जनमानस
आर्थिक विषमता की खाई को चौड़ा करने वाला आधुनिक दुनिया का दौलतनामा
दुनिया की आधी आबादी के बराबर दौलत 2010 में 388 अमीरों के पास थी।2014 में 85 अमीरों के पास संग्रहीत हो गयी और अब मात्र 62 अमीर दुनिया की आधी आबादी के बराबर की दौलत प्राप्त कर धन कुबेर बन गये हैं। सत्य को सामने रखने वाला ऑक्सफेम का यह सर्वेक्षण दुनिया के तमाम अर्थ विशेषज्ञों के अर्थ ज्ञान को अमीरों के हितों का बड़ा संरक्षण- पोषक कर्ता सिद्ध करता है। कहने को दुनिया में आर्थिक उदारीकरण का डंका बज रहा है परंतु वस्तुस्थिति तो दुनिया की बहुसंख्यक आबादी के लिये क्रूर आर्थिकी के पीड़ादायी समय को व्याप देने वाली व्यवह्रत होती है।हमारे देश की विशाल अर्थव्यवस्था में दुनिया के अमीरों का आकर्षण हमारे खुशहाल किसान और बेतहाशा रोजगार में बेरोजगारी को नष्ट करने के तमाम उपक्रमों में लक्ष्य केंद्रित हो इसके उपाय मोदी सरकार के लिये वांछित होने चाहिए। दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के ग्लैमर में मदमस्त होने और प्रचार-प्रसार पर काबिज अमीरों के साम्राज्य को अब चुनौती देने का समय आ गया है। अर्थ समीक्षा,अर्थ विश्लेषण और विभिन्न आर्थिक नीतियों का निरूपण आर्थिक विषमता की चौड़ी होती खाई को पाटने में निर्धारित होना चाहिए। गरीब और गरीबी को बनाये रखने के स्वार्थी संजाल में राजनीति,धर्म,अर्थ,काम के खतरनाक निहितार्थों को समझने और समझाने की सख्त जरुरत है। श्रमिकों के आंदोलनों, हड़तालों, धरनों को पूरी दुनिया में मशीनों की विकसित कार्य क्षमता ने व्यर्थ की हलचल मानने की मानसिकता से नवाजा है।दुनिया के तमाम उद्योग जगत के अमीरों व वहाँ की सरकारों व विभिन्न राजनीतिक दलों की मिली भगत में विश्व की सही तस्वीर देखने-दिखाने की गुंजाइश कम रह जाती है और दुनिया के दौलतनामे पर ऑक्सफेम के इस आर्थिक सत्य को महज एक सर्वे मानकर भुला देने की प्रवृत्ति फिर कायम हो जाती है। दौलत के नशे में मानवीय मूल्यों को बिसराते हुये घोर व्यवसाय की प्रवृत्ति ने जिस मानव विकास को सामने रखा है उसमें मुनाफे की अंधता में चंचल लक्ष्मी को कैद करने की घातक प्रतियोगी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है। 62 अमीरों के हाथ में आधी दुनिया की दौलत के बराबर अकूत दौलत का एकत्रित होना ऐसा दौलतनामा स्पष्ट हो रहा है जहाँ अर्थ के नैतिक मूल्यों की आवश्यकता बेहद जरूरी हो जाती है।आज दुनिया में लोगों की अर्थ सुरक्षा में मेहनत और लगन के हर स्तर पर मौजूद व्यक्ति के धन बल को नयी ऊर्जा प्रदान करने की सख्त जरुरत है। सिर्फ पैसे और पैसे की लालची प्रवृत्ति ठीक नहीं।दौलत मानव जीवन का साधन है न कि मानव को साधन मानकर तमाम दौलत को हड़पने की गन्दी प्रतियोगिता को बढ़ावा देना।
हरिओम जोशी