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जनमानस

जन से मन-स्वदेशी हो सारा तंत्र


विश्व में ऐसी कोई भूमि है जिसे माँ कहकर पुकारते हैं। तो वह भारत भूमि है जहाँ देवताओं का वास रहा। अपार धन,बहुमूल्य खनिज सम्पदा से भरपूर यह देश प्राचीनकाल से सोने की चिडिय़ा रहा। कई विदेशी आक्रमण, आक्रान्ताओं के हमले के बाद भी भारत की संस्कृति अक्षुण्ण रही। सैकड़ों वर्षो के शोषण से मुक्त होने के बाद अंग्रेजों ने इस देश में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भाषावाद का जहर घोल दिया। कुछ लोग विदेशी भाषा विदेशी विचार इस देश में थोपना चाहते हैं। भारत को किसी न किसी रुप में परतंत्र रखना चाहते हैं। वे भूल जाते हैं इस देश की व्यापकता को इस देश की संस्कृति को तभी तो इस देश के प्रसिद्ध उर्दू कवि इकवाल ने कहा था कि-
ईरान मिश्र रोमा सब मिट गए जहाँ से।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।।
भारत सोने की चिडिय़ा रहे इसके लिए समस्त भारत में आज भी ऐसे असंख्य लोग हैं जो स्वदेशी का महत्व समझते हैं। 68 वर्षो बाद ही सही देश के प्रधानमंत्री ने भारतीय संस्कृति की विचार शक्ति को निर्माण की दिशा में लगाया है। जो लोग निराशा के भँवर में जी रहे थे, भारत के 16वें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें झकझोर डाला है। उनके तन-मन में भारत के विकास की अवधारणा के जोश को भरा है। यदि यह विचार शक्ति उभर कर सामने आई तो भारत विश्व में वैश्विक ताकत बनकर शक्तिशाली रुप से सामने आयेगा। भारत आर्थिक रुप से मजबूत हो, प्रधानमंत्री ने देशवासियों को खादी का उपयोग करने का संदेश देकर स्वदेशी के उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। उनका इशारा स्वेदशी को अपनाने और अर्थ व्यवस्था मजबूत करने की ओर था। भारत की अर्थव्यस्था तभी मजबूत होगी जब आकर्षित लगने वाली विदेशी वस्तुओं पर रोक लगे ये विदेशी वस्तुएं हमारे देश की अर्थ व्यवस्था को खोखला कर रही हैं। आज देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है - वह स्वदेश से प्यार करे, स्वदेश की बनी वस्तुओं का उपयोग कर अर्थव्यवस्था के महत्व को समझे। इससे हमारी अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी। हमारा राजस्व अधिक होगा इससे हम, हमारा गांव, भारत का हर शहर, हर राज्य व राष्ट्र मजबूत होगा। राष्ट्र मजबूत होने से देश का प्रत्येक नागरिक मजबूत होगा। हम गरीबी पर चोट कर सकेंगेऔर विश्व के अन्य देशों के आगे खड़े होंगे।
जय स्वदेश जय भारत
भंवर सिंह नरवरिया

Updated : 7 Dec 2015 12:00 AM GMT
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