याकूब मेमन ने एक बार फिर राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी
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नई दिल्ली | 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन ने फांसी की सजा से एक दिन पहले एक बार फिर राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी है। इससे पहले 2014 में याकूब के भाई ने भी दया याचिका दी थी, जिसे राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था।
वहीं याकूब की फांसी के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच आज अहम सुनवाई करेगी। जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में जस्टिस प्रफुल्ल सी पंत और जस्टिस अमिताव राय की बेंच सुनवाई करेगी।
इससे पहले मंगलवार की सुनवाई में जस्टिस कूरियन और जस्टिस दवे की राय अलग-अलग होने के चलते मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया गया था।
इस विषय पर न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के बीच असहमति के बीच, यह मामला प्रधान न्यायाधीश एच.एल दत्तू को भेजा गया जिन्होंने मेमन की किस्मत का फैसला करने के लिए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत और न्यायमूर्ति अमिताव राय की बड़ी पीठ का गठन किया।
मेमन मुंबई विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाला एकमात्र दोषी है जो गुरुवार को 53 वर्ष का होने वाला है। नई पीठ आज इस बात पर फैसल करेगी कि 30 अप्रैल को मुंबई की टाडा अदालत द्वारा जारी मौत वारंट पर रोक लगाई जाए या नहीं और मेमन की याचिका के गुणदोष पर गौर किया जाए या नहीं। मेमन ने दावा किया है कि अदालत के सामने सभी कानूनी उपचार खत्म होने से पहले ही वारंट जारी कर दिया गया।
न्यायमूर्ति एआर दवे ने मौत के वारंट पर रोक लगाए बगैर उसकी याचिका खारिज कर दी, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन की राय अलग रही और उन्होंने रोक का समर्थन किया।
दोनों न्यायाधीशों के बीच किसी विषय पर अलग-अलग राय होने पर पैदा कानूनी स्थिति के बारे में पूछे जाने पर पीठ को बताया गया, यदि एक न्यायाधीश इस पर रोक लगाता है और दूसरा नहीं, तो फिर कानून में कोई व्यवस्था नहीं रहेगी।
अटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और मेमन की ओर से पेश हुए राजू रामचंद्रन सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि इस विषय को गौर करने के लिए प्रधान न्यायाधीश के हस्तक्षेप के साथ बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति दवे का नजरिया था कि 21 जुलाई को मेमन की उपचारात्मक याचिका को खारिज करने में कुछ खामी नहीं थी और महाराष्ट्र के राज्यपाल उसकी दया याचिका पर फैसला कर सकते हैं क्योंकि दोषी कैदी अपनी सभी कानूनी उपचारों का प्रयोग कर चुका है।
शीर्ष अदालत द्वारा मेमन की उपचारात्मक याचिका पर फैसले में सही प्रक्रिया का पालन नहीं करने की बात कहने वाले न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि इस खामी को दूर किया जाना चाहिए और उपचारात्मक याचिका पर नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में मौत के वारंट पर रोक लगाई जानी चाहिए। न्यायमूर्ति दवे ने इस मसले पर मनु स्मति का एक श्लोक उद्धत करते हुए कहा, खेद है, मैं मौत के फरमान पर रोक लगाने का हिस्सा नहीं बनूंगा। प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने दीजिये।