जनमानस

राजधर्म


राजा का आचरण राजधर्म के अनुकुल होना चाहिए। हमारे महान पुर्वजों ने राजा और राज्य व्यवस्था के बारे में गहराई से चिंतन किया और उसके अनुरूप जनता के कल्याण की राज्य व्यवस्था की रचना की। राजा की मर्यादाएं निर्धारित की। हमारे यहां केवल यह भी विचार नहीं किया कि राजा कैसा हो? लेकिन प्रजा कैसी हो, व्यक्ति का जीवन श्रेष्ठ हो। इस प्रकार की संस्कार पद्धति को प्रचलित किया। श्रेष्ठ समाज और आदर्श राजा की परम्परा सदियों तक बनी रही, इस व्यवस्था में से भारत में रामराज्य, धर्मराज्य और स्वर्ण युग जैसी आदर्श राज्य व्यवस्था का मॉडल प्रस्तुत किया। दुनिया की चाहे मिस्र, यूनान, रोम आदि की सभ्यता का उल्लेख इतिहास में होता है। अन्य देशों के चिंतकों ने एक ईकाई के रूप में विचार किया। यूनान के दार्शनिकों ने राजा और राज्य व्यवस्था के बारे में दर्शन प्रस्तुत किए। प्लेटो ने दार्शनिक राजा और समाज को तीन वर्गों में बाँटकर समाज का विचार किया। हमारे यहां व्यक्ति की श्रेष्ठता के संस्कारों को अधिक महत्व दिया। गणतंत्र, राजतंत्र एवं परम्परा की राज्य व्यवस्था के कई उदाहरण मिल जाएंगे। राजधर्म के अनुरूप राज्य व्यवस्था सदियों तक चलती रही। दुनिया की किसी सभ्यता में यह नहीं रहा कि लंगोटीधारी साधू, संतों और ऋषि-मुनियों का नियंत्रण राजा पर रहा हो। भारत में राष्ट्र के लिए समर्पित त्यागी, तपस्वी, संतों ने राज्य व्यवस्था का निर्धारण किया। वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने दायित्व का निर्वाह करने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। इस व्यवस्था न जनता को केवल दर्शक बना दिया है।

महेन्द्र श्रीवास्तव

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