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जनमानस

इस्लाम को बदनाम करता आतंकवाद


याकूब की फांसी पर देश की जितनी किरकिरी हुई इससे देश द्रोहियों व आतंकवादियों को मदद ही मिली। ये चंद लोग जो देश के दुश्मनों, हत्यारों के हमदर्दों को देश की निर्दोष सभी धर्मों की जनता व मासूमों के मारे जाने का दु:ख नहीं हुआ, जिसमें सैकड़ों मारे गए व हजारों बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं, जबकि आतंक का दंश झेल चुकी कांग्रेस व उसके नेता भी सुर में सुर मिलाने लगे। हद तो तब हो गई जब इसे सांप्रदायिकता का रंग देकर धर्म से जोड़ा गया व इसमें ओवैसी, अबू आजमी वासिम पठान के साथ हमारे बुद्धिजीवियों की बिरादरी पूर्व न्यायाधीश व अपने आपको धर्म निरपेक्ष कहने वाले नेता भी राजनीति करने लगे, इन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, इजराइल, आस्ट्रेलिया व अन्य देशों से सीख लेनी चाहिए जो अपने एक-एक नागरिकों की जान की कीमत जानते हैं, जबकि हमले में सभी धर्म व समाजों के लोग मारे गए व उन्हें आर्थिक हानि भी उठानी पड़ी। आज पाकिस्तान में प्रति दिन कोई न कोई फांसी पर लटकाया जा रहा है, लेकिन वहां के बुद्धिजीवी चुप है व संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष बानमून चुप है, लेकिन हमारी फांसी पर सवाल उठाकर क्या बतलाना चाहते है, जबकि पाकिस्तान आतंकियों की पनाहगार है व आतंकी खुलेआम घूम रहे है तो पाकिस्तान फांसी किसे दे रहा है। देशद्रोहियों, आतंकियों का पक्ष लेकर देश की सॉफ्ट देशों में गिनती होने लगी व इन जैसे गुनहगारों को शह मिली वहीं देश की सर्वोच्च न्यायपालिका के साथ राष्ट्रपतिजी के निर्णय पर उंगली उठाकर देश का सम्मान गिराया गया। देश की जनता को ऐसे लोगों के खिलाफ सड़कों पर उतरना होगा व ऐसे नेताओं व उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को सबक सिखलाते हुए देश प्रेम व देशभक्ति का पाठ पढ़ाना होगा। क्या कारण है कि सिर्फ मुस्लिम समाज के लोग व पढ़े-लिखे नौजवान ही आतंकवादी हैं व शामिल हो रहे, जिसके कारण मुस्लिम राष्ट्र के निर्दोष मासूम बच्चे, महिलाएं, नागरिक जनता मारी जा रही है व शांति अमन भाईचारे का पैगाम देने वाला इस्लाम बदनाम हो रहा है। इसके लिए सभी शांतिप्रिय देशों व मुस्लिम राष्ट्रों को मिल बैठकर ठोस हल निकालना होगा। वही हमारे देश के मुस्लिम धर्म गुरुओं के साथ मुस्लिम समाज को भी गंभीरतापूर्वक सोचना होगा। आतंकवाद किसी के भी हित में नहीं है।

पुरुषोत्तम गुप्ता

Updated : 25 Aug 2015 12:00 AM GMT
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