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ज्योतिर्गमय

जीवन का आधार सत्य है

नील माधव बंद्योपाध्याय बंगाल के एक मशहूर जज थे। वे अपनी सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। कभी किसी भी प्रलोभन से उनका मन नहीं डिगा। लेकिन बड़े से बड़े आदमी से भी कोई न कोई चूक हो ही जाती है। एक बार बीमा एजेंट के आग्रह करने पर उन्होंने अपने आपको स्वस्थ बताकर 5 हजार रुपए का जीवन बीमा करवा लिया जबकि वह एक रोग से पीडि़त थे। उसी के चलते वह धीरे धीरे और अस्वस्थ होते गए। इससे जीवन के अंतिम दिनों में वे अति क्षुब्ध और अशांत हो गए। उन्हें देखकर उनके परिचित और संबंधी सभी उदास थे। लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा था।
अंत में संबंधियों ने उनसे अशांत और दुखी रहने का कारण पूछ ही लिया। बंधोपाध्याय जी बोले, 5 वर्ष पहले बीमा कराते समय मैंने डॉक्टर को अपने डायबिटीज के बारे में नहीं बताया। मैंने सच्चाई छुपाकर गलती की है। यही असत्य आचरण मुझे दिन-रात अशांत रखता है। आत्मग्लानि होती है और मैं प्रायश्चित करना चाहता हूं। बीमा एजेंट को तुरंत बुला दें ताकि मैं बीमा रद्द करा दूं। मैं नहीं चाहता कि ऐसा पैसा मेरे बाद मेरे वारिसों को मिले।
लोगों ने बीमा एजेंट को बुलवा लिया। बीमा एजेंट ने आकर उनकी सारी बात सुनी। सारी बातें सुनने के बाद एजेंट ने कहा, आप बेकार परेशान हैं। ऐसा तो होता रहता है। आपने इस झूठ से कंपनी का कोई अहित तो किया नहीं। लेकिन माधव बाबू उसकी बात से संतुष्ट नहीं हुए और बीमा रद्द करवा दिया। फिर बोले, अब मेरा मन शांत है। आखिर मैं अपने आपसे न्याय कर सका। इसके बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए। जिस जीवन का आधार सत्य हो, वही सफल है।

Updated : 15 Jun 2015 12:00 AM GMT
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