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जनमानस

पठानकोट का आतंक व मालदा हिंसा


पाकिस्तानी आतंक व कट्टरता का मूक समर्थन ही मालदा हिंसा को जन्म देता है। मुस्लिम परस्ती में आतंकी संगठनों की लड़ाई का जहर अमृत की तरह अंतर्मन की गहरायी में उतारने की सच्चाई ही हमारे देश की जटिल समस्या बनती जा रही है। बगदादी, हाफिज, अजहर, लखवी के खिलाफ मुस्लिम जगत द्वारा उठाये जाने वाले सख्त कदमों का अकाल ही आतंक व कट्टरता के मानवता विरोधी हिंसक कृत्यों को अंजाम देने का जरिया साबित हो रहा है। देश में पाक प्रायोजित पठानकोट आतंक में हमारे 11 जवान शहीद होते हैं और दु:ख की ऐसी घड़ी में भी एकता व सौहार्द का कायम न रहना ही असल संकट माना जायेगा। राजनीतिक दलों का विपक्षी धड़ा भी पठानकोट संकट के समय बेसुरे रागों की मीनमेख में अभ्यस्त नजर आया क्या एक राष्ट्र की नजर में ऐसा दुव्र्यवहार घोर पीड़ा का विषय नहीं है? उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में रहने वाले मुस्लिमजनों की अशांति भंग कर सांप्रदायिकता के अखाड़े खोदने वाले लोगों, समूहों को रोकने की कोशिश क्यों नहीं हुई आखिर इसकी जिम्मेदारी यहाँ की सरकारों को क्यों नहीं लेनी चाहिए। जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद के इंतकाल के बाद शोक की घड़ी में इस राज्य के लिये आवश्यक राजनैतिक नेतृत्व की पवित्रता और दृढ़ता के स्थान पर सत्ता के लालची स्वरों को उभरना मुफ्ती साहब की आत्मा को कष्ट प्रदान करना ही माना जायेगा। सत्ता के ईमानदार निर्वहन में ही हमारे राष्ट्र में मौजूद आतंक व कट्टरता का शमन किया जा सकता है इस बात को हमारे नेता सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठकर भी नहीं समझ सकते यह गंभीर चिंता का विषय है। पठानकोट में आतंकी हमले के महत्वपूर्ण कारक साबित हुये हमारे अपने भेदियों को संरक्षण और पोषण उस पाकिस्तान के प्रश्रय में हौंसला प्राप्त करते हैं। इस्लामी आतंक के फतवाओं का अनुकरण करते हुये फतवाओं की हिंसक दुष्प्रवृत्ति का हमारे देश में पलना-बढऩा बहुत बड़ी चेतावनी है। पठानकोट के आतंकी हमले ने हमारी सुरक्षा तैयारियों में मौजूद तमाम छिद्रों को खुलकर सामने रख दिया है जिनसे सबक लेने की सख्त जरुरत है। पठानकोट का आतंक व मालदा हिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं इनके अन्त: विश्लेषण में मौजूद सच्चाई को देशवासी समझ रहे हैं तब देश के तमाम नेतृत्व में मौजूद नेता क्यों नहीं समझ सकते? वोट की लड़ाई में देश को हिंसा की भेंट चढ़ाना अब राष्ट्र बर्दाश्त नहीं करेगा।

हरिओम जोशी

Updated : 15 Jan 2016 12:00 AM GMT
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