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जनमानस

राष्ट्र को कमजोर करने वाली उन्मादी जिदें

भारतीय समाज की जड़ों में गहरायी से उतरने की जगह राष्ट्र को दुर्बल करने वाली उन्मादी आतंकी चेष्टाएं स्पष्ट रूप से सक्रिय नजर आती हैं।आतंकी संगठन आईएस आईएस में भर्ती होने के लिये हर संभव कोशिश करने,पाकिस्तानी झंडे फहराने या पाक प्रायोजित आतंकी हमलों पर चुप्पी साधने का अभिप्राय कौन नहीं समझता है। राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिये आवश्यक कार्यों की तरफ से मुख मोड़कर भारत में रचने-बसने के लिये मनमानी स्वतंत्रता की भी कोई सीमा नहीं होनी चाहिए।तुष्टिकरण व अल्पसंख्यक के स्वार्थी लाभ में वोट की ब्लैकमैलिंग के कारण ही एक समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक दल असरहीन नजर आते हैं तो वहीं स्वयं स्फूर्त राष्ट्रभावना की प्रतिबंधित मानसिकता में एक समान नागरिक संहिता देश में लागू नहीं हो पा रही। आक्रामक-कट्टर-आतंकी हिंसा को पूजने का भाव तो जाग जाता है परंतु मानवता के लिए मरने-मिटने वाला सच्चा बलिदान न राष्ट्र के लिये और न दुनिया के लिए क्यों प्रमुखता नहीं पाता यह गंभीर चिंता का विषय है। बँटवारे के बाद अलग हुये पाकिस्तान की आबादी उतनी खुशनसीब नहीं है जितनी कि भारत में स्थित पाकिस्तान से बड़ी मुस्लिम आबादी का जीवन स्तर, बावजूद इसके उन्मादी जिद्दों में अग्नि में पतंगे की तरह नष्ट करने का आतंक क्यों जारी रखा जा रहा है? जटिल जिहादी उन्मादी और आतंकी राह पर चलने में स्थापित होने वाले मील के पत्थर सल्तनत-मुगलकालीन समय से वर्तमान दौर तक गाड़े जा रहे हैं फिर भी सिखाने-समझने की सनातन धारा को आज तक नहीं समझा जा रहा क्या ऐसे में राष्ट्र को सबल बनाने हेतु विशेष नीतियों का निर्धारण आवश्यक नहीं है? जनसँख्या नियंत्रण नीति के लिए आवश्यक समान नागरिक संहिता का लागू होना बेहद जरूरी है। राष्ट्र के लिये विवेकसम्मत इस पहल में एकसमान रूप से राजनीतिक एकजुटता की जरुरत है नेतृत्व के हर स्तर पर जनता को इसके लिए जागरूक बनाना भी जरूरी है।

हरिओम जोशी

Updated : 20 Jan 2016 12:00 AM GMT
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