जनमानस
कौन कम करेगा बस्ते का बोझ?
शिक्षा का बंटाढार और करने में केन्द्र सरकार द्वारा आवंटित पूर्व बजट से बहुत कम राशि रखी गई है, जबकि केन्द्र की सर्वशिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, मिड डे मील के बजट में भी भारी कमी कर दी गई है, तमाम प्रकार के शिक्षक-वर्गों का भर्ती के प्रति उदासीनता तो पहले ही दायित्वहीन बना चुकी है। महाराष्ट्र के एक स्कूली अध्ययन रिपोर्ट में बच्चों को होने वाली बीमारियों में भारी-भरकम बस्ते के बोझ से 80 प्रतिशत बच्चों को पीठ दर्द, हड्डियों के रोग, गर्दन दर्द, क्योंकि 3-4 मंजिले स्कूलों में नन्हें-बच्चों को अपने वजन को प्राय: समतुल्य बोझ तले आई रिपोर्ट पर शिक्षाविदों, समाजसेवियों, सरकारों के कान में जूँ तक नहीं रेंगी, अधिकांश स्कूलों के संचालकों में भी यही प्रबुद्ध नागरिक है, अंग्रेजी माध्यम एवं बस्ते के बोझ को कम करने के युद्धस्तरीय प्रयास तत्काल किए जाना चाहिए।
मासूम बच्चों को कौन खोजेगा? बच्चे भविष्य के निर्माता होते हैं, किन्तु भारत में लापता बच्चों को ढूंढने हेतु न तो पुलिस और न ही सरकार संवेदनशील होती है। गृह मंत्रालय के अनुसार 2014 में लापता 68000 के करीब थे, इसमें 63 प्रतिशत लड़कियां है। हर आठ मिनट में एक बच्चा तस्करी का शिकार हो जाता है, इनमें प. बंगाल, महाराष्ट्र और दिल्ली में लापता बच्चों की संख्या सबसे अधिक है, इन बच्चों का यौन-शोषण, बाल मजदूरी कराई जाती है तथा उनके अंगों की तस्करी भी की जाती है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने लापता बच्चों को ढूंढने में बेरुखी, विडंबना माना कि किसी को गायब होते बच्चों की कोई फिक्र क्यों नहीं?
सतीशचन्द्र चड्ढा