पिता बीमार, माँ बंधुआ, 13 साल की मासूम मजदूरी कर चला रही है घर

*बमौरी के 150 बंधुआ मजदूरों के बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने कराए एसडीएम के समक्ष बयान
*साहुकारों के कर्ज से नरकीय हुआ आदिवासियों का जीवन
गुना। वह 13 साल की मासूम बालिका है, उम्र उसकी खेलने-पढऩे की है, अपने साथ के बच्चों को देखकर उसका मन भी रस्सी कूदने, आँख-मिचौनी खेलने को करता है पर वह ऐसा नहीं कर सकती है। इस मासूम का पिता है पर वह बीमार है, माँ गांव में एक साहूकार के यहाँ बंधुआ मजदूर है। इसलिए घर चलाने के लिए मजबूरी में इस मासूम बालिका को मजदूरी करने जाना पड़ता है। दरअसल बालिका के पिता बमौरी ब्लॉक के बागेरी निवासी बैजनाथ सहरिया ने करीब 5-6 साल पहले गांव के साहूकार से 35 हजार का कर्ज लिया था। कर्ज के ऐवज में कुछ समय तक बैजनाथ ने साहूकार के यहाँ बंधुआ मजदूर के रुप में काम किया, इसके बाद वह बीमार पड़ गया तो साहूकार ने उसकी पत्नी को बंधुआ मजदूर बना लिया। इसके बाद घर चलाने के लिए उसकी मासूम बेटी को मजदूरी करनी पड़ रही है., तब से जीवन इसी पटरी पर चल रहा है।
90 ने दर्ज कराए बयान
बंधुआ मुक्ति मोर्चा के निर्माल गोराना ने बताया कि करीब 90 लोगोंं के बयान एसडीएम के समक्ष दर्ज कराए है। उन्होने सभी के पुर्नवास की मांग शासन से की है, साथ ही तब तक पुलिस संरक्षण देने की बात कही है। दूसरी ओर एसडीएम डीसी शुक्ला का कहना है कि बयानों के आधार पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। इस दौरान आज तहसील में काफी गहमागहमी का माहौल देखने को मिला।
कर्ज उतरा नहीं, ब्याज में हो रही बंधुआई
बैजनाथ की माने तो उसका कर्ज अब तक यथावत बना हुआ है और सिर्फ ब्याज में ही बंधुआई हो रही है। 5-6 साल पहले जो कर्ज उसने लिया था, वह वैसे का वैसा ही बना हुआ है। यह स्थिति सिर्फ एक आदिवासी किसान की नहीं है, बल्कि बमौरी ब्लॉक के दर्जनों गांव के सैकड़ों किसानों का यहीं भाग्य बन गया है। साहूकारों के कर्ज के चंगुल में फसकर इन आदिवासी किसानों का जीवन नरकीय हो गया है। इसका खुलासा आज इन आदिवासियों से गुना तहसील में बातचीत के दौरान हुआ।
बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने कराए मुक्त
नेशनल केम्पेन कमेटी फॅार इरेडीकेशन अॅाफ बाउंडेड लेवर, हू मैन राइटस लॅा नेटवर्क बंधुआ मुक्ति मोर्चा इन सहरिया आदिवासियों को गुना तहसील लेकर पहुंचे थे। यहां पर उन्होंने एसडीएम कार्यलय में अपने बयान दर्ज कराए हैं। बंधुआ मुक्ति मोर्चा का कहना है कि इन लोगों को उन्होने बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया है। ऐसे लोगों की संख्या 100 के लगभग बताई गई है। इन लोगों से बातचीत में पता चला कि यह सभी किसी न किसी साहूकार के यहां बंधुआ मजदूरी कर रहे है। कोई अपनी बेटी की शादी का कर्ज के ऐवज में बंधुआ है तो कोई दुख, बीमारी में कर्जदार हो गया है।
कर्ज यथावत, ब्याज भी बढ़ता जाता है
परोंदे के रंगी सहरिया, झुंगुर, हुकूम चंद आदि की दास्तांन को सुने तो समझ आता है कि उनका कर्ज तो यथावत रहता है, ब्याज भी बढ़ता जाता है, जबकि वह कर्ज चुकाने सालों से साहूकार के यहाँ बंधुआ मजदूरी कर रहे है। रंगी ने अपने माता-पिता की तेरहवी करने के लिए कर्ज लिया था। तभी से बंधुआई कर रहा है। पाटे गांव के पूनम चंंद ने बताया कि उसने शादी से पहले पहले २५ हजार रुपए कर्ज लिया था। 10 साल से बंधुआ मजदूरी कर कर्ज चुकाने की कोशिश कर रहा है, पर कर्ज चुकने पर ही नहीं आता है, ब्याज भी लगातार बढ़ रहा है।
डरे सहमे आदिवासी नहीं जाना चाहते गांव
डरे सहमे यह सहरिया आदिवासी अब वापस अपने गांव जाना नहीं चाहते है। उनका कहना है कि वह वहाँ नरकीय जीवन जी रहे है। दिन रात हाड़ तोड़ काम करते है, फिर भी खाने को पेट भर रोटी नहीं मिल पाती है। उनके बाद उनकी पत्नी और बच्चे तक कर्ज चुकाने के लिए बंधुआ बने रहने को मजबूर होते है।