प्रदेश में घमासान, रिमोट दिल्ली में

प्रदेश में घमासान, रिमोट दिल्ली में
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भोपाल। क्या कंाग्रेस में मचा ताजा कोहराम पूर्व नियोजित था? कांग्रेस में हो हल्ला भले ही प्रदेश में हो, पर इसका रिमोट क्या फिर एक बार दिल्ली में ही था?शक की सुई कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह की ओर है। ऐसा इसलिए कि कांग्रेस का इतिहास बताता है कि जब-जब स्व. माधवराव सिंधिया ने भी प्रदेश में सक्रिय होने का प्रयास किया था, चाहे वह स्व. अर्जुन सिंह हो या बाद में दिग्विजय सिंह ने विरोध की चिंगारी भडक़ाई थी और सिंधिया अपना रुख दिल्ली की ओर कर देते थे।

ताजा विवाद भी कांग्रेस की परम्परागत राजनीति का नया संस्करण है। कौन नहीं जानता कि दिग्विजय सिंह भले ही लंबे समय से दिल्ली में हो पर वे अपने पूरे प्रदेश में फैले समर्थकों के जरिए कांग्रेस की राजनीति के सूत्र अपने हाथ में ही रखना चाहते हंै। इधर कमलनाथ ने भी प्रदेश में अपनी रूचि खुलकर बताई थी,पर हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रदेश के दौरे बढ़ा दिए थे। वे भोपाल में पहली बार लंबे समय बाद वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी से भी मिले। सिंधिया की यह सक्रियता कहीं न कहीं यकीनन राहुल गांधी के संकेत पर होगी। कारण यह माना जाता है कि प्रदेश में कांग्रेस की वापसी के लिए श्री सिंधिया बेहतर विकल्प हो सकते हैं। यह प्रयास 2013 में भी हुए थे जिसे इन्हीं नेताओं ने विफल किया। कारण सिंधिया एक बेहतर चेहरा तो हैं पर कांग्रेस की जमीनी राजनीति पर उनकी पकड़ पहले भी नहीं थी, आज भी नहीं है। काग्रेस के ये दिग्गज नेता इस कमजोरी को जानते हैं। डॉ. गोविंद सिंह का यह बयान एक चतुर राजनेता का बयान था और उनका तीर निशाने पर लगा है। प्रदेश के हालात बता रहे हंै कि श्री सिंधिया के पक्ष में कांग्रेस सेे उतनी आवाज नहीं उठी है, जितनी अपेक्षित इस समय थी। ये दिग्गज नेता हाई कमान को फिर यही समझाने वाले हैं कि वे चेहरा तो बन जाएंगे पर जमीन कहां है? श्री सिंधिया को और उनके सिपहसालारों को भी यह समझना होगा कि भाजपा से तो वह दो-दो हाथ 2018 में करेंगे पर 2016 में उन्हें असली संघर्ष अपनों से ही करना है।

श्री सिंधिया को भी यह समझना होगा कि वे मूल कांग्रेसी नेताओं को पहचानें न कि उनकी जयजयकार कर खुद की राजनीतिक दुकान चमकाने वालों को तरजीह दें। एक ऐसा नेता जो केन्द्र में मंत्री रहा हो लगातार सांसद हो, राहुल गांधी के करीबियों में गिनती हो और मुख्यमंत्री पद का संभावित दावेदार हो उनके पक्ष में सिर्फ तीन पूर्व विधायक और दो वर्तमान विधायकों का सामने आना बताता है कि श्री सिंधिया को पहले अपना घर संभालने की जरुरत है। वे ध्यान से विचारेंगे तो पाएंगे कि उनके पीछे जनमत भले ही अपेक्षाकृत संतोषजनक हो पर जमीनी कार्यकर्ताओं की निष्ठावान कांग्रेसियों की बेहद कमी है,और उनके बगैर यह जंग जीतना असंभव है।


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