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ज्योतिर्गमय

चरित्र बल

चरित्र एक ऐसी मशाल के समान होता है जिसका प्रकाश दिव्य और पावन होता है। चरित्र बल के आलोक से अनेक लोगों को प्रेरणा मिलती है, एक नई राह मिलती है। चरित्र एक ऐसा आकर्षण केंद्र होता है, जिसकी ओर सभी अनायास खिंचे चले आते हैं। चरित्र से व्यक्तित्व आकार पाता है, पहचान मिलती है। वस्तुत: आमतौर पर अच्छी आदतों व गुणों के समूह को चरित्र में शामिल किया जाता है। चरित्र का क्षेत्र बड़ा ही व्यापक व विस्तृत है। इसे हमने संकीर्णता की सीमाओं में सीमित कर दिया है। चरित्र के संबंध में हम अनेक भ्रांत धारणाओं से ग्रस्त हैं, जबकि यह हमारे समूचे व्यक्तित्व को गढ़ता है और विकसित करता है। यह अपने गुणों के बीजों का हमारे अंतस् में रोपण करता है और कालांतर में इन गुणों के विकास से हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
चरित्र के आधार पर व्यक्ति की पहचान होती है। चरित्र के बीज सही और प्रखर हों, सत्य से आवृत्त हों, तो व्यक्तित्व सशक्त होगा। इसके विपरीत दुर्गुणों के शिकार हों, तो व्यक्तित्व दोषयुक्त होगा। इसलिए चरित्र को व्यक्तित्व के गुणों का समुच्चय कहा जा सकता है। इसमें अच्छे-बुरे और सद्गुण-दुर्गुण दोनों को ही शामिल किया जाता है। ये गुण हमारे समूचे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। इसके आधार पर हम जाने व समझे जाते हैं। हम क्या हैं, हमारा अस्तित्व क्या है, हमारी वर्तमान स्थिति क्या है और कहां पर विद्यमान हैं? इसकी समूची जानकारी चरित्र के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती हैं। अध्यात्म व्यक्तित्व ढालने की टकसाल है और चरित्र-निर्माण की प्रयोगशाला है। ऐसे अनेक, असंख्य जीवंत प्रमाण हैं, जिनका व्यक्तित्व कोयले के समान अनगढ़ व कुरूप था, परंतु बाद में वे ही विद्वान, ज्ञानी और महापुरुष बने। चरित्र से ही व्यक्तित्व की व्याख्या-विवेचना संभव है। व्यक्तित्व निर्माण चिंतन की प्रेरणा प्रदान करता है। चरित्र एक पात्र है, जिसमें चिंतन विकसित होता है। चरित्र की उपजाऊ भूमि पर ही चिंतन का बीजारोपण होता है। यह वह भूमि है, जहां से अध्यात्म की कोंपलें फूटती हैं, परंतु विडंबना है कि आज की तथाकथित आध्यात्मिकता में अध्यात्म की मूलभूत विशेषता चरित्र विलुप्त हो रही है। यही कारण है कि आज तमाम आध्यात्मिक व धार्मिक व्यक्ति बाहर से जैसे दिखते हैं, वैसे अंतर्मन से होते नहीं हैं। 

Updated : 1 Sep 2014 12:00 AM GMT
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