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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-बाधाओं के बाद भी आगे ही बढ़ता गया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना विजयादशमी के दिन हुई थी। संघ के संस्थापक डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ की प्रार्थना के अनुरूप भारत को परम वैभव के शिखर पर पहुंचाने के लिए स्वयंसेवकों और समाज को प्रेरित करने का प्रयास किया है। अनेक विकृत विभ्रम फैलाए जाने के बावजूद संघ का कार्य बढ़ता ही गया है। संघ स्वयं में न केवल विश्व का सबसे बड़ा और सुगठित प्रगतिशील सामाजिक संगठन है बल्कि उसके स्वयंसेवकों ने सेवा और राजनीति के क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रभाव बनाया है।

संघ का एक स्वयंसेवक न केवल देश का प्रधानमंत्री है और परमवैभव की कल्पना को साकार करने की अपेक्षा का प्रतीक बन गया है अपितु वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय ऋषियों की आकांक्षा के अनुरूप विश्व को ले जाने के लिए आशा का केंद्र बना हुआ है। भारतीय जीवनशैली जो सर्वे भवन्तु सुखिना की अवधारणा पर आधारित है, जिसका अध्यात्म चर अचर सभी से सामंजस्य की सीख देता है, विश्व के लिए अस्तित्व बचाये रखने का जब एकमात्र मार्ग दिखाई दे रहा है। भारतीय पुरूषार्थ विश्व का सही रास्ता दिखाये-दिखाता रहे-उस दिशा में हमारी प्राथमिकता की साख बन रही है। संभव है यह कुछ लोगों के लिए सिरदर्द हो लेकिन विश्व भर में बसे भारतीय मूल के लोगों में अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए गौरवान्वित होना चाहिए, इसके लिए संघ के विश्व विभाग ने संसार के सौ से भी अधिक देशों में जो प्रयास किए हंै, उसकी झलक भारत के प्रधानमंत्री की यात्राओं के दौरान तो दिखाई ही पड़ी है, योग को प्राय: विश्व के सभी देशों ने समर्थन और सहयोग प्रदान कर जिस अनुकूलता का परिचय दिया है उससे यही स्पष्ट होता है कि डाक्टर हेडगेवार ने व्यक्ति निर्माण के जिस कार्य को एक छोटे से मैदान में कुछ किशोर युवकों को खेल खेल में आभास कराया था, उसे उसके रूप में धारण कर अनाम रहकर वर्षानुवर्ष जिन स्वयंसेवकों ने तपस्या की है और अभी कर रहे हैं, उनके निष्काम कर्म का प्रतिफल मिलने लगा है। संघ ने लगभग दो दशक पूर्व कहा था इक्कीसवीं शताब्दी हिन्दू शताब्दी होगी। हिन्दू अर्थात सर्वेभवन्तु सुखिना और वसुधैव कुटुम्बकम् के प्राचीन ऋषियों के आदर्श को जीवन में अवधारित व्यक्ति डाक्टर हेडगेवार के बारे में कहा गया था। ये अकेले आये लेकिन स्वयं को बीज के समान बोकर संघ को उगाया है, ने इदं न मम के वैदिक मंत्र को आत्मसात करने वाले लाखों लोगों को सांसारिकता से अलिप्त होकर समाज सेवा करने की जैसी प्रेरणा दी है, उसका दूसरा उदाहरण मिलना असम्भव है। संघ में पाने के लिए देने के लिए आना होता है।

मानवता की भावना को जाग्रत करने के लिए अनाम रहकर सेवारत इस संगठन को कम कठिनाइयों का, भ्रामक प्रचार अफवाहों, मान्यता प्राप्त लोगों की विपरीत अभिव्यक्ति का सामना नहीं करना पड़ा। एक अर्से तक सोवियत यूनियन के हस्तक बनकर काम करने वाले साम्यवादियों ने तो-जो कभी विदेश नहीं गए-मुसोलनी और हिटलर का अनुगामी बता दिया, कहा संघ की स्थापना उनके परामर्श से ही हुई है। अंग्रेजों ने 1934 में संघ पर पहला प्रतिबंध लगाया था उसके बाद महात्मा गांधी हत्या, आपातकाल की निरंकुशता और अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराये जाने के बाद भी इस संगठन को प्रतिबंधित कर गति रोकने का प्रयास किया गया। अंग्रेजों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का विरोध सभी राजनीतिक दलों ने किया, गांधी की हत्या के बाद का प्रतिबंध संघ स्वयंसेवकों के सत्याग्रह से हटा और आपातस्थिति का प्रतिबंध हटवाने के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने उस समय की इंदिरा गांधी सरकार को उखाड़ फेंकने में मुख्य भूमिका निभाई तथा बाबरी ढांचा गिरने के बाद के प्रतिबंध को न्यायालय ने अवैध करार दिया। अपनी शक्ति का संज्ञान और न्यायालय की निष्पक्षता के परिणाम के बावजूद भी संघ को भ्रामक प्रचार से घेरने का प्रयास जारी रहा-जारी है। सेवा के सभी क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक सक्रिय हैं। इस सक्रियता ने उन लोगों को संघानुकूल बनाने का काम किया है जो उसके सर्वथा विपरीत थे, जैसे जयप्रकाश नारायण जो संघ को सदैव के लिए प्रतिबन्धित किए जाने के पक्षधर थे। जो भी विभाजक, विघटनकारी, विदेशी हस्तक और सत्ता के लोभी हैं सब मिलकर संघ के खिलाफ सदैव लामबंद रहे हैं। उनके प्रयासों के बावजूद संघ की अनुकूलता बढ़ते जाने का कारण संभवत: उसके मूल्यों और आदर्शों पर अडिग रहना है। डाक्टर हेडगेवार ने कहा था संघ हिन्दुओं का संगठन है। इस पर संघ को मुस्लिम और ईसाई विरोधी संगठन के रूप में प्रचारित करने का प्रयास चला आ रहा है। यह भी प्रश्न किया गया कि यदि संघ वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखता है तो वह सिर्फ हिन्दुओं का संगठन ही क्यों है। संघ के संस्थापक और सभी सरसंघचालकों ने सरलता से समझने वाला इसका बार-बार उत्तर दिया है। जब तक हमारा स्वयं को अपने गौरवमय अतीत और ऋषियों द्वारा प्रदत्त जीवन शैली पर विश्वास नहीं होगा हम औरों का भरोसा कैसे जीत सकेंगे? मुसलमानों का विरोध करने के लिए संघ की स्थापना की चर्चा पर डाक्टर हेगडेवार ने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति व्यायाम कर अपने शरीर को बलिष्ठ बनाता है तो क्या इसलिए कि वह पड़ोसी की पिटाई कर सके। अपने को स्वस्थ रखना तो स्वाभाविक है और जो स्वस्थ रहेगा उसे कोई भी नहीं पीट सकता।

इसलिए अनेक साधु-संतों के विरोध की परवाह किए बिना हिन्दू समाज की कुरीतियों से भी मुक्त करने का अभियान चलाया। वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने तो उन परम्पराओं को त्यागने की भी अपील की है जो कालवाह्य हो चुका है। इस विचार का कुछ रूढि़वादियों द्वारा उसी प्रकार विरोध हो सकता है जैसा निहित स्वार्थी आधुनिकता के अलम्बरदार बने लोगों ने संघ को प्रतिभागी और संकुचित, साम्प्रदायिक संगठन कहकर बरगलाने का प्रयास किया है। लेकिन संघ जो कि परिस्थिति निरपेक्ष और सतत् गतिमान संगठन है, लक्ष्य से भटके बिना न दैन्यं न पलायनम् के संकल्प के साथ आगे बढ़ता जा रहा है। ज्यों-ज्यों संघ का प्रभाव बढ़ रहा है त्यों-त्यों उसके विरोधियों में विक्षिप्तता भी बढ़ती जा रही है। जो स्वयं विष बीज बो रहे हैं, वे दोष संघ पर मढक़र बच निकलने में लग जाते हैं। हिन्दू आतंकवाद, भगवा आतंक हिन्दू राष्ट्र का भय आदि शब्दों का प्रयोग कर समाज को भ्रमित करने में लगे लोगों को जब इससे संघ की गति रोकने में सफलता नहीं मिली तो अब सरसंघचालक के किसी कथन को तोड़ करोड़ों हिन्दू समाज में दरार पैदा करने में लग गए हैं। जो लोगों ने जातीयता का विष बोया वे परिवार की सम्पन्नता में सीमित हो गए हैं और अपने को ‘‘सेक्युलर’’ का मुखौटा लगाकर संघ के खिलाफ साम्प्रदायिक होने का जो प्रचार कर रहे हैं, यद्यपि उनको बार-बार मुंह की खानी पड़ रही है और संघ का राष्ट्रप्रथम बाकी बाद में का आह्वान प्रभावोत्पादक होता जा रहा है। उसके एक स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी ने संविधान एक मात्र धर्मग्रन्थ और सबका साथ सबका विकास का जो मंत्र दिया है उसका जाप होने लगा है। सभी भारतीय एक हैं। उपासना की भिन्नता उसका वैयक्तिक वैशिष्ट्य है, संघ के इस विचार का प्रतिपादन सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को समान नागरिक आचार संहिता बनाने का निर्देश देकर बार-बार किया है। फिर से किया है। भारतीयों की मान्यता श्रद्धा और निष्ठा का भारत में सम्मान होगा तभी विश्व उसे स्वीकार करेगा।

गंगा, धरती, गौ माता ये तीनों हमारे जीवनदाता हैं। तीनों की सुरक्षा संरक्षा और सम्वर्धन के लिए सर्वोच्च तथा अन्य न्यायालयों के निर्देश भारतीय अस्मिता के लिए अपरिहार्य है। संघ की प्रार्थना में सबसे पहले ‘‘सदा वत्सल मातृभूमि’’ का नमस्कार किया गया है और सबसे अन्त में उसको परम् वैभव के शिखर पर पहुंचाने का संकल्प। इन दोनों के बीच आचरण की शुचिता बुद्धि की तीक्ष्णता, कर्तव्य की निष्ठा और धैर्य शौर्य की अपरिहार्यतायुक्त जीवन के विकास का संदेश निहित है। संघ स्थापना की शताब्दी की ओर बढ़ रहा है और भारत उसकी अवधारणा के अनुरूप विश्व को कुटुम्बकम के समान संगठित होने के लिए पंक्तिबद्ध की ओर। संघ एक जीवन्त संगठन है। जीवन्त संगठन वही होता है जो स्वाभिमानी हो, अपनी निष्ठा और आस्था पर अडिग हो। संघ संकल्प अनेक झंझावातों का सामना करता हुआ उन्हीं गुणों के कारण आगे बढ़ा-बढ़ता जा रहा है। बाधाएं खड़ी करने वालों की हताशायुक्त विक्षिप्तता का कारण भी यही है।

Updated : 11 Oct 2016 12:00 AM GMT
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