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जुर्म और जुर्माना में हो संतुलन: सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायालयों के लिए जुर्म के समाज, जिसमें पीडित भी शामिल है, पर प़डने वाले प्रभाव को ध्यान रखना लाजिमी है तथा जुर्म और उसके लिए दिए गए जुर्माने में संतुलन होना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी. पंत की पीठ ने हाल ही में दिए एक फैसले में कहा, "किसी भी जुर्म के लिए सजा देने का एक सामाजिक लक्ष्य होता है। इसलिए न्यायालय के लिए यह आवश्यक है कि जुर्म के समाज पर प़डने वाले प्रभाव को ध्यान में रखे और इसकी जटिलता पीडित को भी प्रभावित कर सकती है।"
न्यायमूर्ति पंत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "उचित न्याय करने के लिए न सिर्फ दोषी को यह अहसास कराया जाना चाहिए कि उसने अपराध किया है, बल्कि किए गए जुर्म और लगाए गए जुर्माने में संतुलन भी होना चाहिए।" पंजाब के कपूरथला की अदालत द्वारा सहायक उप निरीक्षक संजीव कुमार को दोषसिद्ध करने की पुष्टि करने वाले पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा आठ नवंबर, 2011 को दिए गए फैसले को यथावत रखते हुए सर्वोच्चा न्यायालय ने कहा, "हर मामले में तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।" 

Updated : 22 March 2015 12:00 AM GMT
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