Home > Archived > जनमानस

जनमानस

मैं न तो खुद खाऊंगा और न ही किसी को खाने दूंगा


2जी, कोयला एवं कॉमनवेल्थ घोटालों के बाद पर्यावरण मंत्रालय का विवादों में आना पिछली सरकारों के काम-काज पर बहुत बड़ा प्रश्न-चिन्ह है। स्वतंत्रता के बाद भ्रष्टाचारियों ने अंग्रेजों की तरह ही देश को बेदर्दी एवं बेरहमी से लूटा है। राजनेता, लोकसेवक, व्यवसायी जिसको भी मौका मिला, उसने देश के साथ अंग्रेजों से भी बदतर सलूक किया, जबकि अंग्रेजों ने कम से कम निर्माण कार्यों में गुणवत्ता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया था।
लोकसभा चुनाव 2014 में 'काला-धनÓ एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा था, जो इस बात का प्रमाण है कि भ्रष्टाचारियों ने देश को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बोफोर्स, चारा, सत्यम, यूटीआई, ताज कॉरीडोर, स्टाम्प, हवाला, चीनी, यूरिया, हर्षद मेहता, आदर्श सोसायटी, सारदा सहित घोटालों की लम्बी फेहरिस्त देखने पर ऐसा लगता है कि यदि संजीदगी से तत्कालीन सरकारों के अन्य विभागों की भी जांच की जाती तो हो सकता है कि इस तरह की तमाम और अनियमितताएं देखने को मिलतीं। उपरोक्त घोटालों के समय अन्य विभागों को बिना जांच के क्लीन-चिट देना उचित प्रतीत नहीं होता है। लोकसेवकों की बात करें तो ऐसा लगता है, कि वही लोकसेवक ईमानदार है जिसके यहां अभी तक आयकर का छापा नहीं पड़ा है। चन्द नौकरशाहों एवं भ्रष्टाचारियों की काली कमाई सामने आने पर हम इस तरह का आश्चर्य व्यक्त करने लगते हैं जैसे यही अंतिम भ्रष्टाचारी थे, जबकि अधिकतर नौकरशाहों की कार्य प्रणाली से हम सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं। यदि ये नौकरशाह लोकसेवक हैं तो फिर लोक-शासक कौन हैं? इन लोकसेवकों की सेवा देखने के बाद हर किसी की इच्छा होती है कि काश हमें भी लोकसेवा का थोड़ा अवसर मिल जाता।
सरकार को विदेशी काले धन के साथ-साथ देश में मौजूद काले धन को भी निकालने का प्रयास करना चाहिए। जिस तरह 1997 में वीडीआईएस (वॉलेन्ट्री डिस्क्लोजर ऑफ इन्कम स्कीम) के माध्यम से लोगों ने कई हजार करोड़ रूपया सरकारी खजाने में जमा करवाया था, उसी तर्ज पर लोगों को एक निश्चित अवधि तक स्वेच्छा से सरकारी खजाने में धन जमा करवाने का अवसर दिया जा सकता है। उसके बाद हर संदिग्ध राजनेता, लोकसेवक, व्यवसायी एवं अन्य जिनकी सम्पत्ति में स्वतंत्रता के बाद असामान्य रूप से इजाफा हुआ है। सभी की जांच के लिए देशव्यापी मुहिम चलाई जा सकती है। अजमेर में पिछले वर्ष दिसम्बर में भ्रष्टाचार के एक प्रकरण में आरोपी पति के साथ उसकी पत्नी, लड़का एवं लड़की को भी छह वर्ष की जेल होना भ्रष्टाचार से लडऩे की दिशा में एक ऐतिहासिक फैसला है। इस तरह के निर्णयों के माध्यम से ही भ्रष्टाचार से प्रभावी ढंग से लड़ा जा सकता है। इस निर्णय के द्वारा यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि सिर्फ भ्रष्टाचार करना ही अपराध नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार के लिए उत्प्रेरक की भूमिका अदा करना भी उतना ही बड़ा अपराध है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का यह संदेश ''मैं न तो खुद खाऊंगा और न ही किसी को खाने दूंगा - अभी तक तो प्रभावी नजर आ रहा है, क्योंकि पिछले आठ माह में सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं लगा है। लेकिन यह संदेश कब तक प्रभावी रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। अब राजनैतिक दलों को सत्ता में आने एवं रहने के लिए भ्रष्टाचार से असली लड़ाई लडऩी होगी। क्योंकि इतना तय है कि जो इस लड़ाई में असफल होगा जनता उसको सत्ता तो दूर विपक्ष में रहने लायक भी नहीं छोड़ेगी। लोकसभा चुनाव 2014 का परिणाम इसका जीवंत उदाहरण है।
प्रो. एस. के. सिंह, ग्वालियर

Updated : 6 Feb 2015 12:00 AM GMT
Next Story
Top