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ये मौलाना हैं मुस्लिमों की प्रगति में बाधक

मौलाना रहमानी की बातों में कहीं देश और आतंकवाद की बातों की चिंता दिखाई नहीं दी, इससे ऐसा लगता है कि ये मौलाना उसी मोहम्मद अली जिन्ना की प्रति छाया हैं, जिस तरह इस्लामी उसूलों का ज्ञान नहीं होने पर भी जिन्ना भारत के मुस्लिमों और मजहब का ठेकेदार बन गया और मजहबी राष्ट्रीयता का जहर घोलकर उसने भारत के खूनी विभाजन का पाप किया। जिसके दुष्परिणाम भारत आज भी भुगत रहा है। सरकार के साथ मुस्लिम समुदाय जो प्रगति के आलोक में अपना भविष्य निर्धारित करना चाहते हैं वे ऐसे जिन्नावादी मौलानाओं से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मुक्त करें। यह भ्रम भी मुस्लिमों को दूर करना होगा कि ये मौलाना ही इस्लाम के प्रतिनिधि हैं।

मु स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो मुस्लिमों का स्वयं को एक मात्र ठेकेदार समझता है, वह न केवल लॉ कमिशन के सोलह सवालों के बहिष्कार की बात कर रहा है वरन उसके महासचिव व मौलाना मोहम्मद वली रहमानी कह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी से सरहद तो संभल नहीं रही, लेकिन मुस्लिमों के खिलाफ जंग छेड़ रहे हैं, ऐसी क्या बात हो गई कि वे सरहद और जंग की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दशहरे के दिन लखनऊ की प्राचीन रामलीला के मंच से केवल इतना कहा था कि चाहे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख की बेटियां हों, उन्हें बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। इस बात की चुभन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना को इसलिए हुई कि वे इसे उनकी मजहबी ठेकेदारी पर प्रहार मानते हंै, प्रधानमंत्री ने तीन बार तलाक का भी कोई संदर्भ नहीं दिया, फिर भी बोर्ड मौलाना इस बर्बर तलाक प्रथा के कब्रगाह की बात करने लगे हैं। इन्हें इससे कोई सरोकार नहीं कि मुस्लिम महिलाएं पुरूष के तीन बार तलाक कहने से किस प्रकार की दुर्दशा में जीवन व्यतीत करती है। एनजीओ ‘बीएमएमए’ में कहा गया है कि ९२ प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक की प्रथा को खत्म करना चाहती हैं अर्थात अधिकांश मुस्लिम महिलाएं अत्याचारी तीन तलाक की रूढ़ी को कब्र का रास्ता दिखाना चाहती हैं। मौलाना रहमानी जैसे कथित मजहबी ठेकेदार न कुरान की आयतों पर, न हदीश पर और न मुस्लिम परम्पराओं पर खुली बहस को तैयार होते, उन्हें मुस्लिमों की अशिक्षा गरीबी और पिछड़े रहने का भी गम नहीं है न ये मुस्लिमों को विकास की स्पर्धा में शामिल करना चाहते है, बल्कि इन्हें मतलब है अपनी मजहबी ठेकेदारी से, ये तो चाहते हैं कि मुस्लिम महिला पुरूष अशिक्षित बना रहे, जिससे उसमें सच्चाई जानने की क्षमता न हो और न वे मजहब का गहराई से चिंतन कर सकें।

जिस तरह पाकिस्तान का आतंकी सरगना हाफिज सईद अपने जोशीली तकरीरों में भारत के खिलाफ जिहाद की बात करता है, वह भी हमेशा जंग की बात करता है और भारत की सरहदों को लांघ कर भारत के टुकड़े करने की धमकी देता है। इसी तरह की बातें मौलाना मोहम्मद वली वानी ने कही है, वे भी सरहद और जंग की बाते कहकर अपने जहरीले विचारों की जुगाली कर रहे हैं। हाफिज सईद न केवल इस्लाम के चेहरे को खूंखार बना रहा है वरन उससे पाकिस्तान भी कठिनाई में पड़ गया। हाफिज सईद, मसूद जैसे आतंकियों के कारण ही पाकिस्तान को दुनिया आतंक का जनक मानने लगी है, अब वह न केवल इस्लाम की बल्कि पाकिस्तान की गले की हड्डी बन गया है, जिसे न उगल सकता है और न निगल सकता है। ऐसी ही बातें मौलाना रहमानी ने की है। जिसके खिलाफ वे जंग का ऐलान कर रहे हैं। क्या सरकार से क्या भारत की राष्ट्रीयता से या भारत के कानून से? यदि मौलाना रहमानी या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में बुद्धि कौशल होता, यदि उनको कुरान या हदीश का हनन होता, यदि वे तर्क कर सकते तो हो जाने देते लॉ कमिशन के सोलह सवालों पर खुली बहस। वे मजहबी उसूलों के आधार पर सवालों का उत्तर देते। लेकिन उनमें मजहबी उसूलों का पूरा ज्ञान नहीं होने से हाफिज सईद जैसी जंग की बातें करते है। ऐसा लगता है कि वे ऐसे मौलाना है जो नमाज माइक लगाकर जोर शोर से पढ़ते है लेकिन उनसे अरबी नमाज का अर्थ पूछो तो वे इधर-उधर की उड़ान भरेंगे। ऐसा लगता है कि उनके विकृत विचारों पर भी सर्जिकल सट्राइक की जरूरत है।

जब तक मुस्लिम समाज ऐसे मजहबी ठेकेदारों के चंगुल से मुक्त नहीं होगा, तब तक उन्हें अपनी उन्नति के अवसर नहीं मिल सकते। जब कहा जाता है कि मुस्लिम सबसे अधिक पिछड़े, अशिक्षित और गरीब क्यों हैं तो दुर्दशा की समीक्षा में यही सच्चाई सामने आयेगी कि मुस्लिम लॉ बोर्ड के मौलाना हों, किसी मजिस्द के इमाम हो, ये मुस्लिमों की दबी, कुचली स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं, ये मजहब के नाम पर मुस्लिमों को पुरानी अप्रासंगिक रूढिय़ों का गुलाम बनाकर रखना चाहते हंै। ये मौलाना रहमानी ऐसे नेताओं की तरह हैं जो अपने ऐशो आराम के लिए जनता के धन पर डाका डालते हैं, फर्क केवल इतना है कि नेता जनता की भलाई के नाम पर शोषण करते हैं और ये मौलाना मजहब के नाम पर मुस्लिमों की बर्बादी का कारण बन गये हैं। यह सवाल चिंतन और बहस का रहा है कि मुस्लिमों की गरीबी, अशिक्षा के लिए क्या सरकार की नीतियां जिम्मेदार हंै, क्या उन्हें हिन्दुओं या अन्य नागरिकों के समान अधिकार और अवसर प्राप्त नहीं हैं? इसका उत्तर संविधान के विशेष अधिकार और अवसर से मिल जायेगा। क्या मुस्लिम वर्ग में यह बहस नहीं होना चाहिए कि अन्य समुदाय के गरीब घरों के बेटे-बेटियां भी उच्च शिक्षा को प्राप्त करने की स्थिति में हैं।

महिलाएं भी पुरूष से हर क्षेत्र में आगे निकल रही है। इन मजहबी ठेकेदारों ने मजहब के नाम पर जो अवरोध खड़े किये है, इनके कारण न केवल मुस्लिम महिलाएं वरन पुरूष भी वही हैं, जहां सौ वर्ष पूर्व थे। उनकी स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ, क्यों वे दुर्गति के रास्ते पर बढ़ते रहे। जिस तरह खिचड़ी के एक चावल से उसके पकने का आंकलन हो जाता है। उसी तरह बेटियों को बराबरी का अधिकार देने की बात पर मौलाना और उनका पर्सनल लॉ बोर्ड भडक़ गया। जो अपने बेटे बेटियों को अधिकार और अवसर से वंचित रखते हंै, वे मानवीय अपराध करते है, उन्हें मानवीय सरोकार से भी कोई लेना देना नहीं है। ये मौलाना इस्लाम के ऐसे पाखंडी हैं, जिस तरह धर्म के नाम पर पंडे यात्रियों को ठग कर उनकी आस्था का शोषण करते हैं, उसी तरह ये मौलाना इस्लाम के ठग है और इसी ठगी के द्वारा इनका ऐशो आराम चलता है।


मौलाना रहमानी की बातों में कहीं देश और आतंकवाद की बातों की चिंता दिखाई नहीं दी, इससे ऐसा लगता है कि ये मौलाना उसी मोहम्मद अली जिन्ना की प्रति छाया है, जिस तरह इस्लामी उसूलों का ज्ञान नहीं होने पर भी जिन्ना भारत के मुस्लिमों और मजहब का ठेकेदार बन गया और मजहबी राष्ट्रीयता का जहर घोलकर उसने भारत के खूनी विभाजन का पाप किया। जिसके दुष्परिणाम भारत आज भी भुगत रहा है। सरकार के साथ मुस्लिम समुदाय जो प्रगति के आलोक में अपना भविष्य निर्धारित करना चाहते है वे ऐसे जिन्नावादी मौलानाओं से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मुक्त करें। यह भ्रम भी मुस्लिमों को दूर करना होगा कि ये मौलाना ही इस्लाम के प्रतिनिधि है। जो अपने समुदाय की आधी आबादी अर्थात महिलाओं को प्रताडि़त कर पुरूष की गुलामी में रखना ही मजहबी उसूल मानते है ऐसे मौलानाओं के पंजे से इस्लाम को मुक्त करे बिना मुस्लिमों के लिए प्रगति के रास्ते नहीं खुल सकते।

(लेखक-राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार)

Updated : 18 Oct 2016 12:00 AM GMT
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