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बीमारियों के मौसम में बाजार में बिक रहे कटे और सड़े फल

सेहत पर भारी सड़े फल, खाद्य एवं औषधि विभाग के ध्यान नहीं देने से बढ़ सकतीं हैं परेशानियां

अशोकनगर | फलों को सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है लेकिन जब फल खराब हों तो यह फायदे की जगह नुकसान पहुंचाते हैं। खासकर बरसात के मौसम में तो ऐसे फलों से बचकर रहना चाहिए। लेकिन शहर में धड़ल्ले से सड़े और कटे फल बेंचे जा रहे हैं। खाद्य एवं औषधि विभाग ने अभी तक ऐसे फल विक्रेताओं पर कार्रवाई नही की है। जिससेे यह रोजगार चल रहा है।
शहर में हर कहीं सड़े केले, कटे आम और पपीता सहित अन्य फल बेंचे जा रहे हैं। यहां तक कि बड़े और थोक फल विक्रेता भी सड़े फल बेंचने में पीछे नही हैं। फिर फुटकर विक्रेता भी इस काम में क्यों पीछे रहें। नया बस स्टेण्ड, पुरानी सब्जी मण्डी, गांधी पार्क चौराहा, संजय स्टेडियम के पास, नई सब्जी मण्डी सहित गली-गली में फेरे लगाकर फल बेंचने वालों के पास सड़े फलों के ढेर आसानी से देखे जा सकते हैं। बारिश के मौसम में बीमारियां तेजी से फैलती हैं। मरीजों की सेहत सुधारने के लिए चिकित्सक उन्हें फलों का सेवन करने की सलाह देते हैं। गरीब और मजदूर वर्ग जो कि महंगे फलों को खरीदने में कठिनाई महसूस करते हैं वे मजबूरी में इन फलों को खरीद लेते हैं। खाद्य एवं औषधि विभाग का ध्यान इस ओर नही है। जिला अधिकारी राजेश धाकड़ अमले की कमी बताकर आगे कार्रवाई करने की बात कहते हैं। वहीं स्थानीय प्रशासन यानी नगरपालिका भी सड़े गले फलों को नष्ट करा सकती है लेकिन ग्रीष्मकाल में एकाध बार की कार्रवाई को छोड़कर नपा अधिकारियों ने इस समस्या पर ध्यान नही दिया है। जबकि नगरपालिका में स्वास्थ्य शाखा की इस ओर ध्यान देने की जिम्मेदारी भी रहती है। फिर भी नगर में नपा के स्वास्थ्य अमले द्वारा कभी कोई कदम नही उठाया जाता है।
कैल्सियम कार्बाइड का प्रयोग बड़ा:
फलों को पकाने के लिए एथेलिन का उपयोग किया जाता है। यह रसायन फलों को 6-7 दिन में पका देता है। खाद्य एवं औषधीय नियमों के मुताबिक एथेलिन द्रव्य के उपयोग के आंशिक स्तेमाल की ही अनुमति है। पहले इस रसायन का ज्यादातर उपयोग फलों को पकाने के लिए किया जाता था। लेकिन अब इसकी जगह कैल्सिीयम कार्बाइड ने ले ली है। जानकार बताते है कि कैल्सिीयम कार्बाइड 24 घण्टे के अंदर ही फलों को पका देता है। आम उपभोक्ता और फल विक्रेता भले ही इससे अंजान हो या इसे ठीक मानते हो लेकिन चिकित्सकों के मुताबिक इस प्रक्रिया से पकाए गए फल किडनी, लीवर जैसे आंतरिक और महत्वपूर्ण अंगों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इस लिए इनसे बचना चाहिए।
मिठास और चमक से रहें सावधान:
सहज पके सो मीठा होए जैसी कहावतें अब अपनी प्रासंगिकता खोती जा रहीं हैं क्योंकि हमे अब फलों के पकने तक कि सब्र नही है। जबकि बुजुर्ग कहते हैं कि सब्र का फल मीठा होता है।
चमक और मिठास बढ़ाने के लिए हो रहे रसायनिक पदार्थों के प्रयोग से नुकसान भी उठाने पड़ रहे हैं। फलों की मिठास बढ़ाने और उनकी चमक से उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए फलों पर पॉलिश और रसायनों का प्रयोग किया जाता है। मसलन आम और केले को मीठा करने के लिए सोडियम सैकरीन का प्रयोग किया जा रहा है। वहीं सेवफल को चमकदार दिखाने के लिए वार्निश जैसे कैमीकल की पॉलिस की जा रही है जो कि खतरनाक है। विशेषज्ञों के मुताबिक इससे अनिद्रा, चक्कर आना जैसी सामान्य शिकायतों के अलावा लीवर हृदय और वृक्क की बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है।

Updated : 27 July 2015 12:00 AM GMT
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