अग्रलेख

हिमालय क्षेत्र से खिलवाड़ न करें एशियाई शक्तियां

  • संजीव पांडेय


प्रकृति के आगे किसी की नहीं चलती। चाहे विज्ञान कितना तरक्की कर ले। भूकंप के मामले में अभी तक विज्ञान फेल है। लेकिन इसे नेपाल की बुरी किस्मत ही कहेंगे। इस सदी का भयानक भूकंप नेपाल ने देखा। भूकंप का असर नेपाल के 80 लाख लोगों पर पड़ा है। मृतकों की संख्या दस हजार तक पार कर सकती है। 14 लाख लोगों को भारी नुकसान हुआ है। इन्हें भारी सहायता की जरूरत पड़ेगी। हालात अभी भी गंभीर हैं। गांवों तक राहत नहीं पहुंची है। भूकंप के कई दिनों बाद तक राहत के लिए गांव में लोग इंतजार कर रहे है। राजधानी काठमांडू में भारी नुकसान हुआ। लेकिन राहत दल भी यहां तत्काल पहुंच गया। लेकिन दूरदराज के गांव वाले अभी भी भगवान भरोसे हैं। कठिन भौगोलिक स्थिति वाले इस देश में राहत कार्य पहुंचाना आसान काम नहीं है। इस भूकंप ने हिमालय क्षेत्र के मुल्कों और यहां के निवासियों को गंभीर चेतावनी दी है। हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ महंगा पड़ेगा। लोगों ने विकास के नाम पर प्रकृति को नष्ट करने की कोशिश की है। बड़े-बड़े भवन बन रहे हैं। विकास के नाम पर आर्थिक कॉरिडोर बन रहे हैं। रेल लाइनें बिछायी जा रही हैं। बड़े-बड़े डैम बनाए जा रहे हैं। अगर भयानक भूकंप आया तो आगे क्या हालात होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
भविष्य में इससे भी बड़े भूकंप की चेतावनी जारी की गई है। भविष्य के भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर 9 तक हो सकती है। इससे भारी तबाही होगी। तबाही इस हद तक होगी कि राहत कार्य चलाना मुश्किल होगा। क्योंकि राहत दल भी बचेगा इस पर सवाल है। हिमालय क्षेत्र धरती के नीचे भारतीय और यूरेशिएन प्लेटों का टकराव जारी है। यह टकराव पिछले कई शताब्दी से तेज है। इसी कारण पिछले एक हजार साल में कई बड़े भूकंप हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में आए है। बारहवीं से चौदवीं शताब्दी के बीच आए एक भूकंप को सबसे तबाही वाला भूकंप वैज्ञानिकों ने माना है। वैज्ञानिकों के अनुसार 1244, 1310, 1506,1803 और 1833 में हिमालय क्षेत्र में बड़े भूकंप आए। इसके बाद 20 वीं शताब्दी में 1905, 1936 और 1950 में हिमालय क्षेत्र में बड़े भूकंप आए। इसका प्रभाव हिमाचल प्रदेश, बिहार, नेपाल और आसाम के इलाके में पड़ा था। वहीं पाकिस्तान में कुछ साल पहले भूकंप की तबाही आयी थी। वो भी हिमालय क्षेत्र ही था। भूकंप का असर राजधानी इस्लामाबाद तक देखा गया था। भारत में बड़े भूकंप तब आए जब देश का अंधाधुंध शहरीकरण नहीं हुआ था। लेकिन इससे सीख हमने नहीं ली। अंधाधुंध शहर बस रहे हैं। लेकिन भूकंप रोधी मानकों का इस्तेमाल इन शहरों में नहीं हो रहा है।
नेपाल में तमाम देशों ने राहत कार्य में एकजुटता दिखायी है। नेपाल पिछले कई सालों से भारत और चीन दो बड़ी महाशक्तियों का रणक्षेत्र बना हुआ है। नेपाल दोनों महाशक्तियों के आपसी टकराव में पिसता रहा है। लेकिन खुशी की बात है कि दुख की घड़ी में चीन और भारत के बचाव दलों ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। घंटों में चीनी राहत दल नेपाल पहुंचा। घंटों में भारतीय राहत दल नेपाल पहुंचा। यही नहीं घंटों में पाकिस्तानी राहत दल नेपाल पहुंच गया। इस विपत्ति की घड़ी में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ होनी चाहिए। उन्होंने त्वरित गति से राहत टीम को नेपाल भेजा। भारत सरकार में एक बढिय़ा को-आर्डिशन दिखा। वैसे नरेंद्र मोदी का राजनीतिक कॅरियर का उदय भी गुजरात के भुज में आए भूकंप के बाद हुआ था। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशु भाई की कुर्सी इसलिए गई थी कि वो भूकंप राहत कार्य को चलाने में विफल रहे थे। नरेंद्र मोदी ने काफी समर्थता से गुजरात के भूंकप प्रभावित क्षेत्र को फिर से खड़ा कर दिया।
नेपाल में जिस तरह से मित्रवत भारत-पाकिस्तान और चीन ने राहत कार्य चलाया है, अगर यही मित्रता के भाव तीनों मुल्क शांति की घड़ी में रखे तो क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी। इससे क्षेत्र में जहां संतुलित विकास होगा, वहीं पर्यावरण संरक्षण पर बढिय़ा काम होगा। हथियारों की अंधाधुंध दौड़ कम होगी। हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण की रक्षा अहम मसला है। इस पूरे महादीप को जीवन हिमालय से मिलता है। लेकिन विकास के नाम पर भारी निर्माण कार्य ने हिमालय क्षेत्र को असुरक्षित कर दिया है। एक तरफ चीन जहां कई बड़े प्रोजेक्टों को लेकर हिमालय क्षेत्र में आ रहा है, वहीं भारत और पाकिस्तान भी इस दौड़ में शामिल हो गए हंै। विकास के नाम पर चीन, पाकिस्तान और भारत हिमालय क्षेत्र में जो कुछ कर रहे हैं वो भविष्य में खतरनाक है। चीन ने तिब्बत में बड़ी-बड़ी पनबिजली योजना शुरू कर दी है। खतरनाक भूकंप की स्थिति में ये पनबिजली योजनाएं चीन समेत भारत को भारी नुकसान पहुंचाएगी। वहीं आर्थिक कॉरिडोर के नाम पर तिब्बत, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। खतरनाक भूकंप की स्थिति में ये बेहद खतरनाक होगा। हिमालय क्षेत्र की तीनों शक्तियों चीन, भारत और पाकिस्तान के पास परमाणु बम है। यह भूकंप तीनों परमाणु संपन्न महाशक्तियों के लिए एक सीख है कि पृथ्वी की ऊर्जा परमाणु बम की उर्जा से ज्यादा ताकतवर है। यह संदेश है कि वो पृथ्वी और प्रकृति से खिलवाड़ न करें। तीनों मुल्क एक-दूसरे को परमाणु शक्ति का धौंस दिखाते है। प्रकृति ने यह दिखा दिया कि परमाणु बम की ऊर्जा से ज्यादा खतरनाक पृथ्वी की ऊर्जा है। अगर प्रकृति नाराज हो जाए तो मानव निर्मित सारे हथियार और बम धरे के धरे रह जाते हैं।
नेपाल की बुरी किस्मत देखें। पहले ये मुल्क राजशाही के अधीन रहा। राजशाही में लोगों को बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा गया। यहां की जनता को मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं थी। राजशाही के बाद लोकशाही आयी। लेकिन लोकशाही के दौरान माओवादियों ने गदर मचाया। नेपाल भारत और चीन का जंग स्थल बन गया। नेपाल की संविधान सभा जंग स्थल बन गई। लोकशाही के अंदर जो विकास होना चाहिए था वो नहीं हो पाया। नेपाल की जनता की किस्मत वहीं की वहीं रही। अब तो नेपाल के लोगों को प्रकृति ने मारा है। इससे निकलने में उन्हें काफी समय लगेगा। यह खुशी की बात है कि दुनिया के तमाम मुल्कों ने तुरंत आर्थिक सहायता जारी कर नेपाल के जख्मों पर मरहम लगाया है। यूरोप, अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया समेत तमाम देशों ने कई मिलियन डालर की सहायता राशि जारी की है। अब यह सहायता राशि लोगों तक पहुंचे इसकी गारंटी होनी चाहिए। 

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