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ज्योतिर्गमय

सखा है विश्वसनीय इंद्रिय


तीन विषय हैं - आत्मा, इन्द्रियां एवं वस्तु (संसार) और तीन शब्द है - सुख, दु:ख और सखा. इन तीनों ही शब्दों में एक समानता है- 'ख, जिसका अर्थ है इन्द्रियां।
आत्मा इन्द्रियों के द्वारा संसार का अनुभव करती है। जब इन्द्रियां आत्मा के साथ रहती हैं तब सुख होता है (क्योंकि आत्मा सुख और आनन्द का स्रेत है) जब इन्द्रियां आत्मा से विमुख हों, भौतिक विषयों के दलदल में फंस जाती हैं, तब दु:ख होता है. यही दु:ख है।
आत्मा का स्वभाव ही आनन्द है। सभी इन्द्रियां आत्मा की ओर उड़ान भरने के लिए हैं। किसी भी सुखद अनुभूति में तुम आंखें मूंद लेते हो- किसी सुगन्धित फूल को सूंघते हो तब या कोई स्वादिष्ट खाना चखते हो, अथवा किसी वस्तु को स्पर्श करते हो। सुख वह है जो आत्मा की ओर ले जाता है।
दु:ख आत्मा से विमुख करता है. दु:ख का यही अर्थ है कि तुम आत्मा पर केन्द्रित होने के बदले विषयवस्तु में फंसे हो, जो परिवर्तनशील है।
'स-खा शब्द का अर्थ है 'वह ही इन्द्रिय है। सखा वह है जो तुम्हारी इन्द्रिय ही है। अर्थात तुम्हारे माध्यम से मुझे ज्ञान मिलता है, तुम मेरी छठी इन्द्रिय हो। जिस प्रकार मैं अपने मन पर विश्वास करता हूं, उसी तरह तुम पर भी विश्वास करता हूं। एक मित्र इन्द्रियों की अनुभूति का विषय हो सकता है परन्तु 'सखा' स्वयं इन्द्रिय बन जाता है।
'सखा' वह साथी है जो सुख और दु:ख दोनों अनुभवों में साथ रहता है। अर्थात सखा वह है जो तुम्हें आत्मा की ओर वापस ले जाता है। जब तुम किसी विषय-भोग में फंस जाते हो, तब जो ज्ञान तुम्हें आत्मा की ओर वापस लाता है, वही सखा है।
ज्ञान तुम्हारा साथी है और तुम्हारा साथी ज्ञान है। गुरु ज्ञान का प्रतिरूप हैं। 'सखा' का अर्थ है, 'वह मेरी इन्द्रियां है, मैं संसार को उसी ज्ञान के द्वारा, उनके माध्यम से देखता हूं।' कुछ वर्षा में तुम्हारा मस्तक मिट्टी में होगा, जीते जी अपना सर कीचड़ से मत भरो। गुरु की दृष्टि से देखो तो पूरा विश्व दिव्य दिखेगा।

Updated : 23 Sep 2014 12:00 AM GMT
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