अग्रलेख

तुष्टीकरण की राजनीति और सपा
- राजनाथ सिंह 'सूर्य'
उत्तरप्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिए जाने सम्बन्धी राज्य सरकार के अध्यादेश को संविधान सम्मत न होने पर सहमति देने से इंकार करते हुए पुनर्विचार के लिए अखिलेश यादव मंत्रिमंडल को वापिस कर दिया है। अध्यादेश को सहमति देने से इंकार करने के जिन औचित्यपूर्ण तर्क का राज्यपाल ने उल्लेख किया है उसका संज्ञान यदि न भी लिया जाय तो भी यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उभरता है कि इसी प्रकार के जो अन्य आयोग हैं यथा मानवाधिकार, महिला, अनुसूचित एवं पिछड़ा वर्ग-उनके अध्यक्षों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव सरकार ने क्यों नहीं किया। मुलायम सिंह यादव पर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने के जो आरोप लगते रहे हैं उसकी अध्यादेश प्रस्ताव से पुष्टि होती है। अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में आजम खां अन्य विभागों के साथ ही अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री हैं और माना यह जा रहा है कि उनके दबाव से ही सरकार ने यह अध्यादेश प्रस्तावित किया था जिसे अब विधानमंडल के सत्र में पारित कराने की तैयारी है क्योंकि राज्यपाल ने यह भी जानना चाहा था कि जब पिछले चालीस वर्ष से आयोग का अध्यक्ष बिना कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त किए काम कर रहा है तो ऐसी कौन सी तात्कालिकता है जिसके कारण अध्यादेश लाना आवश्यक हो गया है। अखिलेश यादव मंत्रिमंडल के ढाई वर्ष के कार्यकाल में मोहम्मद आजम खां पिछले दो महीने से कोप भवन में चले गए थे। उन्होंने मंत्रिमंडल की बैठक ही नहीं तो उन सभी सार्वजनिक कार्यक्रमों का भी बहिष्कार कर दिया था जिसमें मुलायम सिंह यादव, मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री भी उपस्थित थे और आजम खां की उपस्थिति अनिवार्य थी। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के अध्यादेश को प्रस्तावित करने पर वे कोप भवन से निकले और उपचुनाव में शामिल हुए। समाजवादी पार्टी में आजम खां द्वारा मुलायम सिंह और उत्तर प्रदेश सरकार को ब्लैक मेल किए जाने से बेचैनी और तमाम मुस्लिम संगठनों द्वारा उनकी हठधर्मी के खिलाफ सार्वजनिक आलोचना के बावजूद आजम खां की औकात पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। उन्होंने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि मुलायम सिंह यादव झुक सकते हैं और उनमें झुकाने की क्षमता है।
एक समुदाय के मतदाताओं की तुष्टीकरण की राजनीति ने न केवल उनकी राजनीतिक हैसियत को निरंतर घटाया है बल्कि उस वर्ग में भी विवाद को उभारा है। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने सम्बन्धी अध्यादेश प्रस्तावित कर उन्होंने अन्य वर्गों में अपने लिए अविश्वास को बढ़ावा दिया है। भारत सरकार ने भी इस प्रकार के किसी आयोग को कैबिनेट मंत्री का दर्जा नहीं दिया है तथा उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे प्रयास को पूर्व में एक जनहित याचिका के निस्तारण में संविधान सम्मत नहीं माना है। क्या यह तर्क सरकार के सामने नहीं थे जब अध्यादेश प्रस्तावित किया गया। अवश्य रहे होंगे लेकिन जिस प्रकार आजम खां ने अपने परिवार के सदैव नियंत्रण में रहने वाले जौहर विश्वविद्यालय के लिए चालू बजट से पचास करोड़ रुपए लेने के बाद उसे अल्पसंख्यक दर्जा दिलाने के नाम पर अंतरिम राज्यपाल कुरैशी की मंजूरी प्राप्त कर ली थी, वैसी अपेक्षा राम नाइक से उन्हें नहीं करनी चाहिए थी। राम नाइक ने संविधान की मर्यादा में रहकर काम करने की जो अभिव्यक्ति की है, उसके अनुरूप आचरण में प्रगट हो रहा है। पिछले कुछ दिनों से मुलायम सिंह यादव पाकिस्तान के प्रति भारत सरकार की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं। उन्होंने एक बार भी पाकिस्तानी घुसपैठ, हस्तक बनाने के प्रयास, आतंकी हिंसा की निंदा नहीं की। पाकिस्तानी राजदूत की हरकत के कारण भारत-पाक विदेश सचिवों की वार्ता रद्द होने पर भी उन्होंने पाकिस्तान समर्थक रुख ही अपनाया और उपचुनावों में पाकिस्तान को छोटा भाई कह मुस्लिम मतों के धु्रवीकरण का प्रयास किया। उनके इस आचरण से यह स्पष्ट होता है कि वे भारत के मुसलमानों को पाकिस्तान परस्त समझते हैं। मुसलमानों को गलतफहमी पैदा करने वाले इस भावना के जाल से निकलना होगा।
समाजवादी पार्टी चेतने के लिए तैयार नहीं है। उसने दंगा भड़काने के आरोप में भाजपा के तीन विधायकों पर रासुका लगाया था। तीन सदस्यीय उच्च न्यायालय की समीक्षा समिति ने सरकार के आरोप को निराधार पाते हुए उन्हें रासुका मुक्त कर दिया तो उनके विरुद्ध स्थानीय प्रशासन द्वारा विभिन्न धाराओं में मुकदमा कायम किया गया है। भाजपाध्यक्ष के खिलाफ अभियोग पत्र में उनके भाषण का जो अंश दाखिल किया गया है, वह उस समय टीवी चैनल पर प्रसारण का पूर्ण विवरण नहीं मालूम पड़ता।
उत्तर प्रदेश का माहौल 1990 के समान बन रहा है जब रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलनकर्ताओं ने सारे देश से अयोध्या कूच किया था और मुलायम सिंह यादव ने ''परिन्दा पर भी नहीं मार सकता की चुनौती दी थी। उस समय उनकी सरकार कांग्रेस के सहारे पर थी आज उनके पुत्र की सरकार पूर्ण बहुमत की है। इसलिए उस माहौल और उस समय के ध्रुवीकरण से भी अधिक सघनता से लोकसभा चुनाव के समय जिन कारणों से ध्रुवीकरण हुआ उसको संज्ञान में लेकर सरकार द्वारा कदम उठाये जाने की अपेक्षा स्वाभाविक थी। लेकिन वैसा नहीं हुआ। आतंकी हमलावरों की रिहाई की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक देने के साथ ही अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक ध्रुवीकरण का माहौल सघन करने वाली नीतियों पर चलने के कारण कब्रिस्तानों की चहारदीवारी बनाने के लिए 200 करोड़ रुपया देने जैसे तमाम मुद्दे सिर उठाने में लगे हैं। कन्या धन केवल मुस्लिम बालिकाओं को ही देना भी एक मुद्दा बना है। सरकार की एक पक्षीयता से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ रहा है। ढाई वर्ष में 600 से अधिक दंगे और उपद्रव हुए हैं। शामली और मुजफ्फरनगर में आग बुझी नहीं है। इसका आरोप किसी और पर मढ़कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। कानून का उल्लंघन और सौहार्द बिगाडऩे के मामले में उसकी कार्यवाही में पारदर्शिता होनी चाहिए, पक्षपात नहीं। चिंता यह नहीं है कि समाजवादी पार्टी का क्या होगा, वह जब जब सत्ता में आती है उसके बाद क्या होता है, उससे स्पष्ट है। सवाल देश के सबसे बड़े प्रदेश के माहौल का है। यदि उसमें वैमनस्यता की आग को हवा दी जाती रही तो सारा देश जलने लगेगा। उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देश में शांति व्यवस्था के लिए सबसे अधिक है। इसके लिए जरूरी है कि वह किसी व्यक्ति की जो उसे नित्य लोगों की निगाहों से गिराने का काम कर रहा है, को मोहताज से मुक्ति पाये और भारत सरकार की नीति सबका विकास सबका साथ की नीति अपनाये। राज्यपाल राम नाइक ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के अध्यादेश को लौटाते हुए जो मुद्दे उठाये हैं, उस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। यदि वह अपनी जिद में विधेयक लाकर पास भी करा लेगी तो यह न्यायालय में समीक्षा का शिकार हो जायेगा। लेकिन उससे अधिक उसे इस बात का संज्ञान लेने की कि अन्य जो समकक्ष आयोग है उनके अध्यक्षों का दर्जा नीचा करने का क्या परिणाम होगा। समाजवादी पार्टी सरकार की नीतियां हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का कारण बन गई हैं।
