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जनमानस

हमारे लोग आधुनिकता को पचा नहीं पाए



हम आधुनिकता को पचा नहीं पाए। संस्कृति एवं उत्सव प्रधान राष्ट्र में व्याभिचारी शराबी एवं भ्रष्टाचारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। देश भर के बड़े-बड़े शहरों और छोटे-छोटे गांवों तक हमारी मासूम बालिकाएं सुरक्षित नहीं रहीं। तथाकथित विकास, पैसे की दौड़ और नकली आधुनिकता ने भारतीय संस्कारों की सरेराह हत्या कर डाली। आज के समय में लगता है कि हम राम या कृष्ण की चर्चा करके कोई पाप कर रहे हैं। वजह यह कि आधुनिकता के घटिया आचरण ने हमारे आराध्यों को बाबा आदम की वस्तु बना दिया। अध्यात्म की निश्छल धारा को स्वयंभू धर्म के ठेकेदारों ने रसातल का मार्ग दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऊपर से स्वार्थ की गंदी राजनीति ने राष्ट्र के मर्म पर ही घात किया। संस्कृति और सभ्यता के उच्चादर्श पर कींचड़ फेंका जाता है और हम जमीन कुरेदते नजर आते हैं। जब भरे बाजार में चोली के पीछे क्या है का गाना हम जब सुनते हैं तब हम उस अश्लीलता का विरोध नहीं करते। भीड़भरे बाजार और चौराहों पर नंगे फिल्मी पोस्टरों को देखकर सारा समाज और प्रशासन चुपके से निकल लेता है। यह हमारे घटते समाज के प्रति संवेदनाशीलता का दोयम दर्जे का व्यवहार है। देश भर में बालिकाओं, महिलाओँ के साथ दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ी हैं। लेकिन इन घटनाओं की तह में कोई नहीं जाना चाहता पीड़ा तो केवल पीडि़त व्यक्ति और उसके परिवारजनों को होती है। लेकिन अश्लील और तमाम तरह के गलत साधनों पर रोक कोई नहीं लगाना चाहता।

मुकेश घनघोरिया, घाटीगांव

Updated : 4 Sep 2014 12:00 AM GMT
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