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जनमानस

धार्मिक भावनाओं के बहाने


विभिन्न समाचार पत्रो में कुछ वरिष्ठ राष्ट्रवादी लेखकों द्वारा मालदा सहित अन्य स्थानों में हुए मुस्लिमों के उपद्रवों का विस्तार से विश्लेषण किया जा रहा है।आज विडंबना यह है कि छदम् प्रचार तंत्र द्वारा हिन्दुओं को ही एकतरफा अपराधी बनाने के चल रहे सुनियोजित षड्यंत्रों का प्रभावशाली विरोध नहीं होता। साम्प्रदायिकता के नाम पर केवल हिंदुओं को ही कठघरे में खड़ा करना सेक्युलरों ने ग्लेमर बना दिया है। क्या आजम खान की आपत्तिजनक टिप्पणी आर एस एस वालो को नहीं चुभी या उनकी भावनायें आहत नहीं हुई होंगी? फिर भी इतना विशाल अनुशासित संघ परिवार बिलकुल मौन रहा क्यों..? आज केंद्र में भाजपा की सरकार है तो विवादों में आंदोलन नहीं? क्या राजमद में सारी शपथ सत्ता सुख की भेंट चढ़ गई ? किसी अन्य पार्टी की सरकार होने पर भी क्या ये चुप रह सकते थे?
कमलेश तिवारी ने तो अपनी अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार के अन्तर्गत रहते हुए प्रतिक्रिया करी थी, जिसे मुस्लिम समुदाय ने धार्मिक भावनाएं आहत होने का मुद्दा बना दिया और उसके सिर पर 50 लाख से 1 करोड़ तक का इनाम घोषित करके सारी संवैधानिक मर्यादाएं ही लांघ दी।फिर भी भारतीय कानून व्यवस्था में उसे (कमलेश तिवारी) बंदी बना कर विवाद को सुलझाया जा रहा है। लेकिन जगह जगह अपने संख्या बल से उपद्रव करके प्रशासन व हिन्दू जनता में भय पैदा करने का एक न रुकने वाला उपक्रम अभी भी जारी है। जिसमें सरकारी व हिंदुओं की संपत्तियों को लूटना और नष्ट करना तो प्राय: ऐसी भीड़ का जन्मसिद्ध अधिकार होता ही है । धर्मनिरपेक्ष देश हो या गैर मुस्लिम देश वहां दंगे करना व तोडफ़ोड़ करना, लूटमार व हिंसा करना आदि जिहाद का ही तो एक भाग है। मालदा (प.बंगाल) में 3 जनवरी को मुस्लिम समुदाय ने जिस प्रकार कमलेश तिवारी के बयान के बहाने तोडफ़ोड़,आगजनी व लूटमार करी है उसमें उन्होंने वहां के प्रशासन पर भी अप्रत्यक्ष दबाव बनाया है जिससे उन कुछ मुस्लिम माफियाओं के भारत-बांग्लादेश की सीमा से जुड़े हुए क्षेत्रों से जाली करेंसी व नशीले पदार्थो का व्यापार बिना रोकटोक चलता रहें।अत: ऐसा लगता है कि मालदा काण्ड के पीछे धार्मिक भावनाओं का आहत होना तो बुर्का ओढऩे के सामान है । अगर विशेष जांच हो और पर्दा हटे तो संभवत: ज्ञात होगा कि इसके पीछे कितने आपराधिक व देशद्रोही षडयंत्र चल रहें होंगे। यहां यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि इस प्रकरण में मुस्लिम समुदाय द्वारा जो देशव्यापी हिंसक प्रदर्शन हो रहें है उसके पीछे कोई सोची समझी साजिश हो सकती है,क्योकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनसँख्या बल से ही जीत संभव होती है? उनके इस एकजुट आक्रामक प्रदर्शन से जिसकी जितनी संख्या भारी राजनीति में उसकी उतनी भागेदारी का नारा चरितार्थ हो रहा है।अत: एक निशाने से कई शिकार किये जा रहे है। वैश्विक जिहाद से आज पूरी दुनिया चिंताग्रस्त है, हम अब भी अगर इन जिहादियों के जहरीले जनून के प्रति सतर्क व सचेत न हुए तो भविष्य में भयंकर परिणाम भुगतने होंगें।

विनोद कुमार सर्वोदय

Updated : 13 Jan 2016 12:00 AM GMT
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