दोनों पैर गंवाने के बाद बिलख रहा था राजू
ग्वालियर। ट्रॉमा सेन्टर में आईसीयू में भर्ती राजू विलखता हुआ बस एक ही बात बोल रहा था कि अब उसके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा। यदि मैं बैंक से कर्ज लेकर ऑटो नहीं खरीदता तो शायद मेरे पैर सलामत होते।
उसके परिजनों का भी रो-रोकर बुरा हाल था और राजू को सभी सांत्वना दे रहे थे, लेकिन परिजनों का कहना था कि बैंक कर्मी हर रोज धमकाते थे और कोर्ट से एक नोटिस भी आ गया था। इस कारण राजू बहुत परेशान चल रहा था। घर में अकेला राजू ही कमाने वाला था। राजू का एक बेटा माधव कॉलेज में प्रथम वर्ष का छात्र है तथा दूसरा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है। अब इन दोनों की पढ़ाई का क्या होगा। हालांकि राजू सात भाई हैं, लेकिन सभी अलग-अलग रहते हैं और मेहनत-मजदूरी करते हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि राजू के उपचार का खर्च कौन उठाएगा।
13 हजार के 25 हजार मांग रही है बैंक
राजू ने बताया कि उसने 28 हजार रुपए जमा कर एक ऑटो तीन वर्ष पहले यूको बैंक कैंसर पहाड़ी स्थित शाखा से कर्ज लेकर खरीदा था, जिसकी ढाई हजार रुपए किश्त हर माह बनी थी, लेकिन परेशानियों के चलते पिछले चार-पांच माह से किश्त नहीं भर सका, जिससे बैंक के कर्मचारी दबाव डाल रहे थे कि किश्त जमा करें। वह किश्त के 25 हजार रुपए बता रहे हैं, जबकि मेरे हिसाब से 13 हजार रुपए ही हुए हैं, लेकिन आए दिन धमकी देना और घर पर आकर गाली गलौच करने से परेशान हो चुका था। एक जनवरी शुक्रवार को पैसों का इंतजाम करने घर से निकला था। पूरे दिन जब कहीं पैसों का इंतजाम नहीं हुआ तो दोस्त के साथ शराब पी और कार चलाना सीखा। इसके बाद दोस्त से घर जाने की बोल कर निकल आया था, लेकिन घर किस मुंह से आता। हर रोज की बेज्जत होने से अच्छा है कि मर जाऊं और मैं ट्रेन के सामने पहुंच गया।
साढ़े छह घण्टे ट्रेक पर पड़ा रहा युवक
रेलवे के नियमानुसार यदि पटरी पर कोई शव पड़ा है तो ट्रेन का आवागमन तब तक रोक दिया जाता है, जब तक कि शव को नहीं हटा दिया जाए, लेकिन राजू साढ़े पांच बजे ट्रेन की चपेट में आया और रात करीब 12 बजे तक दोनों पटरियों के बीच पड़ा रहा। एक के बाद एक रेलगाडिय़ों उसके ऊपर से गुजरतीं रहीं, लेकिन किसी भी रेल चालक ने पटरियों के बीच में पड़े हुए राजू को नहीं देखा।
गैंगमैन बने देवदूत
परिजनों का कहना है कि राजू के लिए गैंगमैन दूेवदूत बनकर पहुंचे। राजू ने बताया कि पैर कटने के बाद उसने उठने का काफी प्रयास किया, लेकिन पटरियों के बीच से नहीं हट सका। इस बीच गाडिय़ां लगातार ऊपर से गुजरती रहीं। फोन घर पर छोड़कर आया था तो किसी से संपर्क भी नहीं कर पा रहा था। मैंने तो बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। तभी दो युवक आए और उन्होंने पूछा कि तुम यहां क्यों पड़े हो। तब मैंने बताया कि मेरे पैर कट गए हैं। उसके बाद उन्होंने घर का नम्बर पूछा। मैंने अपने भाई का नम्बर उन्हें बताया। इसके बाद उन्होंने भाई और एम्बुलेंस को फोन कर दिया और उठाकर एक ओर रख दिया।
रेलवे की लापरवाही से जा सकती थी राजू की जान
नियम को तोडऩे वालों की लापरवाही के चलते राजू की जान जा सकती थी। इस लापरवाही पर रेलवे क्या कदम उठाती है। यह तो समय ही बताएगा, लेकिन अक्सर देखा गया है कि लापरवाही करने वालों के खिलाफ रेलवे सख्त कदम नहीं उठाती है।