राष्ट्र निर्माण के लिए करें चरित्र निर्माण : सहस्त्रबुद्धे
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-सत्य की प्रतिमूर्ति थे भगवान राम
- कार्यशाला का आज अंतिम दिन
ग्वालियर। विज्ञान भारती के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री जयंत जी सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण से ही हम राष्ट्र का पुनर्निमाण कर सकते हैं। वैसे इस सनातन हिन्दू राष्ट्र के निर्र्माण जैसी कोई बात नहीं है। हां बस इतना है कि हम अपनी भारतीय सभ्यता, संस्कृति और विचारों को स्वभाव में ढालकर हम एक सशक्त राष्ट्र निर्माण की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। श्री सहस्त्रबुद्धे राष्ट्रोत्थान न्यास द्वारा आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन मुख्यवक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति आरबी दीक्षित, पीजीवी के पूर्व प्राचार्य श्रीकृष्ण त्र्यंबक काकिर्डे, राष्ट्रोत्थान न्यास के अध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र बांदिल भी मौजूद थे। कार्यशाला के अंतिम दिन आज शिक्षा में मातृभाषा विषय पर व्याख्यान होगा।
श्री सहस्त्रबुद्धे ने तार्किक ढ़ंग से अपनी बात रखी और कहा कि हम किन तरीकों से अपने राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने देश के चिंतन, विचार दर्शन को अपने अंदर प्रत्यक्ष रूप में समेटना होगा। चंूकि भारत का अपना सबसे पुरातन संस्कृति है। इस लिहाज से हमें देखना होगा कि पुरातन होते हुए भी हमारा वैशिष्ट्य जैसा का तैसा है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने इस देश पर शासन करते हुए यह जानने का प्रयास किया था कि भारत का मूल क्या है? जब कभी यह बात होती है कि दुनिया का सबसे सुन्दर देश कौन है तो उत्तर आता है भारत। सबसे श्रेष्ठ साहित्य किसका है जवाब मिलेगा भारत। अब तो वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। जब सबकुछ हमारे अंदर है तो फिर देर किस बात की है। इन्हीं सारी बातों को हमें अपने स्वभाव में उतारना होगा और उसी हिसाब से व्यवहार करना होगा। यह हो गया तो स्वत: राष्ट्रीय चरित्र सामने आ जाएगा।
हथियार आक्रमण के लिए नहीं बचाव के लिए :
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ.अब्दुल कलाम के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि एक बार लोगों ने उनसे पूछा कि आप शांति की बात करते हैं और घातक हथियारों का निर्माण करते हैं? इस पर कलाम ने कहा था कि भारत सदियों से शांति का संदेश देता रहा है। हमने कभी दूसरे देश पर आक्रमण भी नहीं किया। हां भारत पर जरूर समय-समय पर आक्रमण होते रहे हैं। अगर हम हथियारों का निर्माण कर रहे हैं तो अपने बचाव के लिए दूसरे देश पर आक्रमण के लिए नहीं। श्री सहस्त्रबुद्धे ने डॉ.कलाम के बारे में इस बात का जिक्र करके यह बताना चाहा कि उन्हें भारत की सभ्यता और संस्कृति का कितनी अच्छी तरह भान था।
भगवान राम के अदर्शों पर चलें :
सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति आरबी दीक्षित ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए भारत ने कई बार संवैधानिक संकटों को झेला है। संवैधानिक संकट का मतलब आजादी के बाद लिखे गए संविधान से बिल्कुल नहीं है। बल्कि सदियों से हमारी परंपराओं में जो बात चली आ रही है वह संविधान से कम भी नहीं है। ऐसा ही संकट 17 लाख वर्ष पहले अयोध्या में हुआ था। तब सत्य यानि भगवान राम की मां ने यह संकट पैदा किया था। उन्होंने राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया था। उन्होंने फिर जिक्र भरत का किया। भरत ने किस तरह से राज सिंहासन पर बैठना अस्वीकार कर दिया और अपने ज्येष्ठ भाई की खड़ाऊं के साथ राज चलाया। उन्होंने कहा कि यह उद्दरण इस बात के गवाह हैं कि अगर हम सत्य के साथ चलेंगे तो निश्चित ही अपने देश को परम वैभव के शिखर पर ले जाएंगे। कार्यक्रम का संचालन डॉ.नरेश त्यागी ने और आभार प्रदर्शन राष्ट्रोत्थान न्यास के कोषाध्यक्ष अरुण अग्रवाल ने किया। सेवाभारती छात्रावास के भैयाओं ने वंदेमातरम का गायन किया। इसके साथ ही दूसरे दिन की कार्यशाला का समापन हो गया।
शिक्षा में मातृभाषा पर व्याख्यान आज
कार्यशाला के अंतिम दिन शिक्षा में मातृभाषा विषय पर सारगर्भित व्याख्यान होगा। समापन सत्र की मुख्य वक्ता साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी (जबलपुर) होंगी। विशिष्ट अतिथि के रूप में गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ.वंृदा जोशी उपस्थित रहेंगी।