जनमानस
कुंठित मानसिकता का सांप्रदायिक कट्टरवादी सोच में निकास
अब्दुल कलाम साहब के भारतीय व्यक्तित्व की उत्कंठा ही है उपराष्ट्रपति अंसारी जी की कुंठा का इलाज। जिन अब्दुल कलाम साहब ने भूतपूर्व पाकिस्तान के आतंकी व कट्टर सोच के धनी परवेज मुशर्रफ की जुबान बंद कर दी हो उनसे सीख लेने की जगह उपराष्ट्रपति महोदय ने उसी परवेज मुशर्रफ की विषभरी मानसिकता को उत्साह प्रदान करने का ही काम किया है। मुस्लिम संगठन के सम्बोधन में वे अपने पद की गरिमा को ही नहीं भूल गये बल्कि भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी व राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष की अपनी भूतकालीन भूमिका को भी संदिग्ध सिद्ध कर दिया। आवेश में आकर अपनी भावनाओं के बेकाबू प्रवाह में ओवैसी, आजम, बुखारी की परोक्ष पक्षधरता ने उनके उन गुनाहों को और भी गहरा कर दिया है जिनको मीडिया व जनता ने दरकिनार ही कर दिया था। योग दिवस पर उनका विवाद हो या रामलला की रामलीला में आरती से उनका पलायन निश्चित ही उनके व्यक्तित्व कीसंकीर्णता इन उदाहरणों के रूप में प्रमाण बनती है। भारतीय आम मुस्लिम समाज को नई दिशा और दशा देने का दायित्व जिनके ऊपर है ऐसे शिक्षित, ज्ञानवान व उच्च पदों पर आसीन मुस्लिम जन ही जब सांप्रदायिकता का विषवमन करेंगे तब मुस्लिम समाज को भड़का-कर खतरनाक भटकाव पैदा करना राष्ट्रद्रोह ही कहलायेगा। बड़े-बड़े मुस्लिम शिक्षा केंद्रों व मुस्लिम समाज के सेवा संगठनों के दर से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे आना, पाकिस्तानी झंडे व आईएस के झंडे फहराना और तिरंगें का बहिष्कार करना क्या क्षमा योग्य अपराध कहा जा सकता है, कदापि नहीं। भारतीय मुस्लिम समाज में व्याप्त बुराईयाँ ही उनके विकास की सबसे बड़ी बाधा हैं। इस बाधा को दूर करने के आत्मावलोकन की जगह उल्टे उनके विकास के लिये कुंठित मानसिकता में सांप्रदायिक कट्टरता को तरजीह देना खतरे से खाली नहीं हो सकता। सच्चर कमेटी की हकीकत में राजनीति का मुस्लिम तुष्टिकरण का अंधभक्त दुव्र्यवहार भी उभर कर आता है आखिर उनके दूरगामी विकास की जगह वोटों की सौदेबाजी का घिनौना कार्य पनपने की भूल पर पश्चाताप क्यों नहीं किया जाता। मदरसे की शिक्षा को ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा से ओतप्रोत करने की योजना का क्यों विरोध किया जाता है। अल्पसंख्यक का विशेष दर्जा और वक्फ संपत्तियों की बंदरबांट में कौन मुस्लिम भाई माल हड़पे जा रहे हैं इसका सूक्ष्म विश्लेषण क्यों नहीं किया जाता? स्वामी विवेकानंद भी मुस्लिम भाइयों की मेहनत के कायल थे आखिर उस मेहनत को नष्ट करने वाली मुस्लिम चाटुकारिता को किसने बढ़ावा दिया इसका शोधपरक अध्ययन क्यों नहीं किया जाता। अपने राष्ट्र की जगह आतंकवादी हिंसा और वैश्विक इस्लामी एकता में बरगलाने का कौन ठेका लिये हुये है इस पर उपराष्ट्रपतिजी क्यों नहीं बोलते।
हरिओम जोशी