प्रदेश नेतृत्व अनिर्णय की स्थिति में क्यों ?

प्रदेश नेतृत्व अनिर्णय की स्थिति में क्यों ?
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अतुल तारे



भारतीय जनता पार्टी एक कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल है। भारतीय राजनीति में आज जो एक सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहा है वह एक सतत साधना एवं संघर्ष का प्रतिफल है, परिणाम है। भाजपा आज यह करने में सफल इसलिए नहीं कि उसने हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने का प्रयास किया। पार्टी नेतृत्व ने लक्ष्य प्राप्ति हेतु कार्यकर्ताओं के निर्माण की अनूठी पद्धति भी अपनाई जिसके सार्थक परिणाम भी आए। इस पद्धति में हमेशा दायित्व को प्रमुख स्थान दिया गया। पर राजनीति में पद का अपना एक महत्व है और कार्यकर्ता अपनी जवाबदारी ठीक से निभा सके वह अपनी भूमिका को और विस्तार दे सके इसमें पद भी एक प्रमुख कारक है। लेकिन मध्यप्रदेश भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आखिर क्यों इस प्रासंगिक निर्णय लेने में इतना विलम्ब क्यूं लग रहा है, यह आश्चर्य का विषय अवश्य है।
मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के गठन को धीरे-धीरे दो साल होने में भी अब चंद माह शेष है। पर पार्टी अब तक निगम, मण्डल एवं तमाम प्राधिकरणों सहित दर्जनों राजनीतिक नियुक्तियां नहीं कर पाई है। पार्टी नेतृत्व ने सरकार बनते ही पुराने निगम मण्डल भंग करने में तत्काल जो निर्णय लिया था उससे यह उम्मीद बंधी थी कि इस बार नेतृत्व विलम्ब नहीं करेगा, पर आज दिनांक तक यह नियुक्तियां अभी भी प्रतीक्षा में है। लोकसभा चुनाव का पहले कारण बताया गया फिर स्थानीय निकाय फिर जनपद चुनावों का। इसके बाद पार्टी के कई बड़े अभियान आए और फिर प्रदेश का राजनीतिक वातावरण। अब एक बार फिर मुख्यमंत्री ने हाल ही में संकेत दिया था कि नियुक्तियां सिर्फ दो तीन दिन में पर उसमें भी पर्याप्त समय हो गया। पार्टी कार्यकर्ताओं का, खासकर जो इस दौड़ से दूर है जिनके लिए पार्टी हित सर्वोपरि है वह भी ऐसे अनिर्णय को पार्टी के स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं मानते। यह सही है कि पार्टी का आज भी अधिकांश कार्यकर्ता पद की दौड़ से दूर है पर यह भी पार्टी के विस्तार के लिए आवश्यक है कि अनुकूल राजनीतिक वातावरण में समय रहते उसे बड़ी जवाबदारी के लिए तैयार किया जाए।
यह जवाबदारी सिर्फ निगम मण्डल या लालबत्ती तक ही सीमित नहीं है। शासकीय अशासकीय कई संस्थानों में ऐसे सैकड़ों पद हैं जहां न केवल पार्टी के कार्यकर्ता अपितु प्रदेश के स्थापित गणमान्यजनों की आवश्यकता है। आज ऐसे सैकड़ों पद खाली हैं। सलाहकार समितियां अस्तित्व में नहीं हैं। जहां हैं वहां पूर्ववर्ती सरकार से जुड़े सदस्य काबिज हंै। महाविद्यालयों की जनभागीदारी समितियाँ है, फोरम है और कई महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं जहां प्रदेश सरकार उपयुक्त चेहरों को नामित कर सकती है पर पार्टी नेतृत्व समय रहते इन नियुक्तिों को लेकर फिर पिछड़ता दिखाई दे रहा है।
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प्रदेश नेतृत्व अनिर्णय की...
इतना ही नहीं, इस बीच सरकार ने कई महत्वपूर्ण संस्थाओं में सेवा निवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों का अवश्य राजनीतिक पुनर्वास किया। प्रशासनिक अधिकारियों के प्रति सरकार की गई यह रहम दिली अब तक उसके या प्रदेश के हित में कोई सार्थक बदलाव लाई है, इसके संकेत नहीं मिले हैं। जाहिर है सरकार का यह अनिर्णय कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव पैदा कर रहा है।
इस बीच कभी खबर आती है कि सूची तैयार है, कभी आती है दिल्ली से मंजूरी नहीं मिली। इधर प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे ने स्वयं कहा कि सब कुछ तय हो चुका है फिर भी बार-बार मंथन से क्या अमृत निकलना है, इसकी प्रतीक्षा है। जाहिर है इससे नौकरशाही हावी है, विकास की गति प्रभावित है। जानकारों का मानना है कि आज भी अब नियुक्ति होती भी है तो पूरी नियुक्तियां होते-होते और समय लगेगा। आखिरी वर्ष यानि 2018 चुनावी वर्ष होगा। छह माह पहले आचार संहिता लग जाएगी ऐसे में काम करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा। पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि वह अब तक विगत में हुई नियुक्तियों की तत्काल खुले मन से समीक्षा करे और यह भी देखे जिनको पद दिए वे अपना और पार्टी का कद बढ़ाने में सफल रहे या नहीं और अब जबकि नियुक्तियां होनी ही हैं तो ऐसे में भी अपने-पराए का लोभ दूर कर पार्टी एवं प्रदेश हित में योग्य चेहरों को उचित स्थान एवं मुकाम देगी ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए। कारण नेतृत्व अनिर्णय की स्थिति में जब भी रहता है, उसके परिणाम अवश्य घातक ही रहते हैं, यह नेतृत्व को समझना होगा।

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