रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में नहीं किया बदलाव
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मुंबई | भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने नीतिगत ब्याज दर में कोई बदलावा नहीं किया। वह देखना चाहते हैं कि खाद्य मुद्रास्फीति पर हाल की बेमौसम बारिश का क्या असर रहता है साथ ही वह यह भी चाहते हैं कि रेपो दर में पिछली कटौतियों का फायदा उपभोक्ताओं को दें। रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को तात्कालिक आवश्यकता के लिए नकदी उधार देता है। रेपो दर इस इस समय 7.5 प्रतिशत है। रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कोई बदालाव नहीं किया और यह चार प्रतिशत बना रहेगा। सीआरआर बैंकों के पास जमा राशि का वह हिस्सा है, जो उन्हें रिजर्व बैंक के पास रखना होता है और इस पर रिजर्व बैंक उन्हें ब्याज नहीं देता।
गवर्नर राजन ने 2015-16 की मौद्रिक नीति की आज पहली द्वैमासिक समीक्षा में कहा ऋण की मांग कम होने और पहले ही दो बार नीतिगत दरों में कटौती किये जाने के बावजूद उसका कर्ज की दर पर असर अभी नहीं दिखा है।
गवर्नर राजन ने कहा कि आरबीआई की पहल का असर आगे नहीं नहीं पहुंचा है (अर्थात बैंकों ने ऋण की दरें नहीं घटायी हैं)। इसके अलावा आने वाले आंकड़ों से मुद्रास्फीति के जोखिम संतुलन की स्थिति और स्पष्ट होने की उम्मीद है। इस लिए रिजर्व बैंक में यथास्थिति बरकरार रखी है।
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के उत्तर और पश्चिम भारत में रबी की तैयार फसलों पर असर से खाद्य मूल्य में बढ़ोतरी की आशंका बढ़ गई है। राजन ने इससे पहले समीक्षा बैठकों से अलग जनवरी और मार्च में 0.25-0.25 प्रतिशत की कटौती कर बाजार को चौंका दिया था। आज नीतिगत दरें अपरिवर्तित रखते हुए उन्होंने उदार नीतिगत पहलों के प्रति रिवर्ज बैंक की प्रतिबद्धता जताई, लेकिन कहा कि नीतिगत पहलें आगामी आंकड़ों पर निर्भर करेंगी। उन्होंने कहा कि बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती उनकी शीर्ष प्राथमिकता होगी।
उन्होंने कहा कि पारेषण के अलावा खाद्य मूल्य जैसे अन्य तत्वों की निगरानी होगी और हाल में हुई बेमौसम बारिश के असर पर भी कड़ी नजर रहेगी। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक विस्फीतिक जोखिमों के प्रति सतर्क रहेगा। साथ ही उनका यह भी कहना है कि इस समय मुद्रास्फीति की गति रिजर्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक ही है।
नीतिगत दर में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचने की व्यवस्था के बारे में आरबीआई ने कहा है कि वह बैंकों को धन की सीमांत लागत के आधार पर ब्याज दर तय करने को प्रोत्साहन करेगा। यह व्यवस्था नीतिगत दरों में परिवर्तन के प्रति अधिक संवदेनशील है।
गौरतलब है कि जनवरी के बाद रेपो में दो बार में कुल मिला कर 50 प्रतिशत की कटौती किए जाने के बाद सिर्फ दो बैंकों -यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और स्टेट बैंक आफ त्रावणकोर ने आधार दरों में 0.10-0.10 प्रतिशत की कटौती की है। हाल के वर्षों के इस समय ऋण प्रवाह न्यूनतम स्तर पर रहने के बावजूद बैंकों ने ब्याज दरें उच्च स्तर पर बरकरार रखी है। ये दरें इस समय 10 प्रतिशत के आस-पास है।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बारे में आरबीआई का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान इसकी वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रहेगी। साथ ही कहा कि मानसून आने के संबंध में अनिश्चितता और अप्रत्याशित वैश्विक विकास जोखिम के बड़े क्षेत्र हैं। वाह्य क्षेत्र के संबंध में केंद्रीय बैंक ने कहा कि साधारण और असमान सुधार के हालात उभर रही है। साथ ही कहा कि चीन में नरमी और पश्चिम एशिया में भूराजनैतिक तनाव का जोखिम है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने की नीति अपनाने और इसके देश के पूंजी प्रवाह पर संभावित असर की आशंका के संबंध में आरबीआई ने कहा कि वह अमेरिकी मौद्रिक नीति के सामान्य होने के संकेत पर नजर रखेंगे हालांकि उन्होंने कहा कि देश 343 अरब डॉलर के मुद्रा-भंडार के साथ किसी भी किस्म के असर से निपटने के लिए बेहतर स्थिति में है।
खुदरा मुदास्फीति फरवरी में बढ़कर 5.37 प्रतिशत हो गई जो इससे पिछले महीने 5.19 प्रतिशत थी। कुछ विश्लेषकों को उम्मीद है कि यह जनवरी 2016 में छह प्रतिशत से काफी नीचे रहेगी। नीतिगत ब्याज दर में कमी के पक्ष में एक और बात यह है कि मुद्रास्फीति की मूलभूत दर सीमित दायरे में बनी हुई है। मुद्रास्फीति की मूलभूत दर में खाद्य और पेट्रोलियम की मुद्रास्फीति को नहीं जोड़ा जाता। मंहगाई के संबंध में परिवारों की प्रत्याशा के ताजा सर्वेक्षण भी मुद्रास्फीति में नरमी की ओर इशारा कर सकते हैं।
इसके विपरीत बेमौसम की बारिश जैसे कारक नीतिगत दरों में कटौती की राह में मुख्य अड़चन हैं। इस बीच वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने कहा कि आरबीआई की नीतिगत पहल उम्मीद के अनुरूप है। विशेषज्ञों के मुताबिक रिजर्व बैंक को मुख्य रूप से यह ध्यान देना चाहिए कि उसकी नीतिगत दरों में कटौती के बाद बैंकों की ऋण की दरों में कमी आनी चाहिए। आज की बैठक से पहले अटलें थी कि रिजर्व बैंक बैंकों के पास नकदी की स्थिति में सुधार के लिए सीआरआर या एसएलआर में कमी कर सकता है। रिवर्स रेपो दर में बढ़ोतरी की भी अटकलें थीं।