अनुकूलता का मतलब यह कतई नहीं है कि हम आराम की मुद्रा में आ जाएं। : मोहन भागवत

गाजियाबाद : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कविगुरु रविन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा बंगभंग आन्दोलन के दौरान कही बात का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भी हिन्दू-मुस्लिमों के बीच मतभेद होंगे, बीच का रास्ता जरूर निकलेगा और वह रास्ता हिन्दुत्व का रास्ता होगा। भागवत ने रविवार शाम स्वयंसेवक समागम में गाजियाबाद के हजारों स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा, “संघ ने बड़े संघर्ष किए हैं, उसका परिणाम है कि आज परिस्थितियां हमारे अनूकुल हैं। लेकिन अनुकूलता का मतलब यह कतई नहीं है कि हम आराम की मुद्रा में आ जाएं। अब हमें और भी ज्यादा कार्य करने की जरूरत है।”
संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों को सदैव सक्रिय रहने की बात कही, और कहा कि समाज को जागरूक करने का काम जारी रखना होगा। उन्होंने कहा कि भारत माता का प्रत्येक पुत्र हिंदू है। फिर चाहे वह किसी भी संप्रदाय, जाति, क्षेत्र का क्यों न हो ? उनका कहना था कि अब परिस्थितियां अनुकूल हैं। मां भारती के प्रत्येक पुत्र को उसका गौरव समझाओ।
एकता के लिए एकरूपता पर बल देते हुए संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत भूमि का पुत्र भारतीय पूर्वजों का वंशज है, और उनकी संस्कृति सनातन संस्कृति है जिसको आज भारतीय संस्कृति भी कहते हैं। उसके अनुसार देशकाल परिस्थिति सुसंगठित जीवन जीने का प्रयास करनेवाला प्रत्येक व्यक्ति समाज का अंग है। उन्होंने कहा कि दिखता अलग-अलग है लेकिन मूल में एक है। उस अलग-अलग को स्वीकार करो उसका सम्मान करो। एक-दूसरे को बदलो मत, जो जैसा है वैसा ही ठीक है वैसा ही रहकर वह हमारा अपना भाई है। विविधताओं का सम्मान करो। विविधताओं के मूल में एकता को देखो। यह भारत वर्ष का मूल है। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का विचार ही दुनिया का एकमात्र ऐसा विचार है, जो हम सब को जोड़ता है। हिंदू बनकर संपूर्ण देश के लिए जीना है, केवल अपने स्वार्थ के लिए जीना नहीं है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक मात्र लक्ष्य राष्ट्र को विश्व गुरु बनाना है। इस महान कार्य को पूर्ण करने के लिए हमें योग्य बनना होगा। कोई भी कार्य पूर्ण शक्ति से किया जाता है। इसलिए वैश्विक मंच पर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए हमें शक्तिशाली बनना होगा।
उन्होंने कहा कि संघ के लिए यह बड़ा अनुकूल समय है, जबकि पहले तो बड़ी उपेक्षा का समय था। संघ के विचार की कोई मान्यता नहीं थी, न तो दुनिया में और न ही देश में। उन्होंने कहा, “विपरीत परिस्थितियों में भी संघ के संस्थापक डॉ. हेगड़ेवार ने संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए संघ की शाखाएं शुरू कर दी थीं और दुनिया के इतिहास में किसी भी स्वयंसेवक संगठन का इतना लंबा और कटु विरोध नहीं हुआ जितना हमारा, हमारे ही देश में हुआ। बहुत कठिन समय में हमें आगे बढ़ना पड़ा।”
भागवत ने कहा, “हिन्दुस्तान एक हिन्दू राष्ट्र है जो सत्य है उसको लेकर हम चल रहे हैं। संपूर्ण हिन्दू समाज को देश को बड़ा बनाने के लिए संगठित करना है। हमारा देश बड़ा बनेगा तो सारी दुनिया का कल्याण होगा।...हम जो करना चाहते हैं वह करने की कार्य पद्धति भी हमारे पास है।”
लोग कहते हैं कि हम संघ की शाखाओं का कैंप लगाकर शक्ति प्रदर्शन करते हैं। लेकिन हम शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते वरन शक्ति का दर्शन करते हैं और यह हम दिखाने के लिए नहीं, बल्कि मूल्याकंन के लिए करते हैं। स्वयंसेवक समागम में संघ के व्यापक भाव को दर्शाते हुए भागवत ने कहा कि संघ स्वयं को योग्य बनाने के लिए है। बाहर से देखकर संघ की बात करना उचित नहीं। यह आपका घर है, जब चाहें आएं, परखें, न ठीक लगे तो लौट जाएं। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य देश एक भाषा, एक पंथ, एक देव की परिपाटी पर बढऩे की बात करते हैं लेकिन हमारा देश विविधताओं से भरा है। विविधता में एकता असल हिंदुत्व है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में भले ही लोग अलग-अलग दिखते हैं लेकिन वे सभी मूलतः एक हैं, क्योंकि हिंदुत्व का विचार सबको एक कर संपूर्ण देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
भागवत ने जोर देकर जाति-धर्म के भेदभाव को भूलाकर समस्त हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान किया। इसके लिए उन्होंने संविधान निर्माता डॉ.भीमराव आम्बेडकर, भगवान बुद्ध, महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के कथनों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, हम सभी जाति-पाति के भेदभाव की खामी का ज्ञान रखते हैं, लेकिन वर्षों पुरानी संकीर्ण आदत छूटती नहीं, इसे तजना होगा।
