अग्रलेख

नेपाल का नया संविधान : भारत, शांति और विकास

संजीव पांडेय

सात सालों के उठापठक के बाद आखिरकार नेपाल एक बार फिर लोकतंत्र की तरफ बढऩे वाला है। नेपाल का नया संविधान अब जल्द ही लागू हो जाएगा। संविधान सभा ने मधेसियों के विरोध के बीच नेपाल के संविधान को पारित कर दिया है। सात प्रांतों के मॉडल वाले संविधान में हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को खत्म कर एक लोकतांत्रिक नेपाल का रास्ता बनाया गया है। नए संविधान को लेकर तमाम पार्टियां एकजुट थी। लेकिन मधेस पार्टियां इसके विरोध में थी। संविधान के पक्ष में 507 वोट पड़े जबकि विरोध में मात्र 25। नेपाल के लिए खुशी की बात यह थी कि इस संविधान पर अति वामपंथी से लेकर मध्यममार्गी कांग्रेसी एकमत थे।
हालांकि नए संविधान से नेपाल का एक वर्ग नाराज है। मधेसियों को यह संविधान रास नहीं आ रहा है। वहीं राजशाही समर्थकों को भी यह संविधान रास नहीं आया है। यही कारण था कि राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के 25 सांसदों ने संविधान का विरोध किया। मधेसियों का विरोध इस बात पर था कि वे सात प्रांतों के मॉडल को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। खुद राष्ट्रपति डॉ. रामबरन यादव भी मधेसियों की मांग को लेकर संवेदनशील हैं। वो कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की संख्या बल पर संविधान को पारित किए जाने को लेकर ज्यादा प्रसन्न नहीं थे। निश्चित तौर पर भविष्य में समस्या खड़ी होगी। नेपाली सरकार को मधेसियों की मांग का राजनीतिक हल निकालना होगा। भारत भी चाहता है कि मधेसियों समेत कुछ अन्य जातियों की बातों को सुना जाए। क्योंकि इन्हें विश्वास में लिए बिना नेपाल में शांति और विकास की बात नहीं हो सकती है। भारत से नेपाल की तरफ जाने वाले ज्यादातर रास्तों पर मधेसी ही वर्चस्व में हंै, जो नेपाल के विकास को कभी भी प्रभावित कर सकते हैं।
उम्मीद की जा रही है कि नए संविधान के लागू होने के बाद नेपाल में विकास की गति तेज होगी। नेपाली संविधान सभा में चल रहे गतिरोध को दूर करने में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी भूमिका रही। चूंकि पिछले दस सालों से नेपाल अव्यवस्था से ग्रस्त था और इसका सीधा प्रभाव भारत पर पड़ रहा था। विकास के नाम पर नेपाल पीछे चला गया। माओवादी हिंसा ने देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से खत्म कर दी है। नेपाल में लगातार बढ़ते चीनी हस्तक्षेप ने भारत की चिंता अलग से बढ़ा दी थी। नेपाल वास्तव में चीनी विस्तारवादी नीति का एक और पड़ाव बनने वाला था। सच्चाई यह थी कि माओवादी हिंसा के पीछे भी पूरी तरह से चीन था। जबकि नेपाल रोजमर्रा की चीजों के लिए भारत पर पूरी तरह से निर्भर है। वैसे तो नेपाल हिंदू बहुल है, लेकिन राजशाही की समाप्ति और माओवादी वर्चस्व ने 2006 में नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया था। नए संविधान में भी नेपाल धर्मनिरपेक्ष होगा। राजशाही और हिंदू समर्थक पार्टियों ने हालांकि इसका जोरदार विरोध किया।
संविधान लागू होने के बाद नेपाल में एक नई लोकतांत्रिक व्यवस्था का उदय होगा। इस व्यवस्था को भारत और चीन से अपने रिश्ते को संतुलित करना होगा। क्योंकि नेपाल का भौगोलिक महत्व भारत और चीन के बीच आपसी तनाव का एक बड़ा कारण है। नेपाल में चीनी घुसपैठ को लेकर भारत चिंतित है। चीन का विस्तारवाद सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरे हिमालयन क्षेत्र के पर्यावरण के लिए खतरा है। चीन की 2020 तक काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने की योजना है। यह रेल लाइन ल्हासा तक बिछाई गई रेल लाइन से निकाली जाएगी जो नेपाल सीमा तक पहले चरण में लायी जा रही है। अगले चरण में इसे नेपाल की राजधानी तक बिछायी जाएगी। लेकिन इससे इस इलाके के पर्यावरण को भारी नुकसान होगा। काठमांडू तक बिछाई जाने वाले रेल लाइन के लिए एवरेस्ट के नीचे टनल बनाने की योजना है, जो पूरे पर्यावरण के लिए भारी नुकसानदेह होगा। वैसे भी तिब्बत में बिछाए गए रेल लाइन ने तिब्बत के पर्यावरण को काफी नुकसान दिया है।
नेपाल में भारी गरीबी है। लेकिन नेपाली लोकतांत्रिक नेता भ्रष्ट साबित हुए हैं। खासकर माओवादी विचारों के नेताओं ने भारी संपति बनायी है। नेपाल के विकास को लेकर नेपाली लोकतांत्रिक दल अभी तक गंभीर नहीं हैं। नेपाल की गरीबी का आलम यह है कि यहां की भारी आबादी आज भी भारत में दैनिक मजदूरी कर अपना जीवन पालती है। भारत की महानता है कि नेपाल को आजतक अपने परिवार के तौर पर माना है। नेपाली नागरिक भारत में सरकारी नौकरी करने का भी अधिकार पाते हैं। लेकिन नेपाल अपने बल पर अपनी गरीबी दूर कर सकता है। नेपाल भारत से बिजली क्षेत्र में सहयोग कर अपनी गरीबी दूर कर सकता है। नेपाल की हाइड्रोइलेक्ट्रिक बिजली उत्पादन क्षमता ही 80 हजार मेगावाट है। जबकि नेपाल फिलहाल 1 हजार मेगावाट हाइड्रोइलेक्ट्रिक बिजली पैदा नहीं कर पा रहा है। अगर भारत के साथ नेपाल सहयोग को हाथ बढ़ाए तो भारत का सरकारी और प्राइवेट सेक्टर नेपाल में बिजली में निवेश को राजी हो जाएगा। नेपाल पर्यटन के हिसाब से भी काफी विकास कर विकास गति को तेज कर सकता है।
भारत को नेपाल को लेकर और गंभीर होना होगा। सीमा पर नेपाल की तरफ जाने वाले परिवहन मार्ग को और अच्छा बनाना होगा ताकि भारत से नेपाल के लिए व्यापार करने वाले व्यापारियों को सुविधा मिले। आज हालत यह है कि बिहार के रक्सौल सीमा पर ही गाडिय़ों को सीमा पार करने में 24 से 48 घंटे लगते हंै क्योंकि सीमा पर सड़क का हाल बेहाल है। भारत को नेपाल की तरफ जाने वाले तमाम व्यापारिक रास्तों पर इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने होंगे जो पाकिस्तान के अटारी सीम पर बनाया गया है। वहीं भारत और नेपाल को व्यापार के लिए कुछ अन्य विकल्प भी तलाशने होंगे। भारत से ही नेपाल अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करता है। भारत से ही पेट्रोल और डीजल नेपाल जाता है। नेपाल में टैंकर माफियाओं ने भारत और नेपाल के बीच प्रस्तावित पाइप लाइन को अभी तक नहीं बनने दिया है। क्योंकि इससे उनका नुकसान होता है। अब भारत सरकार ने भारतीय सीमा से नेपाल के अंदर तक तेल पाइप लाइन बिछाने का काम शुरू किया है ताकि नेपाल को आसानी से ऊर्जा की जरूरतों को पूरा किया जा सके। वहीं भारत को नेपाल के साथ लगने वाली अन्य एंट्री प्वाइंट पऱ भी सुविधाओं का विस्तार करना होगा। इसमें यूपी के कम से कम दो एंट्री प्वाइंट शामिल हैं जहां पर ज्यादातर व्यापारी और सामान्य लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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