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जनमानस

परंपरा के अनुरूप बदलाव

जिस तरह मनुष्य में अपने पूर्वजों के जीन्स रहते हंै और इनका प्रभाव चरित्र में दिखाई देता है। भारत सनातन राष्ट्र है, इसकी संस्कृति महान पूर्वजों के आदर्शों का चरित्र भारत में हमेशा रहा है। भारत के सोच में मानवमात्र का कल्याण रहा है। इसलिए आक्रामक प्रवृत्ति कभी नहीं रही। भारत की संस्कृति का रंग भगवा और व्यवहार धवल रहा है। काले परिधान शुभ नहीं माने जाते, काले रंग को हमेशा अमंगल सूचक माना गया। इसलिए काली साड़ी में नारी या काले कपड़ों के पुरुष के वस्त्रों को मंगल कार्यों में अशुभ माना गया। दुर्भाग्य से राजनैतिक गुलामी के समय अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति-परंपरा को जबरन थोपने के प्रयास किए। इसी का दुष्परिणाम है कि काले कोट में वकील पैरवी करते हैं और न्यायमूर्ति भी काला लबादा डाले रहते है। इसी प्रकार दीक्षांत समारोह में भी काले गाउन को छात्र पहने रहते है और इसी प्रकार के काले गाउन में अतिथि का भी संबोधन होता है। यही कारण है कि हमारी शिक्षा में श्रेष्ठ मनुष्य निर्माण के संस्कारों का अभाव रहा। अक्सर लोग प्रश्न करते है कि कांग्रेस और भाजपा के शासन की नीतियों में मूल अंतर क्या है? यह अंतर है सांस्कृतिक और परंपरा की अवधारणा का। यही कारण है कि हरियाणा के चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के छात्र दीक्षांत समारोह में काले गाउन की बजाए सफेद परिधान में दिखाई दिए। इस बदलाव के पीछे हमारी परंपरा के अनुसार जीवनशैली का विचार है। पहली बार ऐसा वातावरण बना है जिसमें हमारी परंपरा, संस्कृति का आलोक दिखाई देने लगा है। यह भी महत्व की पहल रही कि मन और शरीर को स्वस्थ बनाने वाले योग को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली। अभी तो और भी कईं बदलाव होना है, लेकिन इसकी शुरुआत के संकेत दिखाई देने लगे है।

मनोज अग्रवाल

Updated : 11 July 2015 12:00 AM GMT
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