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जनमानस

बाज आएं ममता बनर्जी


सत्ता के स्वार्थ में इतने निचले स्तर तक कोई गिर सकता है, यह कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक कुटिल चरित्र से पता चलता है। लोलुपता के कारण जिसने अपना पूरा जीवन प्रदर्शन और आंदोलनों में झोंक दिया उसे कहां अपने ही बाबरी नीतियों के खिलाफ भाजपा का शान्तिपूर्ण वातावरण में चल रहा प्रदर्शन रास नहीं आया। उसने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ जिस तरह खूनी खेल खेला है, जिससे उसने स्वयं को नायिका के बजाय एक क्रूर खलनायिका साबित कर दिया। क्रूरतापूर्ण आंदोलन करने वाली ममता को आज अपने खिलाफ भाजपा का शान्तिपूर्ण प्रदर्शन क्यों रास नहीं आया। सच तो यह है कि अपने तुष्टिवादी दोगली नीतियों से बदनाम ममता अपने ही गृहक्षेत्र में भाजपा की बेतहाशा बढ़ती आमद से पूरी तरह बौखलाई हुई है। उसे जिस भाजपा ने एक बिन्दु से सिन्धु में परिणित किया, जिस भाजपा ने उसे हर दृष्टि से पूरा सहयोग दिया आज वही भाजपा उसे अपने आंखों की किरकिरी क्यों लग रही है। वास्तव में ममता हिरणी की खाल ओढ़े वह ऋगालिनी है जिसकी नजर सिर्फ उन्हीं लोगों पर टिकी रहती है जिससे उसे यह लगता है कि वह उसके सत्ता के अस्तित्व के लिये चुनौती है। उसके इसी स्वभाव ने देशभक्त नेताजी सुभाष चन्द बोस के प्रदेश, अध्यात्म के विश्व विजेता स्वामी विवेकानंद के प्रदेश, सबसे कम उम्र में देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले खुदीरामबोस के प्रदेश प. बंगाल को आतंकवादियों का गढ़ बना दिया है। भाजपा एक राष्ट्रवादी राजनीतिक संगठन है स्वामी विवेकानंद के बाद इस दल के मुखिया नरेन्द्र मोदी ने पूरे विश्व को भारत के वास्तविक अस्तित्व का परिचय कराया है। ममता को इस भुलावे से बाहर आना चाहिए कि वह किसी माक्र्सवादी पार्टी से लोहा ले रही है। उस समय भी भाजपा ने ही उसे सहयोग दिया था। भाजपा एक राष्ट्रवादी पार्टी है, राष्ट्रवादियों के समक्ष तो आधी दुनिया में राज कर रहे फिरंगी भी नहीं टिक पाए फिर ममता की औकात ही क्या है। मैं ममता बनर्जी से एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूं कि क्या वे उसी थाली में छेद नहीं कर रहीं जिसमें उसने खाया है। ममता जी को ऐसी हरकतों से बाज आना चाहिए।
प्रवीण प्रजापति, ग्वालियर

Updated : 21 Dec 2015 12:00 AM GMT
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