अग्रलेख

पी.ओ.के. चाहता है गुलामी से मुक्ति
जयकृष्ण गौड़
पाकिस्तान के हुक्मरानों की बोलती यह सुनकर बंद हो जाना चाहिए कि अब जम्मू कश्मीर के दावे को छोड़, उसका कश्मीर पर भी कब्जा हाथ से जाने वाला है, जिस पर पाकिस्तान ने बलात् कब्जा कर रखा है। पाक कब्जे वाले (पीओके) के लोग पाकिस्तान के मुरीद होने की बजाय भारत के मुरीद हैं और वे पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होकर भारत के साथ मिलना चाहते हैं। इस बात का ताजा उदाहरण यह है कि अंजुमन मिनहास-ए-रसूल के चेयरमैन मौलाना सैयद अथर देहलवी ने कहा है कि पीओके के लोग प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अब तक के नेतृत्व से काफी खुश हैं। वहां रहने वाले ९९ प्रतिशत लोग भारत में शामिल होना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि पीओके के लोगों का कहना है कि, जब उनका घरबार पानी में बह रहा था तो भारतीय सेना देवदूत बनकर आई। वहां के लोग इस बात की भी तारीफ करते हैं कि नरेन्द्र मोदी जम्मू-कश्मीर में भी सुशासन लाने की कोशिश कर रहे हैं। श्री मोदी के इन्हीं फैसलों से उनके मन में उम्मीद जगी है और वे भारत का हिस्सा बनना चाहते हैं। इस संदर्भ में उल्लेख करना है कि पीओके में सन २०१५ में भूकम्प और २०१४ में बाढ़ की त्रासदी के दौरान भारत की मोदी सरकार के रवैये से प्रभावित होकर पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों में भारत के प्रति सकारात्मक रूझान देखने को मिला है। प्रधानमंत्री श्री मोदी का बेहतर प्रशासन और जम्मू कश्मीर के प्रति उनका नजरिया दूसरों से बेहतर है। मौलाना ने यह भी कहा कि मोदी की सुशासन देने की अपील का पीओके में जबरदस्त स्वागत किया गया है, यही कारण है कि वे पाकिस्तान से नाता तोड़कर भारत में शामिल होना चाहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पीओके में बाढ़ पीडि़तों का दौरा करने गये थे तो उन्हें वहां के लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। इस स्थिति के बाद पाकिस्तान को कश्मीर का राग अलापने का कोई अधिकार नहीं रहता। वैसे भी पीओके पर १९४८ में पाक के कबाइली हमले के द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक तिहाई हिस्से पर बलात् कब्जा कर लिया। इस अनाधिकृत कब्जे से पाकिस्तान को हटाने का भारत की संसद ने संकल्प भी पारित किया है।
कश्मीर के बारे में ऐतिहासिक घटनाक्रम का भी उल्लेख करना होगा। जब ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ पारित किया गया। उस समय जम्मू-कश्मीर ५६५ देशी रियाशतों में एक था। थोड़े समय अनिश्चय की स्थिति रहने के बाद जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह ने २७ अक्टूबर १९४७ को भारत में अपने राज्य का विलय कर दिया। भारत ने पाकिस्तान के कबाइलियों को खदेडऩे के लिए भारत की सेना भेजी। हमलावरों को भारत के वीर जवानों ने खदेडऩा प्रारंभ किया। श्रीनगर की स्थानीय जनता ने भी हमलावरों का साथ नहीं दिया। उस समय जम्मू-कश्मीर की पूरी भूमि को भारतीय सेना मुक्त करा लेती। एक जनवरी १९४८ को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू लार्ड माउन्ट बेटन के दबाव में कश्मीर के मामले को राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में ले जाने के लिए सहमत हो गये। यह पं. नेहरू की राष्ट्र घाती गलती थी। सुरक्षा परिषद ने यह मामला निपटाने के लिए तीन सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र आयोग गठित किया। सुरक्षा परिषद ने युद्ध विराम प्रस्ताव पारित किया। इसमें पाकिस्तानी सेना सहित सभी घुसपैठियों को वापिस जाने को कहा गया। जनता की इच्छा के अनुसार मामले को निपटाने की बात भी की। सुरक्षा परिषद की शर्त के अनुसार पूरे जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान को हटना था। इसे पूरा नहीं करने की स्थिति में जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं उठता। अब झेलम नदी में काफी पानी बह चुका है। दुनिया का दृष्टिकोण बदल गया है। सुरक्षा परिषद के चार्टर से कश्मीर का मामला क्षीण या समाप्त हो चुका है। अब तो अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने ही पाकिस्तान को सच्चाई का आईना दिखाया है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर न कुछ मिलना है और न कुछ मिला है। उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा जनमत संग्रह कराने की मंजूरी मिलने की संभावना भी नहीं है। कश्मीर पाकिस्तान में एक भावात्मक मुद्दा है। हक्कानी ने अपने एक लेख में लिखा कि 'अधिकांश पाकिस्तानी यह नहीं जानते कि कश्मीर के संबंध में सुरक्षा परिषद में आखिर प्रस्ताव १९५७ में पारित हुआ था। यदि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में नये मतदान की बात करता तो वह जनमत संग्रह के लिए आज समर्थन प्राप्त नहीं कर सकता। इस बारे में अमेरिकी एजेंसी सीआईए के दस्तावेज में खुलासा हुआ है कि अमेरिका पाकिस्तान को १९९० में आतंकवादी देश घोषित करने वाला था। पाकिस्तान ने इस कार्रवाई के भय से आतंकी संगठन हरकत उल अंसार को मदद बंद कर दी। पाकिस्तान ने हरकत उल अंसार का उपयोग भारत के खिलाफ छद्म युद्ध जारी रखने के लिए किया था। इस आतंकी संगठन ने कश्मीर और भारत के कई भागों में आतंकी हमले किये। १९९६ को दिल्ली के लाजपत नगर में हुआ हमला भी इसी आतंकी संगठन का था। यह भी जाहिर हुआ कि हरकत उल अंसार को पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आईएसआई हर माह चालीस लाख की मदद देती है। इस बारे में इस बात का उल्लेख करना होगा कि यदि तत्कालीन पं. नहेरू सरकार की गलती से १९४७-४८ की लड़ाई में पाकिस्तान की पराजय के बाद भी कश्मीर का मामला खत्म नहीं हुआ। इसी प्रकार १९६५ की लड़ाई में भारतीय सेना खदेड़ते हुए लाहौर पर तिरंगा फहरा देती लेकिन विदेशी दबाव में आकर हमने सेना के बढ़ते कदम रोक दिये। १९७१ के युद्ध में तो भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के नब्बे हजार सैनिकों ने हथियार डालते हुए समर्पण कर दिया था, उस समय भी पाकिस्तान का कश्मीर के बारे में चिल्लाना बंद किया जा सकता था। इन गलतियों के बाद अब केन्द्र में भाजपा की मोदी सरकार है, इस सरकार के एजेन्डे में राष्ट्र की एकता अखंडता प्राथमिकता में है। कश्मीर के लिए जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया। एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे के नारे पूरे देश में गूंजे थे। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए भारत कश्मीर के बारे में किसी भी तरह की चुनौती का सामना कर सकता है। सीमा पर पाकिस्तान की ओर से हर रोज गोलीबारी (फायरिंग) हो रही है। रहवासी क्षेत्र में गोले दागे जा रहे है कई निर्दोष नागरिकों की मृत्यु हो चुकी है। अब पाकिस्तान की ओर से युद्ध की धमकी दी जा रही है। पाक के सुरक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि हमारी सेना की शक्ति पचास वर्ष पहले की नहीं है। हमारे पास परमाणु बम है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान भारत से टकराने के बहाने देख रहा है, हालांकि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार कह रहे हैं कि हम बातचीत के द्वारा हर प्रकार की समस्या का हल चाहते हैं। ताशकंद से लेकर शिमला, लाहौर, आगरा में भारत से शांति करार, समझौते हुए लेकिन सीमा पर छोटे युद्ध की स्थिति पाकिस्तान की ओर से निर्मित की गई। इस प्रकार पाकिस्तान की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि वहां के प्रधानमंत्री चाहे शांति की बात करे लेकिन वहां की सेना पर उनका नियंत्रण नहीं है, वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई भी सेना के निर्देश से काम करती है, जेहादी आतंकवाद भी सेना द्वारा प्रायोजित है, इसलिए सीमा पर छोटी बड़ी टकराहट हो रही है, यही टकराहट भविष्य में छोटे-बड़े युद्ध का स्वरूप ले सकती है। इसके लिए भारत को अपना सुरक्षा कवच और अधिक सुदृढ़ करना होगा। भारत को भी दृढ़ता से यह बात रखना होगी कि कश्मीर के जिस भाग पर पाकिस्तान बलात् तरीके से काबिज है, वह भारत का भू-भाग है, उस पर भारत का अधिकार है। इसलिए पाक के इस भाग (पीओके) पर अनाधिकृत कब्जे को मुक्त कराना भारत का दायित्व है। अब दुनिया इस सच्चाई को स्वीकार कर चुकी है कि पाकिस्तान ही जेहादी आतंकवाद का जनक है। चाहे ९/११ को अमेरिका पर जेहादी आतंकी हमला हो या २६/११ को भारत में आतंकी हिंसा हो, इन सभी जेहादी हमलों की जड़ में पाकिस्तान है, इस जड़ को खत्म करना न केवल भारत का वरन् दुनिया का दायित्व है।
