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जनमानस

सांपों ने डसा सपेरों को


पेशावर में जो कुछ भी तालिबानियों ने किया उसकी निंदा शब्दों में किया जाना संभव नहीं है, क्योंकि जिहादी आतंकी शब्दों की भाषा नहीं बंदूक की भाषा समझते हैं। वस्तुत: जेहाद मासूम, मजबूरों और महिलाओं पर वहशियाना हमले और अत्याचार किए जाने का ही एक नाम है। क्योंकि मासूम बच्चों पर एके.47 से हमला केवल जिहादी आतंकी ही कर सकते है। मन के अंत:करण से उठने वाली कुछ आवाजें भौगोलिक सीमाओं से परे होती है जिसमें ममता, करूणा और मानवीय दया की भावना होती है, जो केवल दुनिया में हिन्दू संस्कारों में पला बढ़ा और पोषित ही समझ सकता है अन्य कोई नहीं। हमारा धर्म हमें प्राणी मात्र पर दया करना सिखाता है फिर चाहे वह प्राणी दहशतगर्द आताताई हो या फिर हिंसक पशु। नि:संदेह पेशावर के मासूम बच्चों पर हमला उन तालिबानियों या आई.एस.आई.एस. या फिर जेहादियों के किसी भी आतंकी संगठन ने किया है, जो पूरी दुनिया में कुरान या इस्लाम की सत्ता स्थापित करना चाहते हैं। जिहाद का मूल उद्देश्य भी यही है। जिसका पालन तालिबान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान या फिर पूरी दुनिया में जिहादी हमला कर रहे है और पाकिस्तान तथा उसकी खुफिया एजेंसी तथा आई.एम. के आतंकी भारत में कश्मीर सहित पूरे देश में विगत बीस सालों से करते रहे हैं। दोनों ही जिहादी है और दोनों का उद्देश्य समान है, कुरान के अनुसार पूरी दुनिया को इस्लाम की सत्ता केअधीन लाना।
आज कितना आश्चर्यजनक नग्न सत्य है कि पाकिस्तान जिन सांपों के दंश से दंशित हुआ है वह सांप आज भी पाकिस्तानी सपेरों की डलिया में ही पले हुए है। 1948 के कश्मीर के कबाइली हमलों से लेकर मुंबई के हमलों तक के जिहाद में यही पाकिस्तानी सपेरों की डलिया में पाले गए नाग थे, आज जिन नागों ने पेशावर में 122 मासूमों की जान ली है। हमारे देश में एक कहावत बहुत चर्चित है कि ''बोये पेड़ बबूल के आम कहां से होय।'' आज जिन जिहादी बबूल के कांटों ने नवाज शरीफ के पैरों को लहूलुहान किया है उन बबूल के पेड़ों के बीज इन्हीं नवाज शरीफ और मुशर्रफ ने भारत के लिए बोये थे।
अभी कुछ दिन पूर्व ही ऐसे ही जिहादी बबूल के कांटे हाफिज शहीद ने पाकिस्तान में यह बयान दिया था कि अगर भारत ने कश्मीर समस्या का समाधान नहीं किया तो भारत की बर्बादी का दरवाजा कश्मीर होगा। मैं पूर्व में ही बड़ी विनम्रता और मानवीय संवेदना के साथ यह निवेदन कर चुका हूं कि पेशावर में स्कूल में मासूम बच्चों का कत्ल किसी भी सूरत में जेहाद नहीं था और यह अब तक का सबसे जघन्य मानवीय अपराध है परन्तु पूरी दुनिया को यह सत्य भी स्वीकार करना चाहिए कि ऐसा घिनौना और निर्लज्जतापूर्ण अपराध केवल जिहादी इस्लामिक आतंकी ही कर सकते है और कोई निर्लज्ज अपराधी ऐसा अपराध दुनिया में कर ही नहीं सकता। इसका कारण यह है कि जिहादियों और इस्लामिक आतंकवादियों को कुरान और शरीयत के कानून और मान्यताएं ऐसे जघन्यता तम अपराध करने की इजाजत देती है जब तक काफिर इस्लाम और अल्लाह की सत्ता को स्वीकार न कर ले। ईरान के तानाशाह अयातुल्ला खुमैनी ने एक बार कहा था कि-जिहाद का अर्थ है सभी गैर-मुस्लिम धरती को जीत लेना। वैसा युद्ध एक सच्ची इस्लामी सरकार बनाने के बाद इस्लाम के निर्देश या उसके आदेश पर घोषित किया जा सकता है। जिसका अंतिम लक्ष्य है इस धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक कुरान के कानून को सत्ताधारी बनाना। दिलीप मिश्रा, ग्वालियर

Updated : 13 Jan 2015 12:00 AM GMT
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