Home > Archived > जनमानस

जनमानस

असहिष्णुता के सच्चे खलनायक किरदार में

भारतीयता की मोहक व सहिष्णुता की पर्याय झलक को असहिष्णुता के विवादित कलह में प्रस्तुत करने वाले असल जिंदगी की फिल्म में विष घोलने का काम कर रहे हैं। सत्यमेव जयते व अतिथि देवो भव: के सन्देश को रील लाइफ में जीने वाले आमिर खान ने रियल लाइफ का जरा भी लिहाज नहीं किया और असहिष्णुता के नाम पर बेबुनियाद भय के लिए पत्नी को मोहरा बना दिया।सीधे मोदी नेतृत्व पर हमला करने वाले शाहरुख के बाद आमिर दूसरे खान बंधू कलाकार हैं जो भारतीय समाज और संस्कृति का रील लाइफ के लिए दोहन करके विराट ऐश्वर्य को प्राप्त हो अमीरी में मदमस्त हैं। देश के वातावरण में असुरक्षा का भय फैलाकर खुद उस सरकार की कड़ी सुरक्षा को प्राप्त होते हैं जिसकी निंदा में समूचे विपक्ष की ओट लेकर शीतकालीन संसद के सत्र में खलल डालने का सुनियोजित मोहरा बनते हैं। देश का मुखिया विदेश में हो तब राष्ट्र में कलह का आतंक फैलाने वाले ऐसे कलाकार को राष्ट्र मर्यादा का घोर उल्लंघन-कत्र्ता कहना सटीक होगा। देश के ठोस उदार धर्मनिरपेक्ष मानवीय मूल्यों की दुहाई में ब्रिटेन के बाद सिंगापुर में प्रधानमंत्री को बोलना पड़ा है उनकी विदेश नीति की कड़ी साधना में विघ्न डालने की यह हिमाकत राष्ट्र की जनता के लिये असहनीय पीड़ा साबित हो रही है। विज्ञापन में राष्ट्र को अतुल्य भारत बताने वाले आमिर राष्ट्र की व्यवहारिकता में इतने कंगाल होंगे सोचा भी नहीं जा सकता था। देश के सुपरस्टार शाहरुख व आमिर को सुपरस्टार होने का भी बोध नहीं है। पूरे देश ने जिनको सुपर माना हो वो ही जनता और सरकार को गिरा हुआ बताकर अपने सुपर होने की गलत कीमत चुका रहे हैं। असहिष्णुता के सच्चे खलनायक किरदार में शाहरुख खान व आमिर खान यह भी भूल गये हैं कि उनकी फिल्मों का जनता ने बहिष्कार शुरू कर दिया तब इनको लेने के देने पड़ जायेंगे। रील लाइफ में हीरो और रियल लाइफ में खलनायक या विलेन ऐसा दोहरा चरित्र ही फिल्मों के राष्ट्रसेवा उद्देश्य को नष्ट करने वाला है। गन्दी राजनीति बेहूदे बयानों का प्राण होती है। हमारे राजनीतिक दलों में सच्ची बात के लिए एकजुटता का पूर्णत: अकाल है। छोटी-बड़ी, सही-बुरी हर बात का पक्ष-विपक्ष की राजनीति में रूपांतरण राष्ट्र के चैन को नष्ट कर रहा है। हर प्रकार की सम्पन्नता के बाबजूद जिन्हें राष्ट्र की शांति व मेलजोल से या लोगों को जोडऩे से परहेज हो ऐसे कलाकारी के धनी खलनायकों को कब तक बर्दाश्त किया जा सकता है। हमारे राष्ट्र के धैर्य व सहनशील व्यवहार की परीक्षा की भी आखिर कोई सीमा तो है।

हरिओम जोशी

Updated : 27 Nov 2015 12:00 AM GMT
Next Story
Top