पितृपक्ष कल से

ग्वालियर। पितरों की शांति के लिए स्नान दान का सिलसिला 9 सितम्बर मंगलवार से शुरू हो रहा है। पितृपक्ष में पूरे 16 दिन तक श्राद्ध और दान के जरिए लोग पूर्वजों का आशीर्वाद पाएंगे। अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृपक्ष पर पितृ दोष निवारण के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य पं. सतीश सोनी ने बताया कि पितृ दोषों की शांति के लिए पितृपक्ष का समय सबसे उत्तम होता है। ज्योतिष में पित ृऋण को बहुत बड़ा दोष माना जाता है। यह दुर्भाग्य को बढ़ाने वाला होता है। पितृ ऋण की मुक्ति के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई कर्म नहीं होता है। सनानत धर्म में श्राद्ध को देव पूजन की तरह आवश्यक एवं पुण्यदायक माना गया है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। उन्होंने बताया कि वायु पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति आदि में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है।

क्या है पितृपक्ष
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य पर तीन तरह के ऋ ण होते हैं, जिनमें देव ऋ ण, ऋ षि ऋ ण, पितृ ऋ ण। देव एवं ऋषि ऋ ण तो नहीं चुकाए जा सकते, लेकिन पितृ ऋ ण श्राद्ध के माध्यम से उतारा जा सकता है। हिंदू धर्म में ऐसा करना अत्यावश्यक माना गया है। जिन्होंने हमारी आयु, आरोग्य एवं सुख की वृद्धि के लिए कितने ही यत्न एवं प्रयास किए, उनके ऋ ण से मुक्त नहीं होने पर हमारा जन्म लेना निर्थक है। उनका ऋ ण उतारने में बहुत खर्च भी नहीं है। केवल वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल, तिल, जौ, पुष्प आदि से श्राद्ध सम्पन्न करने और एक, तीन या पांच की संख्या में ब्राहम्णों को भोजन कराने मात्र से उनका ऋ ण उतर जाता है। इस सरल साध्य कार्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इसके लिए जिस तिथि को माता-पिता आदि पूर्वजों की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध आदि अवश्य कराना चाहिए।
ये करें पितृपक्ष में
पितृपक्ष के 16 दिनों के दौरान साधारण आहार, सात्विक आचार-विचार के साथ रहना चाहिए। इसके अलावा प्रात: काल स्नान करके किसी पात्र में जल लेकर उसमें तिल एवं जौ डालकर दक्षिण मुख बैठकर पितरों का आह्वान करें। इसके बाद पात्र के जल को अंजलि में लेते हुए अंगूठे एवं तजर्नी के बीच से तर्पण करें। यह विधि पूरे सोलह दिन करना चाहिए। इसके अलावा पितर के निधन की तिथि को पितर का आह्वान कर उन्हें दातुन, वस्त्र आदि अर्पित करने के पश्चात उन्हें सफेद मीठा चावल तथा उनकी पसंद के व्यंजन बनाकर पत्तल में रखकर गौ को खिलाएं। इसमें तर्पण सबसे जरूरी होता है, जिससे पितर हर्षित होते हैं।

पितरों की शांति के लिए स्नान दान का सिलसिला 9 सितम्बर मंगलवार से शुरू हो रहा है। पितृपक्ष में पूरे 16 दिन
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