अग्रलेख

अप्रवासी भारतीय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बने तो आश्चर्य नहीं
- मुजफ्फर हुसैन
मई 2015 के आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी ने केमरून के नेतृत्व में अपनी जीत एक बार फिर दर्ज करवा ली, लेकिन ब्रिटेन के मतदाता ने यह भी दर्शा दिया कि आगामी आम चुनाव में लेबर पार्टी की सरकार बन जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि वर्तमान चुनाव ने यह संदेश देश और दुनिया को दे दिया है। ब्रिटेन के मतदाताओं ने यह स्पष्ट रूप से बतला दिया है कि दुनिया का यह सबसे प्राचीन लोकतंत्र समय को पहचानता हुआ, उसके साथ कदम मिलाकर चलने में माहिर है। वहां लाखों ऐसे भी नागरिक हैं, जो अश्वेत यानी काले कहलाते हैं। कामकाज और उच्च शिक्षा लेने की दृष्टि से सैकड़ों ऐसे लोग वहां पहुंच गए हैं, जो गोरों की नस्ल से नहीं है। सामान्य भाषा में यह अप्रवासी ब्लेक यानी काले ही कहलाते हैं। ब्रिटिश राजनीतिज्ञ इस मामले में विशाल दृष्टिकोण के थे, इसलिए स्थाई रूप से वहां रहने वाले इन लोगों को भी नागरिकता प्रदान की जाती रही। यदि कोई सरकार किसी बाहर से आए हुए को अपना नागरिक मान लेती है तो फिर उसे स्थाई नागरिकता मिल जाती है। इस प्रकार एशिया और अफ्रीका से पहुंचे लोग शनै: शनै: वहां के नागरिक बनते चले गए। इस आधार पर जो गोरे उन्हें काला कहते थे, वे भी ब्रिटेन की सरकार के गठन में केवल मतदाता नहीं बने, बल्कि सरकार के संचालन में भी एक महत्वपूर्ण घटक बन गए। समय के साथ गोरों की तादाद घटने लगी और बाहर से आए लोगों की संख्या तेजी से बढऩे लगी। इस बार फिर इंग्लैंड में न केवल बाहर से आए नागरिक मतदाताओं ने अपना हिस्सा दर्ज करवाया, बल्कि इस लीक पर चलते हुए यह भी दर्शा दिया कि भविष्य में कोई एशियन अथवा तो अफ्रीकन ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन जाए, तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं। यह भी चमत्कार संभव है कि कोई भारतीय वहां का प्रधानमंत्री बन जाए। ओबामा यदि अमेरिका का प्रथम अफ्रीकन है तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं कि ब्रिटेन का कोई प्रथम अप्रवासी भारतीय वहां का प्रधानमंत्री बन जाए। 2015 के आम चुनाव में एशियाई सदस्यों की बुद्धि का अनुमान बिल्कुल ठीक साबित हुआ। जब 22 सदस्य जो एशिया के अन्य देशों में जन्मे थे, वे ब्रिटेन की संसद में पहुंच गए। इनमें लेबर पार्टी के 13, कंजर्वेटिव पार्टी के 8 और स्काटिश नेशनल पार्टी का एक सदस्य शामिल है। पाठकों को याद दिला दें कि 2010 के आम चुनाव में 18 एशियाई ब्रिटेन की संसद में पहुंचे थे, जिनमें 8 भारतीय वंशज थे। अब 2015 में वे दस हो गए हैं। इस चुनाव में 3 बांग्लादेशी महिलाओं ने भी संसद में पहुंचकर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इनमें एक महिला तो शेख मुर्जीबुर्रहमान की नवासी है, जिसका नाम सिद्दीकी है। ब्रिटेन की संसद में अधिक भारतीय लेबर पार्टी के हैं। वे मुस्लिमों में अधिक लोकप्रिय है। वर्तमान संसद में 10 भारतीय वंशज महिलाएं हैं, जिनमें सात लेबर पार्टी से जुड़ी हुई हंै। ब्रिटेन में 2015 के आंकड़े बतलाते हैं कि एशियाई वंशज जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उससे यह आभास हो जाता है कि ब्रिटेन में वह दिन दूर नहीं कि जिन अश्वेत से वे घृणा करते थे वे ही अब ब्रिटेन के भविष्य के शासक बन जाएंगे। ब्रिटेन की संसद में सबसे पुरानी एशियन सदस्य एम.पी. केथवाज के साथ प्रीति पटेल और इनफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सोंक शामिल हैं। केथवाज ने लेस्टर पूर्व और वीरेन्द्र शर्मा ने साउथ हाल की सीट पर अपना अधिकार जमाए रखा है। लेबर पार्टी की सीमा मल्होत्रा भी इस बार दक्षिण पश्चिम लंदन की सीट से सफल हो गई है। उनके साथ आलोक शर्मा और शैलेष वर्मा दो ऐसे नाम हैं जो 05 से निरंतर चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार पहली बार चुनाव जीतकर संसद में स्थान पाने वाले सियोला फर्नांडिस और लीजा नंदी भी शामिल हंै। ऐसा भी नहीं है कि प्रत्येक एशियन चुनाव में अपनी जीत दर्ज करवा लेता है। इस चुनाव में 56 भारतीय परिवारों में जन्म लेने वाले उम्मीदवार थे। इसमें कंजर्वेटिव दल के 17, लेबर पार्टी के 14 और लिबरल डेमोक्रेट के 14, ग्रीन पार्टी के चार और युनाइटेड किंगडम पार्टी के तीन उम्मीदवार शामिल हैं। लेबर पार्टी जो हम भारतीयों में मजदूर पार्टी के नाम से प्रख्यात है वह भारतीय मतदाताओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है। उसके अधिकांश सदस्य नौकरी करने वाले हैं अथवा तो छोटे-मोटे रोजगार से जुड़े हैं। हम अपनी भाषा में उन्हें मध्यमवर्गीय कह सकते हैं।
भारतीयों की तरह पाकिस्तान भी ब्रिटेन की राजनीति में सक्रिय है। उनके सदस्य भी बढ़ते चले जा रहे हैं। इस समय उनमें सबसे अधिक लोकप्रिय सांसदों में साजिद जावेद का नाम लिया जाता है। वे वर्तमान प्रधानमंत्री के अत्यंत निकट माने जाते हैं। यहां तक कहा जाता है कि वे केमरून के उत्तराधिकारी हंै। बांग्लादेशी भी अपने कदम बढ़ाते हुए दिखलाई पड़ रहे हैँ। भारतीय उपखंड के देश अपनी हविस को छोड़कर काम करें तो वह दिन दूर नहीं हो सकता है, जब कि अखंड भारत का कोई सांसद प्रधानमंत्री के रूप मेंaशपथ लेकर ब्रिटिश जनता को यह संदेशा दे सके कि भूतकाल में तुमने भारत पर राज किया, अब समय बदला है, जब भारत इंग्लैंड पर राज करेगा। भारतीय उपखंड के नेताओं को दीवार पर लिखी इस इबारत को पढ़ लेना चाहिए कि भारत के साथ कदम मिलाकर चलेंगे तो वे फिर से दुनिया में अपना दबदबा कायम कर लेंगे। कट्टरवादी और इस्लाम के नाम की रट लगाने वाले इस बात को समझ सकते हैं कि भारत के साथ आकर विदेशों में भी सत्ता कायम की जा सकती है। शर्त केवल इतनी है कि अपनी साम्प्रदायिक मानसिकता को छोड़कर अखंड भारत के मंत्र में अपना विश्वास दृढ़ करें। आज की दुनिया धार्मिक उन्माद में नहीं विकास की सीढ़ी पर चढ़कर परायों को अपना बना सकती है। अब सवाल यह है कि ब्रिटेन का प्रथम ओबामा कौन बनेगा? अमेरिकन जनता ने तो काले और गोरे का भेद मिटाकर अपने इतिहास को रच डाला, अब तो भारत की बारी है कि अपनी विदेश नीति को अधिक सफल और दृढ़ बनाकर हिन्दुस्तानियों को विश्व की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान के लिए तैयार करे। उपनिवेशवाद की गुदड़ी में चिंगारी लगाने वाले महात्मा गांधी थे। हमने देखा दक्षिण अफ्रीका की लहर सारी दुनिया में देखते-देखते फैल गई। इसलिए इस्लाम के नाम पर दुनिया को विजय करने का सपना छोड़ दें और भारत के पद चिन्हों पर चलकर विश्व में एक नई राजनीति का शुभारंभ करें। प्रधानमंत्री केमरून स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि कोई एशियाई ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनेगा तो ब्रिटिश लोकतंत्र का डंका बजेगा, लेकिन केमरून उदारवादी विचारधारा के प्रवक्ता नहीं हैं। इसलिए जब तक लेबर पार्टी सत्ता में नहीं आती है, यह सपना साकार नहीं हो सकता है। वास्तविकता तो यह है कि सबके साथ यह नारा केवल लेबर पार्टी ही दे सकती है और हमेशा की तरह विश्व में अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर सकती है।
