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जनमानस

भौंड़े विज्ञापन क्या उचित हैं?



विश्वकप प्रसारण में प्रसारित हुए और अब भी हो रहे विज्ञापनों में एक विज्ञापन अंडर वियर का जिसमें खींचों। उधर से खींचों इधर से खींचों और खींचों। खींचने पर खींचा विज्ञापन सभी का ध्यान खींच रहा है। खींचने के मामले में शासकीय संस्कृति अधिक सर्वश्रेष्ठ है। एक काम को खिंचते ही खिंचते रहना सरकार का संस्कार प्रधान कर्तव्य है। हरदेशवासी खींचने में लगा रहता है। कोई ऐसे खींचता है तो कई कैसे खींचते है। खींचने में हमारा देश निडर है। साहसिक है। पतंग का खेल खींचने पर ही टिका है। वो खींच दिया, ये खींच दे। यहां खींंचने से हर काम होता है। देखों ज्यादा खींचना नहीं वरना पूरा ही खींचा जाएगा। वो खींचे तो कोई कुछ नहीं बोलता और हम खींच ले तो हर कोई कहने लग जाता है। खींचों मगर प्यार से। घुमो फिर कहीं पर भी खींचों यही पर। फोटो खींचना, खींचई करना और खींचे खींचना। खींचई कहां नहीं होती है। किसकी खींचई नहीं होती। कौन खींचाई नहीं करता है। सब खींचते है। सबसे खींचों। सबकी खींचो। खींचने का खेल किसने चलाया किसी को मालूम नहीं है। खींच रहे हैं सबकी खींचई हो रही है। जब अवसर मिले खींचों। जो मिले वो खींचो। खींचों कब खींचो। खीजो नहीं खींचने के लिए मन धैर्यवान रखना चाहिए।

सुशील कलमेरी

Updated : 10 Jun 2015 12:00 AM GMT
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