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धन्य था डॉ. पापरीकर का व्यक्तित्व - प्रवीण दुबे

धन्य था डॉ. पापरीकर का व्यक्तित्व - प्रवीण दुबे
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कर्मनिष्ठ, कुशल संगठक और सबको साथ लेकर शहर विकास का सपना संजोने वाले वयोवृद्ध समाजसेवी डॉ. पापरीकर आज हमारे बीच से चले गए। समझ में नहीं आता दुख और मातम की इस करुण रात्रि में उनके लिए सम्मान के किन शब्दों का इस्तेमाल करूं। वे देश के लिए स्वतंत्रता समर में लडऩे वाले योद्धा थे तो दूसरी ओर राजनीति की रपटीली राहों में स्वयं को यथायोग्य स्थिर रखकर कर्मशीलता की छाप छोडऩे वाले नेता भी थे, वे ऐसे समाजसेवी थे जो राजनीतिज्ञ के रुप से तो कांग्रेस जैसे गांधीवादी दल से जुड़े थे लेकिन वैचारिक पृष्ठ भूमि में सावकरवादी नजर आते थे। एक कांग्रेस नेता ने कभी शिवाजी के विचारों और संस्कारों को नई पीढ़ी में प्रसारित करने का शायद ही कभी ऐसा प्रयास किया हो जैसा कि डॉ. पापरीकर ने किया। उन्होंने जीवन पर्यन्त छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा की स्थापना के लिए संषर्घ किया तो शिवाजी जयंती जैसे आयोजनों में भी बढ़चढक़र भाग लेते रहे। डॉ. पापरीकर ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सदैव राष्ट्रीय विचारों और देशहित को महत्व दिया इसके लिए उन्होंने कई बार इस बात का भी परहेज नहीं किया कि वे पार्टी की लक्ष्मण रेखा लांघकर जो कर रहे हैं उसका असर उनके राजनीतिक भविष्य पर विपरीत पड़ सकता है।

वे शहर विकास के मामले में सभी राजनीतिक दलों को साथ लेकर काम करने के पक्षधर थे, उन्होंने कई बार स्वयं इसके लिए आगे बढक़र प्रयास किया। डॉ. पापरीकर की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अपने धुर वैचारिक विरोधी राजनीतिक दल और समाजसेवी संगठनों के राष्ट्रहित से जुड़े कार्यक्रमों और आयोजनों में उसी उत्साह से शामिल होते थे, जैसे कि किसी पारिवारिक समारोह में आए हों। इसके लिए कई बार उन्हें अपने ही दल के नेताओं का उलाहना भी सहना पड़ा लेकिन डॉ. पापरीकर ने इसकी कतई चिंता नहीं की। अपने राजनैतिक व सामाजिक जीवन में उन्होंने ऐसे काम किए जो सदैव याद रखे जाएंगे।

आज शहर में कांग्रेस का जो भव्य कार्यालय स्थापित है उसके पीछे डॉ. पापरीकर का ही मुख्य योगदान रहा है। नेहरु पार्क की स्थापना के लिए भी डॉ. पापरीकर ने संषर्घ किया। शहर में शिवाजी महाराज की प्रतिमा से सुशोमित उद्यान भी पापरीकर की लगन और प्रेरणा का प्रतीक है।

आज के समय में उनके व्यक्तित्व की सबसे प्रेरणादायी बात यह है कि सौ वर्ष की उम्र पूर्ण करने के बावजूद डॉ. पापरीकर की जीवटता और सक्रियता पूरे समाज में सदैव याद की जाती रहेगी। उस उम्र में जब सामान्य व्यक्ति चार कदम चलने में भी स्वयं को कमजोर मान लेता है डॉ. पापरीकर प्रात: 5 बजे कैंसर अस्पताल की पहाड़ी पर प्रात: भ्रमण करते दिखाई देते थे। वास्तव में धन्य था उनका व्यक्तित्व आज की पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेने की जरुरत है।


Updated : 25 Oct 2016 12:00 AM GMT
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