्या सिर्फ बौद्धिक विमर्श से समाज को अमृत मिल जायेगा? इस विमर्श को आगे ले जाना होगा, परिवार में, समाज में, सब जगह यह मंथन जारी रखना होगा। मंथन में बहुत अधिक लोगों की आवश्यकता नहीं होती। गीता का अमृत कृष्ण और अर्जुन के संवाद से निकला। पंडित मदन मोहन मालवीय ने कहा है कि मुझे विश्व की चिंता है, इसलिए भारत की चिंता करता हूं। क्योंकि विश्व के सभी प्रश्नों का उत्तर भारत से मिलेगा। वहीं, गुरु गोलवलकर ने कहा कि दुर्जनों की सक्रियता से उतनी हानि नहीं हुई जितनी सज्जनों की निष्क्रियता से हुई है। इससे पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे नंदकुमारजी ने लोकमंथन की रिपोर्ट पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन लोकमंथन के संयोजक दीपक शर्मा ने किया।